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कोरोना में सांसों का संकट: आखिर जरूरत से ज्यादा उत्पादन करने वाले भारत में क्यों पैदा हुआ इतना बड़ा ऑक्सीजन संकट? अब इस चुनौती से कैसे निपटा जा रहा है

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Hindi NewsDb originalAfter All, Why Did Such A Huge Oxygen Crisis Arise In Over producing India? Now How Is This Challenge Being Dealt?

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नई दिल्ली34 मिनट पहलेलेखक: पूनम कौशल

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भारत अब तक जरूरत से अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन करता रहा था, लेकिन कोविड की दूसरी लहर ने भारत में इस समय अभूतपूर्व ऑक्सीजन संकट खड़ा कर दिया है। देश के कई हिस्सों में अस्पताल पर्याप्त ऑक्सीजन पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। अलग-अलग राज्यों के अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से मरीजों के तड़प-तड़प कर मरने की खबरें आ रही हैं। इसी बीच रोजाना कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा बढ़कर साढ़े तीन लाख को पार कर गया है। इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक भारत की ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता बढ़कर 9 हजार मीट्रिक टन प्रतिदिन हो गई है।

तो अपनी जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन उत्पादन करने वाले भारत में ऑक्सीजन संकट क्यों है? इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि भारत में ऑक्सीजन संकट की वजह उत्पादन क्षमता नहीं बल्कि ट्रांसपोर्टेशन के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का न होना है।

ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के कानपुर की है, जहां लोग ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए लाइन लगाए खड़े हैं। यूपी के ज्यादातर शहरों में इस समय ऑक्सीजन का संकट है।

ये तस्वीर उत्तर प्रदेश के कानपुर की है, जहां लोग ऑक्सीजन सिलेंडर के लिए लाइन लगाए खड़े हैं। यूपी के ज्यादातर शहरों में इस समय ऑक्सीजन का संकट है।

पूर्वी राज्यों में ज्यादा उत्पादन, मध्य भारत में कमभारत में अधिकतर ऑक्सीजन का उत्पादन ओडिशा और झारखंड जैसे पूर्वी राज्यों में होता है। दिल्ली, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में ऑक्सीजन का उत्पादन जरूरत की तुलना में बेहद कम है। उत्तरी और मध्य राज्यों में ऑक्सीजन संकट की एक बड़ी वजह ये भी है कि भारत में ऑक्सीजन उत्पादित करने वाली अधिकतर यूनिटें देश के पूर्वी हिस्से में हैं जो राजधानी दिल्ली से एक हजार से अधिक किलोमीटर तक दूर हैं।

हवाई मार्ग से भी सिर्फ खाली क्रायोजैनिक टैंक को ही ले जाया जा सकता हैऑक्सीजन के ट्रांसपोर्ट में एक और बड़ी दिक्कत ये है कि जिन क्रायोजैनिक टैंक का इस्तेमाल इसके ट्रांसपोर्ट में किया जाता है उसे बनाना भी आसान नहीं है। एक टैंक के निर्माण में चार से छह महीनों तक का समय लग जाता है। हवाई मार्ग से भी सिर्फ खाली क्रायोजैनिक टैंक को ही ले जाया जा सकता है। भारतीय वायुसेना ऐसा करके एक तरफ का समय जरूर कम कर सकती है। भरे हुए टैंकों को ट्रेन या ट्रक के जरिए ले जाया जा सकता है।

सीआईआई के एक अधिकारी कहते हैं, ‘ओडिशा या झारखंड से ऑक्सीजन उत्तर भारत के प्रदेशों में टैंकरों के जरिए लाने में आमतौर पर पांच से सात दिन लग जाते हैं। ऐसे में एयरफोर्स की मदद भी ली जा रही है जो खाली टैंकरों को प्लांट तक पहुंचा रही है। विमान खाली क्रायोजैनिक टैंक को तो ले जा सकते हैं लेकिन भरे हुए टैंकों को नहीं।’

