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- The Forest Died More Than The Police By Doing A Recce Of Dadua Thokia; Learned The Ways Of Bandits For 30 Years, Now Dodging The Police With A Small Gang
चित्रकूट2 घंटे पहलेलेखक: जितेंद्र कुमार मिश्रा
उत्तर प्रदेश की चित्रकूट पुलिस और मध्य प्रदेश पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुके डेढ़ लाख के इनामी बदमाश दस्यु सरगना गौरी यादव पर पुलिस का शिकंजा तेज होजा जा रहा है। पुलिस ने गौरी के इरादे भी भांप लिए हैं, वह विधानसभा चुनाव प्रभावित कर राजनीतिक संरक्षण पाना चाहता है। इसलिए पुलिस उसे जल्द से जल्द पकड़ लेना चाहती है, लेकिन मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के घने और बड़े क्षेत्रफल के जंगल उसके लिए मददगार बन रहे हैं। गौरी यादव इन जंगलों के चप्पे-चप्पे से वाकिफ है। पढ़िए गौरी के गांव से दैनिक भास्कर की ग्राउंड रिपोर्ट…
30 साल तक करता रहा रेकी
पुलिस की शह से ददुआ और ठोकिया जैसे दुर्दांत डकैतों की रेकी करने वाला गौरी यादव जंगल के लिए चित्रकूट के आसपास का जंगल नया नहीं है। जबकि पुलिस के लिए जंगल का हर रास्ता और ठिकाने का पता लगाना मददगारों और डकैत के रिश्तेदारों के हिसाब से तय हो पा रहा है।
पहले खुद मुखबिर था, अब हर गांव में बना लिए
चित्रकूट के बेलहरी गांव का रहने वाले गौरी यादव पहले सामान्य गांव वालों की ही तरह था। बात करीब 30 साल पहले की है। तब दुर्दांत डाकुओं ददुआ और ठोकिया ने आतंक मचा रखा था। इन्हीं जंगलों में इनका ठिकाना था गांव वाले मुखबिर। इन्हीं में से एक था गौरी यादव, जिसे पुलिस ने अपनी ओर मिला लिया। डाकुओं के साथ उठ बैठकर पुलिस को उनकी जानकारी देता था।
डकैत गौरी यादव का गांव बेलहरी है। कभी यहां गौरी यादव अपने परिवार के साथ रहा करता था। गांव के लोग और उसकी मां पुराने दिनों की चर्चा करते हैं।
ऐसे उतरा अपराधी की दुनिया में
डकैत गौरी यादव किसी उत्पीड़न की वजह से डाकू नहीं बना बल्कि पुलिस की शह और डाकुओं के तौर तरीके सीखते हुए उसके हौसले बढ़ते गए। छुपने के ठिकाने पता चलते रहे और हथियार चलाना भी आ गया। इससे वह डराने धमकाने का काम करने लगा। पाठा क्षेत्र में अपनी हनक बनाने के मकसद से वह अपराध की दुनिया में पूरी तरह उतर गया।
पुलिस ने दी छूट, बन गया दस्यु सरगना
- एसटीएफ के संपर्क में आया और बन गया डकैत ददुआ के खिलाफ पुलिस का सबसे विश्वसनीय मुखबिर
- पुलिस के संरक्षण का फायदा उठाकर छोटी-मोटी अपराधिक गतिविधियां शुरू कर दी
- पुलिस की निगाहें दस्यु सरगना ददुआ पर थी, इसलिए गौरी को करते रहे नजरअंदाज
- दिल्ली से आए एक उपनिरीक्षक की हत्या कर दी।
- डकैत ददुआ और ठोकिया के अंत के बाद खुद को किया पुलिस के हवाले
- जमानत पर छूटकर आया डकैती, फिरौती, अपहरण और लूट जैसे संगीन अपराधों में लग गया।
- उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश पुलिस ने डेढ़ लाख रुपए का इनाम घोषित कर दिया।
डकैतों का गैंग गांव से निकलकर खेतों के रास्ते जंगल की ओर भाग जाता है। किस तरफ से रास्ता घने जंगल की ओर जाता है, यह बात डकैत पुलिस से ज्यादा जानते हैं।
मां ने कहा, पता नहीं कैसे भटक गया बेटा
डकैत गौरी की मां के अनुसार, मात्र 3 साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठने के बाद बिलहरी गांव के बगल में स्थित सपहा के कॉलेज में कक्षा 10 तक पढ़ाई की। गौरी ने परिवार चलाने के लिए क्षेत्र के ही कुछ लोगों के वाहन चलाने शुरू किए। कुछ दिन उसने कर्वी से मडईयन तक चलने वाली गाड़ियों को भी चलाया।
