May 7, 2024 : 2:03 AM
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रमजान पर दिल्ली से ग्राउंड रिपोर्ट: मुंबई से उलट यहां गलियों में सन्नाटा, लोग घरों में पढ़ रहे नमाज; लेकिन वैक्सिनेशन के लिए रोजा खत्म होने का इंतजार

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जामिया नगर, नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: पूनम कौशल

देश में डरावनी शक्ल लेते जा रहे कोरोना के हालात का जायजा लेने के लिए दैनिक भास्कर की टीम दिल्ली के जामिया नगर पहुंची। यह रमजान का वक्त है और दिल्ली में इस समय लॉकडाउन लगा है।

हमने जामिया नगर में कोरोना की स्थिति, वैक्सीनेशन और सरकारी प्रयासों के बारे में जानने की कोशिश की।

आइए, जानते हैं…रमजान और लॉकडाउन सीरीज की तीसरी रिपोर्ट में दिल्ली के जामियानगर का हाल…

सामान्य दिनों में रमजान के दौरान जामिया नगर के बटला हाउस इलाके में पैर रखने की जगह भी नहीं होती है। इस समय यहां बाजार में लोग तो हैं, लेकिन पहले जैसी भीड़ नहीं हैं। लॉकडाउन का भी असर इलाके पर दिख रहा है।

बटला हाउस चौक पर रुह-अफजा शर्बत का पुराना ठेला है। पहले इफ्तार के बाद लोग यहां ठंडा शर्बत पीने जुटते थे, लेकिन फिलहाल यहां सन्नाटा है।

मस्जिद के बाहर टोपी, इत्र और इबादत से जुड़ी दूसरी चीजों की दुकान लगाने वाले मोहम्मद तफज्जुल आलम भी खाली बैठे हैं। वे कहते है, ‘पहले से ही कारोबार डाउन था। लॉकडाउन के बाद कारोबार अब बीस प्रतिशत भी नहीं रह गया है।’

बटला हाउस के पास शरबत के इस पुराने ठेले पर रमजान के दिनों में भीड़ लगी रहती थी, लेकिन फिलहाल यहां सन्नाटा नजर आता है।

बटला हाउस के पास शरबत के इस पुराने ठेले पर रमजान के दिनों में भीड़ लगी रहती थी, लेकिन फिलहाल यहां सन्नाटा नजर आता है।

आलम की दुकान के ठीक सामने ही मस्जिद है, लेकिन कई बार वो दुकान में ही नमाज पढ़ लेते हैं। वो कहते हैं, ‘कोशिश करते हैं कि लोगों से बच कर रहें, ज्यादा भीड़भाड़ न हो।’

WHO ने कोरोना महामारी में रमजान के दौरान सलाह जारी की है कि सेहतमंद लोगों के रोजा रखने में कोई दिक्कत नहीं है। बस सहरी के वक्त का खान-पान ठीक से किया जाए।

जाकिर नगर में कपड़ों की दुकान चलाने वाले मोहम्मद फरहान पूरे रोजे रखते हैं। वो कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि रोजे की वजह से मेरी बॉडी कमजोर होगी। रोजा तो सेहत के हिसाब से भी बहुत कुछ देता है। ये हमें सब्र करना सिखाता है।’

फरहान कहते है कि पूरी सावधानी रखने की कोशिश करते हैं, लेकिन बाहर तो निकलना ही पड़ता है। घर चलाना है तो थोड़ा रिस्क तो लेना ही पड़ेगा। फिलहाल लॉकडाउन लग गया है तो कमाई पर भी असर पड़ा ही है।

यहां एक बड़ी मस्जिद के बाहर टोपियां बेचने वाले एक बुजुर्ग उदास हैं। वे कहते हैं कि पहले तो थोड़ी चहल-पहल रहती थी, लोग आते थे, लेकिन लॉकडाउन के बाद सन्नाटा है। उम्मीद थी कि रमजान में अच्छा काम होगा और चार पैसे कमाएंगे। जब मस्जिद में नमाजी ही नहीं आएंगे तो टोपियां कैसे बिकेंगी।

मस्जिदों में नमाजियों की संख्या सीमित की गई

जामा मस्जिद, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के बाहर पोस्टर लगा है। जिस पर लिखा है- एक बार में सिर्फ 60 लोग ही मस्जिद में नमाज पढ़ सकते हैं। कुछ लोगों ने बताया कि लॉकडाउन लगने के बाद तो इक्का-दुक्का लोग ही आपको मस्जिद में दिखेंगे।

हम मस्जिद का वीडियो लेने की कोशिश करते हैं, लेकिन नमाज पढ़ने आए लोग हमसे फोन लेकर वीडियो डिलीट करा देते हैं। उन्हें डर है कि कहीं वीडियो के सहारे उनकी निगेटिव इमेज न पेश की जाए।

