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पहाड़ का सब्र टूटने की वजह क्या?: उत्तराखंड में 13 ग्लेशियर झीलें बेहद संवेदनशील, सिर्फ 6 ग्लेशियर की निगरानी

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नई दिल्लीएक घंटा पहलेलेखक: अनिरुद्ध शर्मा

कॉपी लिंकउत्तराखंड में रविवार को हुए हादसे के बाद दो पावर प्रोजेक्ट बह गए। - Dainik Bhaskar

उत्तराखंड में रविवार को हुए हादसे के बाद दो पावर प्रोजेक्ट बह गए।

जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक देवभूमि में 486 ग्लेशियर झीलें

जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (GSI) के मुताबिक उत्तराखंड में 486 ग्लेशियर सूचीबद्ध हैं। इनमें से सिर्फ 6 की ही नियमित निगरानी हो पाती है। हालांकि वाडिया इंस्टिट्यूट का अनुमान है कि उत्तराखंड के क्षेत्र में करीब डेढ़ हजार ग्लेशियर मौजूद हैं। वाडिया इंस्टिट्यूट ही गंगोत्री, चौड़ाबाड़ी, डोरियानी, पिंडारी, दूनागिरी व कफनी ग्लेशियर पर रियल टाइम निगरानी करता है।

पर्यावरण पर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के सदस्य रहे भूविज्ञानी नवीन जुयाल ने कहा कि रविवार को हुई ग्लेशियर झील फटने की घटना प्राकृतिक थी। लेकिन हमें यह सचेत करती है कि इस क्षेत्र के ग्लेशियर व हिम-झीलों पर नियमित निगरानी रखने की सख्त जरूरत है। ताकि हमें यह पता चल सके कि उनमें किस तरह का विस्तार हो रहा है। ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि उसका किस इलाके में कितना असर होगा।

GSI के महानिदेशक डॉ. रंजीत रथ ने बताया कि केदारनाथ हादसे (जून, 2013) के बाद उत्तराखंड में 2014-16 के बीच हिमालय क्षेत्र की ग्लेशियर झीलों की सूची बनाई गई थी। इनमें से 13 ग्लेशियर झीलें बेहद संवेदनशील हैं, जिनमें ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (ग्लोफ) की संभावना सबसे अधिक है।

पांच साल में 1798 प्रोजेक्ट्स ने देश में पर्यावरण के नियम तोड़े

पिछले 5 साल में करीब 1798 प्रोजेक्ट्स ने पर्यावरण मंजूरी से जुड़ीं शर्तों का उल्लंघन किया है। सबसे ज्यादा 259 प्रोजेक्ट्स हरियाणा के हैं। महाराष्ट्र और उत्तराखंड के 200-200 प्रोजेक्ट्स हैं। सात राज्यों में 100 से ज्यादा परियोजनाओं में नियमों को तोड़ा गया है।

नियम तोड़ने वाले 72% प्रोजेक्ट इंफ्रा और उद्योग प्रोजेक्ट के हैं

नियम तोड़ने वाली परियोजनाओं में सबसे ज्यादा 72% हिस्सा औद्योगिक और इंफ्रा प्रोजेक्ट का है| उद्योग की 679 परियोजनाओं में नियमों का उल्लंघन किया गया। वहीं इन्फ्रास्ट्रक्चर और सीआरजेड की 626 परियोजनाएं, गैर-कोयला खनन वाली 305 और कोयला खनन से जुड़े 92 प्रोजेक्ट्स में नियमों की अनदेखी की गई। किसी भी प्रोजेक्ट में पर्यावरण मंजूरी के लिए केवल शर्तें तय करना ही काफी नहीं है। उसकी निगरानी और जब तक प्रोजेक्ट का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता, तब तक मंत्रालय की जिम्मेदारी बनी रहती है।

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