बेटियों की कर दी शादी, बेटों की किसी को जानकारी नहीं
गौरी यादव के गांव के लोग बताते हैं कि 18 साल की उम्र में गौरी की शादी पहाड़ी क्षेत्र के बारा कादरगंज में हुई थी शादी के बाद उसके दो बेटे और दो बेटियां भी हुईं जिनमें दोनों बेटियों की तो शादी हो गई, लेकिन उसके दोनों बेटे कहां हैं, यह कोई नहीं जानता।
छोटे गैंग लेकर लौटा, बन चाहता है ददुआ-ठोकिया से बड़ा
बीहड़ के सूत्रों का कहना है कि मौजूदा समय में गौरी का गैंग माइंड पॉवर और फायर पॉवर के लिहाज से बेहद कमजोर है। गैंग के सदस्यों की संख्या भी सीमित है। इसके बावजूद लंबे आपराधिक जीवन और बाकी जीवन का अनुभव उसके काम आ रहा है। वह वारदात करके पाठा के जंगलों में विलीन हो जाता है।
डकैत गौरी यादव जंगल से सटे गांवों में आता जाता रहा है। इस दौरान वह लोगों की मदद भी करता है, इसलिए गांव के लोग उसे सूचनाएं दे देते हैं।
साल 2005 में पहला मुकदमा
डकैत गौरी यादव ने दस्यु सरगना अंबिका प्रसाद उर्फ ठोकिया के साथ रहकर साल 2005 में पहला अपराध किया था। चित्रकूट जनपद से सटे मध्य प्रदेश के नयागांव थाना क्षेत्र में फिरौती लेने के लिए एक व्यक्ति का अपहरण किया था। मारकुंडी थाने में इसी साल उस पर मुकदमा दर्ज किया गया था।
जानें क्यों नहीं पकड़ में आ रहा डकैत गौरी
- बेलहरी गांव से 5 किलोमीटर आगे अमरावती जंगल पड़ता है जिस जंगल में गाड़ी वाहन नहीं जा सकते।
- अमरावती जंगल दो प्रांतों का जंगल है। कुछ भाग उत्तर प्रदेश में आता है और कुछ भाग मध्यप्रदेश में आता है।
- जब उत्तर प्रदेश की पुलिस डकैत गौरी को परेशान करती है तो वह अमरावती जंगल की शरण लेकर मध्यप्रदेश की ओर निकल जाता है।
- बेधक के जंगलों में डकैतों का हमेशा जमावड़ा रहा है, यहां से 10 किलोमीटर की दूरी के बाद मध्य प्रदेश आ जाता है
- मानिकपुर थाना से 20 किलोमीटर दूर चमरउहा संकरउहा के जंगल से मध्य प्रदेश के रीवा जनपद जाने का रास्ता है इस जंगल से डभौरा थाना नजदीक पड़ता है।
पता चले अड्डे और सर्वाइव करने का तरीका
ग्रामीणों ने बताया कि डकैत एक बार में अपने एक ही अड्डे में जाते हैं, इसके बाद पुलिस को इसकी खबर लगने के बाद वापस लौटकर वहां नहीं आते। कांबिंग के दौरान पुलिस को कई जगह खाना बनाने का सामान, बर्तन चूल्हे आदि मिले हैं। उन्हें पुलिस के आने की सूचना मिली होगी, तो गैंग सामान यहीं छोड़कर चला गया। हर अड्डे से कुछ दूरी पर गांव होता है, जहां से डकैत सामान इकट्ठा करते हैं।
इन डकैतों का रहा बसेरा
ददुआ-ठोकिया जैसे डकैत अड्डा जमाए थे। उनके मरने के बाद 7.50 लाख का इनामी बबली डकैत इसका दाहिना हाथ लवलेश ढाई लाख का इनामी इन्हीं जंगलों में विचरण व बसेरा करते थे। धारकूडी थाना क्षेत्र के तहत भी बेधक जंगल आता है। अमरावती का जंगल कुलुहा का जंगल यह उत्तर प्रदेश के 2 जनपद बांदा और चित्रकूट में आता है। इसी जंगल से मध्यप्रदेश के पन्ना जंगल जाने का भी रास्ता है।
हर 5 किमीं. पर एक अड्डा, गांव में कई मुखबिर
जंगलों में टहलने वाले यह डकैत हमेशा स्थानों के आसपास अपने खासम खास व्यक्ति रखते हैं। जंगल में हर 5 किमी. पर उनका एक अड्डा है। पास के गांव में वह अपने कई मुखबिर रखते हैं, जो पुलिस के आते ही उन तक सूचना पहुंचा देते हैं। चित्रकूट पुलिस कई बार उनके मददगार व सूचना देने वाले तंत्रों को पकड़कर जेल में बंद कर चुकी है, लेकिन मददगार अभी भी हैं। जंगलों में कई बार डकैत गौरी से पुलिस का आमना सामना भी हुआ लेकिन मुठभेड़ के दौरान घने जंगलों एवं रास्तों की जानकारी का लाभ उठाकर वह चकमा देकर निकल गया।