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5 घंटे पहले
कॉपी लिंकइस एकादशी पर अन्न और जल दान करने से मिलता है स्वर्ण दान से भी ज्यादा फल
वरुथिनी एकादशी का व्रत वैशाख महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को होता है। इस बार ये व्रत 7 मई को है। माना जाता है कि वरुथिनी एकादशी व्रत से बच्चों की उम्र बढ़ती है और उन्हें किसी तरह की परेशानी भी नहीं होती। इस व्रत से भगवान विष्णु के साथ लक्ष्मी जी भी प्रसन्न होती हैं। सभी पापों से मुक्ति और भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत को सौभाग्य देने वाला व्रत भी कहा जाता है।
एकादशी पर सुबह जल्दी उठें
ग्रंथों में बताया गया है कि वरूथिनी एकादशी का व्रत करने वाले को एक दिन पहले से ही यानी दशमी तिथि से ही नियम पालन करने पड़ते हैं। फिर एकादशी सुबह जल्दी उठ जाना चाहिए। नहाने के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं।इसके बाद भगवान विष्णु के मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जाप करें। भगवान विष्णु के साथ ही लक्ष्मीजी की पूजा करें। दक्षिणावर्ती शंख में केसर मिश्रित दूध भरें और अभिषेक करें।विष्णुजी के पीले वस्त्र चढ़ाएं। श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं। फिर माता-पिता का आशीर्वाद लें। व्रत करने वाले व्यक्ति को इस दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए, फलाहार करना चाहिए।
स्नान और दान का महत्ववरूथिनी एकादशी पर सूर्योदय से पहले उठकर तीर्थ या पवित्र नदियों में स्नान का महत्व है। महामारी के कारण यात्राओं और तीर्थ स्नान से बचना चाहिए। इसके लिए घर में ही पानी में गंगाजल की दो बूंद डालकर नहा सकते हैं। फिर व्रत और दान का संकल्प लिया जाता है। इस पवित्र तिथि पर मिट्टी के घड़े को पानी से भरकर उसमें औषधियां और कुछ सिक्के डालकर उसे लाल रंग के कपड़े से बांध देना चाहिए। फिर भगवान विष्णु और उसकी पूजा करनी चाहिए। इसके बाद उस घड़े को किसी मंदिर में दान कर देना चाहिए।
श्रेष्ठ दान का फल देती है वरुथिनी एकादशीवरुथिनी एकादशी पर व्रत करने वाले को अच्छे फल की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस व्रत को धारण करने से इस लोक के साथ परलोक में भी सुख की प्राप्ति होती है। ग्रंथों के अनुसार इस दिन तिल, अन्न और जल दान करने का सबसे ज्यादा महत्व है। ये दान सोना, चांदी, हाथी और घोड़ों के दान से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। अन्न और जल दान से मानव, देवता, पितृ सभी को तृप्ति मिल जाती है। शास्त्रों के अनुसार कन्या दान को भी इन दानों के बराबर माना जाता है।
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