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बड़ा झटका: मराठों को नहीं मिलेगा 10 फीसदी आरक्षण, सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त किया राज्य सरकार का फैसला

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राजीव सिन्हा, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: प्रशांत कुमार
Updated Wed, 05 May 2021 11:17 AM IST

सार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मराठा समुदाय के लोगों को शैक्षणिक व सामाजिक रूप से पिछड़ा नहीं करार दिया जा सकता। शीर्ष कोर्ट ने 50 फीसदी आरक्षण की सीमा लांघने को समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताया है।

सर्वोच्च न्यायालय
– फोटो : पीटीआई

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सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर महाराष्ट्र सरकार को बड़ा झटका दिया है। शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र में मराठों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण देने के राज्य सरकार के निर्णय को निरस्त कर दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इंदिरा साहनी मामले पर फिर से विचार करने की जरूरत नहीं है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण देने से आरक्षण की अधिकतम सीमा (50 फ़ीसदी) को पार करती है, लिहाजा यह असंवैधानिक है। पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के अलावा न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट भी शामिल हैं। बेंच ने 50 फीसदी आरक्षण की सीमा लांघने को समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

मराठा समुदाय को पिछड़ा करार नहीं दिया जा सकता- सुप्रीम कोर्टसुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मराठाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को पार करने के लिए न तो गायकवाड़ आयोग और न ही हाईकोर्ट के पास कोई पुख्ता आधार था । लिहाजा हमें नही  लगता कि ऐसी कोई अप्रत्याशित स्थिति उत्पन्न हुई थी कि आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को लांघा जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मराठा समुदाय के लोगों को शैक्षणिक व सामाजिक रूप से पिछड़ा नहीं करार दिया जा सकता ऐसे में उन्हें आरक्षण के दायर में लाना सही नहीं है। इससे पहले बंबई हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा था। मालूम हो कि मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने के सरकार के निर्णय को कई लोग व संगठनों ने चुनौती दी थी।

राज्य सरकार को झटकायाचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के आदेश की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि क्या हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की पीठ के निर्णय (मंडल कमीशन मामले) के मानने को बाध्य नहीं है, जिसमें 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय की गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि मराठा आरक्षण देने से आरक्षण 73 फ़ीसदी जा पहुंची है, ऐसे में सामान्य वर्ग के लोगों के लिए अवसर बेहद कम हो गए हैं।

केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के फैसले को सही बताया थागौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने के राज्य सरकार के निर्णय को सही बताया था। केंद्र का कहना था कि महाराष्ट्र सरकार के पास मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने का विधायी अधिकार प्राप्त है और उसके द्वारा लिया गया यह निर्णय संवैधानिक है

विस्तार

सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर महाराष्ट्र सरकार को बड़ा झटका दिया है। शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र में मराठों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण देने के राज्य सरकार के निर्णय को निरस्त कर दिया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि इंदिरा साहनी मामले पर फिर से विचार करने की जरूरत नहीं है। जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि मराठा समुदाय को 10 फीसदी आरक्षण देने से आरक्षण की अधिकतम सीमा (50 फ़ीसदी) को पार करती है, लिहाजा यह असंवैधानिक है। पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ में न्यायमूर्ति अशोक भूषण के अलावा न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति एस रवीन्द्र भट भी शामिल हैं। बेंच ने 50 फीसदी आरक्षण की सीमा लांघने को समानता के मौलिक अधिकार के खिलाफ बताया है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 26 मार्च को मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। 

मराठा समुदाय को पिछड़ा करार नहीं दिया जा सकता- सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि मराठाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को पार करने के लिए न तो गायकवाड़ आयोग और न ही हाईकोर्ट के पास कोई पुख्ता आधार था । लिहाजा हमें नही  लगता कि ऐसी कोई अप्रत्याशित स्थिति उत्पन्न हुई थी कि आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को लांघा जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मराठा समुदाय के लोगों को शैक्षणिक व सामाजिक रूप से पिछड़ा नहीं करार दिया जा सकता ऐसे में उन्हें आरक्षण के दायर में लाना सही नहीं है। इससे पहले बंबई हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र के शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मराठा समुदाय को आरक्षण देने के राज्य सरकार के फैसले को बरकरार रखा था। मालूम हो कि मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने के सरकार के निर्णय को कई लोग व संगठनों ने चुनौती दी थी।

राज्य सरकार को झटका
याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के आदेश की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा था कि क्या हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की पीठ के निर्णय (मंडल कमीशन मामले) के मानने को बाध्य नहीं है, जिसमें 50 फीसदी आरक्षण की सीमा तय की गई थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि मराठा आरक्षण देने से आरक्षण 73 फ़ीसदी जा पहुंची है, ऐसे में सामान्य वर्ग के लोगों के लिए अवसर बेहद कम हो गए हैं।

केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के फैसले को सही बताया था
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने के राज्य सरकार के निर्णय को सही बताया था। केंद्र का कहना था कि महाराष्ट्र सरकार के पास मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने का विधायी अधिकार प्राप्त है और उसके द्वारा लिया गया यह निर्णय संवैधानिक है

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