वहीं स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया लिमिटेड अपने भिलाई, बोकारो, दुर्गपुर और बर्नपुर स्टील प्लांटों से अगस्त से अब तक करीब 40 हजार मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन की आपूर्ति कर चुकी है। भारत के कई राज्य इन प्लांटों से मिलने वाली ऑक्सीजन पर निर्भर हैं जिनमें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश भी शामिल हैं।

मौजूदा ऑक्सीजन संकट से निबटने के लिए कंफेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज ने एक टास्क फोर्स का गठन किया है। इससे जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक सीआईआई इस समय रोजाना तीन हजार मीट्रिक टन तक ऑक्सीजन मेडिकल इस्तेमाल के लिए दे रही है।

ऑक्सीजन सप्लाई को सामान्य करने के लिए एयर लिफ्ट का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन जहाज में सिर्फ खाली टैंकर को ही लाया जाता है। इससे सिर्फ खाली टैंकर को प्लांट तक पहुंचाने का वक्त कम होता है।

ऑक्सीजन सप्लाई को सामान्य करने के लिए एयर लिफ्ट का सहारा लिया जा रहा है, लेकिन जहाज में सिर्फ खाली टैंकर को ही लाया जाता है। इससे सिर्फ खाली टैंकर को प्लांट तक पहुंचाने का वक्त कम होता है।

सीआईआई से जुड़ी रिलायंस इंडस्ट्रीज रोजाना सात सौ मैट्रिक टन ऑक्सीजन गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दमन, दीव और नागर हवेली को भेज रही है। वहीं, जेएसडब्ल्यू स्टील रोजाना एक हजार मीट्रिक टन उत्पादन कर रही है और क्षमता बढ़ाने पर काम कर रही है। कंपनी महाराष्ट्र, तमिलनाडु और कर्नाटक के अपने प्लांटों से अप्रैल में बीस हजार मीट्रिक टन ऑक्सीजन सप्लाई का आंकड़ा पार कर लेगी।

सीआईआई टास्कफोर्स के चैयरमैन और जेएसडब्ल्यू स्टील के सीएफओ और ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर एमवीएस शेशागिरी राव के मुताबिक, ‘टास्क फोर्स ने सरकार को जीटूजी यानी सरकार के बीच मैकेनिज्म स्थापित करने की सलाह भी दी है ताकि मौजूदा स्वास्थ्य आपातकाल में मित्र देशों का सहयोग लिया जा सके। टास्क फोर्स स्टील प्लांटों से ऑक्सीजन सप्लाई को बढ़ाने के प्रयास भी कर रही है।’ भारत सरकार ने 50,000 टन लिक्विड ऑक्सीजन आयात करने का टेंडर भी दिया है। सीआईआई के एक अधिकारी के मुताबिक ये ऑक्सीजन भारत तक पहुंचने में कम से कम दो सप्ताह का समय तो लग ही जाएगा।

ऑक्सीजन मूलतः तीन तरह से उत्पादित की जाती है। बड़े-बड़े एयर सेपरेशन यूनिटों में, मध्यम स्तर के प्रेशर स्विंग एडसर्प्शन (पीएसए) यूनिटों में और छोटे-छोटे ऑक्सीजन कंसंट्रेटर में जो आमतौर पर घरों या अस्पतालों में इस्तेमाल किए जाते हैं। भारत में इनॉक्स एयर सबसे बड़ी ऑक्सीजन निर्माता कंपनी है जो देश में अपने 44 प्लांट में ऑक्सीजन निर्मित करती है। कोविड संकट से पहले कंपनी 2000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन उत्पादन कर रही थी, जिसे अस्पतालों और उद्योगों में भेजा जा रहा था। कंपनी के सबसे ज्यादा चार प्लांट महाराष्ट्र में हैं जबकि गुजरात में तीन प्लांट हैं।

