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Hindi NewsInternationalThe Son, Who Roamed The World To The Cancer stricken Mother, Raised 1 Crore By Selling Food; If The Lost Legs In The Blast, Then People With Disabilities Made Up Of Fake Feet
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3 घंटे पहले
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डस्टिन ने मां से खाना बनाना सीखा, अब उसी से कर रहे मां का सपना पूरा।
अमेरिका के फिलाडेल्फिया में रहने वाले डस्टिन वाइटल इन दिनों बेहद खुश है और साल के अंत में मिस्र के पिरामिड देखने जाने की तैयारियां अभी से शुरू कर दी हैं। लेकिन इसकी वजह भावुक कर देने वाली है। दरअसल, डस्टिन की मां ग्लोरिया को ब्लैडर का कैंसर है और उनकी स्थिति काफी गंभीर है। वे रोज अपनी नौकरी के अलावा मां की देखभाल, दवा और खाना बनाने से लेकर खिलाने तक का काम करते हैं।
पिछले साल उनकी मां को ब्लैडर के कैंसर का पता चला और डॉक्टर ने कहा कि वे ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहेंगी। ग्लोरिया का सबसे बड़ा सपना पिरामिड देखने का है, लेकिन परिवार का रोज का खर्च उठाना ही इतना मुश्किल है कि मिस्र जाना तो सपना ही रह जाता। लेकिन स्कूल टीचर बेटे डस्टिन इसे पूरा करने वाले हैं।
जब डस्टिन को मां की बीमारी का पता चला, तो दोनों टूट से गए, लेकिन फिर से हिम्मत जुटाई और डस्टिन अपनी मां का सपना पूरा करने में जुट गए। सैलरी से इसे पूरा करना असंभव था, इसलिए डस्टिन ने मां से खाना बनाना सीखा और जुट गए अपने मिशन में। उन्होंने बटर, चीज सैंडविच से इसकी शुरुआत की और कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों को बेचा। उनके जरिए दूसरे लोगों तक खबर पहुंची, तो डस्टिन के खाने की मांग बढ़ी और कुछ ही दिनों में उनके घर के बाहर कारों और ग्राहकों की लाइन लगने लगी।
हालात ये हो गए कि जगह कम पड़ने लगी। इसी बीच एक फूड ट्रक के मालिक ने उन्हें ट्रक इस्तेमाल के लिए दे दिया। इसके बाद तो डस्टिन का काम चल निकला। इसके बाद उन्होंने और ज्यादा मेहनत की और करीब 8-10 हफ्तों में उन्होंने परिवार के 14 लोगों की मिस्र की यात्रा का करीब एक करोड़ रुपए का खर्च जुटा लिया। इतना ही नहीं, इसके अलावा उन्होंने 18 हजार डॉलर (करीब 13 लाख रुपए) अतिरिक्त भी कमा लिए।
अब ग्लोरिया, डस्टिन और उनके परिवार के 12 सदस्य इस साल के अंत में मिस्र जाने वाले हैं। इससे उत्साहत ग्लोरिया कहती हैं- इतनी खुशकिस्मत तो मिस्र की राजकुमारी क्लियोपेट्रा भी नहीं रही होंगी, जितनी मैं हूं। वहीं बेटे डस्टिन कहते हैं- अगर मेरी मां चांद पर जाने का सपना भी देखती, तो मैं उसे भी पूरा कर देता।
ब्लास्ट में पैर खोया, नकली पैर को नाम दिया ‘रोशनी’; दिव्यांगों की मदद में जुटीं
हीथर एबॉट अब तक 50 से ज्यादा दिव्यांगों को प्रोस्थेटिक अंग मुहैया करवा चुकी हैं।
बोस्टन, अमेरिका | 15 अप्रैल 2013 को मैरॉथन के दौरान धमाकों में 3 लोगों की मौत हो गई थी और 260 घायल हो गए थे। इसमें हीथर एबॉट ने एक पैर खो दिया था। अब वे दिव्यांगों की मदद में जुटी हैं और 50 से ज्यादा लोगों को प्रोस्थेटिक अंग मुहैया करवा चुकी हैं। हादसे को याद करते हुए हीथर बताती हैं- “ब्लास्ट के बाद 4 दिन में 3 सर्जरी के बाद मेरा सामना एक पीड़ादायक सवाल से हुआ- जिंदगी चाहिए या पैर? मैंने जिंदगी को चुना। मैंने अपने पहले प्रोस्थेटिक पैर को नाम दिया था- रोशनी।’
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