दिल्ली की जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर युवाओं का एक समूह पैक की गई इफ्तारी किट बांट रहा है। इन युवाओं ने चेहरे पर मास्क और हाथों में दस्ताने पहने हुए हैं। आम तौर पर रमजान के दौरान सामूहिक इफ्तारी का आयोजन किया जाता है जिसमें लोग एक साथ बैठकर खाते हैं, लेकिन कोरोना महामारी के इस दौर में बहुत कुछ बदल गया है। रमजान पर भी इसका असर नजर आ रहा है।

जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर अजहर रमजान की इफ्तारी वाले पैकेट बांट रहे हैं। अजहर बताते हैं कि हम लोगों को समझा रहे हैं कि इस समय घर में ही नमाज पढ़ना बेहतर है।

जामिया यूनिवर्सिटी के बाहर अजहर रमजान की इफ्तारी वाले पैकेट बांट रहे हैं। अजहर बताते हैं कि हम लोगों को समझा रहे हैं कि इस समय घर में ही नमाज पढ़ना बेहतर है।

इस्लामिक स्कॉलर और सोशल एक्टिविस्ट बासित जमाल जामिया नगर इलाके में मुसलमान युवाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने की जगह घरों में नमाज पढ़ने की हिदायत दे रहे हैं।

बासित कहते हैं, ‘हमारे देश में लोग धर्म को लेकर भावुक हो जाते हैं। जब आप उन्हें लॉजिक या तर्क से समझाते हैं तो वो मानते नहीं हैं, लेकिन हम लोगों को समझाने के लिए हदीस का इस्तेमाल कर रहे हैं।’

बासित कहते हैं, ‘पैगंबर साहब की एक हदीस है कि जब रात को ठंड और बारिश होती थी, तब सुबह की अजान में पैंगबर साहब एक लाइन जुड़वा देते थे कि लोग अपने घरों में ही नमाज पढ़ें। बारिश और ठंड की वजह से लोगों में सर्दी-जुकाम होने की संभावना रहती है। जब सादा बुखार और जुकाम की वजह से लोगों को घर में नमाज पढ़ने की हिदायत दी गई है तो आप समझिए कोविड तो जुकाम और बुखार से कई गुना गंभीर है।’

वैक्सीन को लेकर जागरूकता नहीं

जामिया नगर की मस्जिदों और बाजार में भीड़ नहीं दिखती है। इसकी एक वजह दिल्ली में सख्ती से लागू किया गया लॉकडाउन भी है, लेकिन जब हम लोगों से कोरोना वैक्सीन के बारे में बात करते हैं तो उन्हें इसका ज्यादा पता नहीं होता।

ज्यादातर लोग वैक्सीन कैसे, कब और किनको लग रही है, इस बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं। जिन लोगों को वैक्सीनेशन की जानकारी है, उनमें से ज्यादातर ने कहा कि अब रोजे के बाद ही वैक्सीन लगवाएंगे।

दुनिया में मुसलमानों की सबसे बड़ी फतवा संस्था मिस्र की अल अजहर यूनिवर्सिटी ने फतवा जारी कर रमजान के दौरान वैक्सीन लगवाने को हलाल करार दिया है। भारत में भी कई धर्मगुरुओं ने मुसलमानों से रमजान के दौरान वैक्सीन न लगवाने की अपील की है।

क्या इन अपीलों का कुछ असर दिख रहा है? इसके जवाब में जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी में वैक्सीनेशन सेंटर की नोडल ऑफिसर प्रोफेसर अक्शा शेख कहती हैं, ‘लोगों में ये डर तो रहता है कि रमजान में वैक्सीन लगवाएं या नहीं क्योंकि ऐसा करने से उन्हें चक्कर आ सकता है या बुखार आ सकता है। हम लोगों को लगातार समझा रहे हैं कि धार्मिक नजरिए से रमजान में वैक्सीन लगवाने से कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन फिर भी लोग रमजान में वैक्सीन या कोई दवा लेने से बचते हैं।’

वे आगे कहती हैं, ‘लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि रमजान में कोई मुसलमान इंजेक्शन नहीं लगवा रहा है। काफी लोग सेंटर पर ऐसे आए हैं, जिन्होंने रोजा रख रखा था और दूसरा डोज भी लगवाया।’ वैक्सीन सेंटर का रिकॉर्ड देखकर अक्शा बताती है, ‘करीब-करीब उतने ही लोग वैक्सीन लगवाने आ रहे हैं, जितने पहले आते थे। ऐसे में हम यह नहीं कह सकते कि रमजान कि वजह से वैक्सीनेशन की रफ्तार कम हो गई है।’

इस्लामिक स्कॉलर बासित कहते हैं कि शिक्षित और मिडिल क्लास तो वैक्सीन और कोरोना प्रोटोकॉल को लेकर थोड़ा-बहुत जागरूक है, लेकिन मुसलमानों की गरीब बस्तियों में जागरूकता की कमी है। सरकार और सामाजिक संस्थाओं को वहां कोरोना और वैक्सीन को लेकर फैले भ्रम दूर करने की बहुत जरूरत है।

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