सड़क मार्ग से ऑक्सीजन टैंकरों को ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों से यूपी और दिल्ली तक लाने में चार से पांच दिन लगते हैं। इस समय को कम करने के लिए ऑक्सीजन रेल चलाई गई है, जिसे ग्रीन कॉरिडोर उपलब्ध कराया गया है।

सड़क मार्ग से ऑक्सीजन टैंकरों को ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों से यूपी और दिल्ली तक लाने में चार से पांच दिन लगते हैं। इस समय को कम करने के लिए ऑक्सीजन रेल चलाई गई है, जिसे ग्रीन कॉरिडोर उपलब्ध कराया गया है।

कंपनी के निदेशक सिद्धार्थ जैन के मुताबिक अब कंपनी रोजाना 2400 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन कर रही है और 800 अस्पतालों को आपूर्ति दे रही है। जैन के मुताबिक, ‘कंपनी अपनी क्षमता के सर्वोच्च उत्पादन पर पहुंच चुकी है और अब और अधिक उत्पादन नहीं कर सकती है। भारत में चुनौती उत्पादन की नहीं बल्कि ट्रांसपोर्टेशन की है। किसी ने सोचा नहीं था कि महामारी इस तरह आएगी और लंबी दूरी तक बड़ी तादाद में ऑक्सीजन भेजने की जरूरत होगी।’

इनॉक्स एयर 550 क्रायोजैनिक टैंकरों के जरिए देशभर में ऑक्सीजन की आपूर्ती करती है। ऑक्सीजन का ट्रांसपोर्ट करने के लिए इन विशेष टैंकों की ज़रूरत होती है, जिन्हें बनाना भी आसान नहीं हैं। एक टैंक बनाने में चार से छह महीनों तक का समय लग जाता है। यही वजह है कि अब विदेश से टैंक आयात करने की कोशिशें भी की जा रही हैं। सीआईआई टास्क फोर्स के अध्यक्ष टीवी नरेंद्रन ने कहा, ‘सबसे बड़ी समस्या क्रायोजैनिक कंटेनरों की है। टाटा 36 क्रायोजैनिक वाहन आयात कर रही है। टाटा स्टील 600 मैट्रिक टन ऑक्सीजन अस्पतालों को भेज रही है।

‘छोटे प्लांट दे रहे बड़ी राहतछोटे ऑक्सीजन प्लांट भी मुसीबत के इस समय में राज्यों को बड़ी राहत दे रहे हैं। छत्तीसगढ़ के भिलाई में स्थित अतुल ऑक्सीजन रोजाना 36 मैट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन कर रही है जिससे पांच हजार तक सिलेंडर भरे जा रहे हैं।

कंपनी के प्रबंधन जुगल सिखधर के मुताबिक उनकी यूनिट रायपुर और आसपास के जिलों को ही ऑक्सीजन दे रही है और बाहरी राज्यों को सप्लाई नहीं कर रही है। सिखधर के मुताबिक, ‘हमारे चार प्लांट हैं, जिनकी क्षमता 1000 से 1200 सिलेंडरों तक की है। अभी सभी ऑक्सीजन मेडिकल इस्तेमाल के लिए दी जा रही है। औद्योगिक गतिविधियां बंद हैं।’ वहीं, उत्तर प्रदेश के हमीरपुर में रिमझिम इस्पात के मालिक योगेश अग्रवाल के मुताबिक उनका प्लांट रोजाना 25 हजार सिलेंडर ऑक्सीजन मेडिकल उत्पाद के लिए दे रहा है।

दिल्ली में ऑक्सीजन संकट इस कदर गहरा है कि एक गुरुदारे में उपलब्ध ऑक्सीसजन सिलेंडरों से लोग कार में बैठे मरीजों को ऑक्सीजन दे रहे थे।

दिल्ली में ऑक्सीजन संकट इस कदर गहरा है कि एक गुरुदारे में उपलब्ध ऑक्सीसजन सिलेंडरों से लोग कार में बैठे मरीजों को ऑक्सीजन दे रहे थे।

योगेश अग्रवाल कहते हैं, ‘हम रोजाना 25 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन कर रहे हैं और अपनी क्षमता के सर्वोच्च पर पहुंच गए हैं। यूपी के अधिकतर जिलों के सिलेंडर हमारे पास पहुंच रहे हैं और अब गाड़ियों को यहां इंतजार करना पड़ रहा है। हम सभी को ऑक्सीजन देने की कोशिश कर रहे हैं। ‘

रिमझिम इस्पात कानपुर और लखनऊ समेत यूपी के कई जिलों को ऑक्सीजन सप्लाई कर रहा है। योगेश अग्रवाल के मुताबिक उनके प्रबंधन और लेबर से जुड़े कई लोग कोरोना संक्रमित हो गए हैं, जिससे ऑक्सीजन सप्लाई थोड़ा प्रभावित हुई है।

यूपी में बिजली महंगी, इसलिए ऑक्सीजन प्लांट कमयोगेश अग्रवाल कहते हैं कि यूपी में बड़े ऑक्सीजन प्लांट न होने की एक वजह यह है कि यूपी में बाकी राज्यों के मुकाबले बिजली महंगी हैं। योगेश कहते हैं, ‘हमारी कंपनी चार सौ मीट्रिक टन उत्पादन की यूनिट लगाने की योजना पर काम कर रही थी, लेकिन महंगी बिजली की वजह से योजना रद्द करनी पड़ी। यदि हमारा प्लांट लग गया होता तो हम पूरे प्रदेश को ऑक्सीजन दे पाते।’

केंद्र सरकार लगा रही है प्रेशर स्विंग एडसर्प्शन (पीएसए) प्लांटकेंद्र सरकार ने अलग-अलग प्रदेशों के अस्पतालों में 162 प्रेशर स्विंग एडसर्प्शन ऑक्सीजन प्लांट स्वीकृत किए हैं जिनमें से उत्तर प्रदेश में 14 प्लांट लगाए जाने हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक ये प्लांट 154 मैट्रिक टन ऑक्सीजन का उत्पादन करेंगे। इनमें से तैंतीस प्लांट लगाए जा चुके हैं।

सरकार के मुताबिक इस माह के अंत तक 59 प्लांट स्थापित हो जाएंगे जबकि अगले माह के अंत तक 80 प्लांट चलने लगेंगे। सरकार इन 162 प्लांटों पर 201 करोड़ रुपए खर्च कर रही है। भारत सरकार ने देश भर में कुल 551 पीएसए ऑक्सीजन प्लांटों के लिए पीएम केयर फंड से पैसा देने को मंजूरी दी है, लेकिन इन्हें चालू होने में अभी और समय लगेगा।

कैसे खत्म होगा ऑक्सीजन संकटविशेषज्ञों के मुताबिक भारत में ऑक्सीजन संकट की सबसे बड़ी वजह मजबूत परिवहन ढांचा न होना है। सरकार और इंडस्ट्री इसी दिशा में प्रयास कर रही हैं। कई देशों से क्रायोजैनिक कंटेनर लाए जा रहे हैं। ऑक्सीजन ट्रेन भी चलाई गई हैं।

सीआईआई के मुताबिक सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफेक्चरर (एसआईएएम) ऑक्सीजन परिवहन करने वाले वाहनों के इकोसिस्टम को सैनिटाइज और अधिक अलर्ट कर रही है ताकि परिवहन समय को कम किया जा सके। कनेक्टेड व्हिकल और ट्रैक एंड ट्रैस जैसी तकनीक को लागू किया जा रहा है। इन वाहनों के संचालन के लिए हर तरह का सहयोग दिया जा रहा है।

भारतीय वायुसेना और रेल नेटवर्क भी इन वाहनों के परिवहन में मदद कर रहे हैं। सीआईएए के एक अधिकारी के मुताबिक, ‘फोकस परिवहन समस्या के समाधान पर है। क्रायोजैनिक टैंक आयात करना भी एक विकल्प है। सहयोगी देशों से भी मदद मांगी जा रही है।’

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