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न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Updated Fri, 08 Jan 2021 06:33 PM IST
खतरा बन रहा वायु प्रदूषण
– फोटो : पेक्सेल्स
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भारत और उसके पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश के लिए वायु प्रदूषण एक अलग किस्म का खतरा बनता जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण की वजह से इन तीनों देशों की गर्भवती महिलाओं में समय पूर्व प्रसव और गर्भपात का जोखिम बढ़ जाता है। शोध पत्रिका दि लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन में इन खतरों की ओर इशारा किया गया है।
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि इन तीन देशों में हर साल अनुमानित तौर पर 3,49,681 महिलाओं के गर्भपात का संबंध हवा में मौजूद अति सूक्ष्म कण पीएम 2.5 से जुड़ा हुआ है। भारत में मानक वायु गुणवत्ता में पीएम 2.5 कण की मौजूदगी 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा है। 2000-2016 के बीच क्षेत्र में कुल गर्भपात में इसकी हिस्सेदारी सात फीसदी थी।
वायु गुणवत्ता को लेकर डब्ल्यूएचओ के निर्देश के तहत 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा होने पर यह गर्भपात के 29 फीसदी से ज्यादा मामलों के लिए जिम्मेदार होता है। चीन के पीकिंग विश्वविद्यालय शोधकर्ता और अध्ययन के लेखक ताओ झू ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा गर्भपात की घटनाएं होती हैं, दुनिया में यह पीएम 2.5 से सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र है।’
ताओ झू ने कहा, ‘हमारे अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि खराब वायु गुणवत्ता के कारण क्षेत्र में गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। प्रदूषण के स्तर को घटाने के लिए तुरंत और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।’ उधर, चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज की तिआनजिया गुआन ने कहा कि गर्भपात के कारण महिलाओं की मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है।
गुआन ने कहा कि प्रसव बाद अवसाद, बाद के गर्भधारण में मृत्यु दर बढ़ने और खर्च बढ़ने की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि वायु प्रदूषण के कारण गर्भपात का खतरा भारत और पाकिस्तान के उत्तर के मैदानी क्षेत्रों में बढ़ गया है। पीएम 2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा की वृद्धि से गर्भपात का खतरा तीन फीसदी बढ़ता जाता है।
भारत और उसके पड़ोसी देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश के लिए वायु प्रदूषण एक अलग किस्म का खतरा बनता जा रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार वायु प्रदूषण की वजह से इन तीनों देशों की गर्भवती महिलाओं में समय पूर्व प्रसव और गर्भपात का जोखिम बढ़ जाता है। शोध पत्रिका दि लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित एक अध्ययन में इन खतरों की ओर इशारा किया गया है।
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि इन तीन देशों में हर साल अनुमानित तौर पर 3,49,681 महिलाओं के गर्भपात का संबंध हवा में मौजूद अति सूक्ष्म कण पीएम 2.5 से जुड़ा हुआ है। भारत में मानक वायु गुणवत्ता में पीएम 2.5 कण की मौजूदगी 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा है। 2000-2016 के बीच क्षेत्र में कुल गर्भपात में इसकी हिस्सेदारी सात फीसदी थी।
वायु गुणवत्ता को लेकर डब्ल्यूएचओ के निर्देश के तहत 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा होने पर यह गर्भपात के 29 फीसदी से ज्यादा मामलों के लिए जिम्मेदार होता है। चीन के पीकिंग विश्वविद्यालय शोधकर्ता और अध्ययन के लेखक ताओ झू ने कहा, ‘वैश्विक स्तर पर दक्षिण एशिया में सबसे ज्यादा गर्भपात की घटनाएं होती हैं, दुनिया में यह पीएम 2.5 से सबसे ज्यादा प्रदूषित क्षेत्र है।’
ताओ झू ने कहा, ‘हमारे अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला है कि खराब वायु गुणवत्ता के कारण क्षेत्र में गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। प्रदूषण के स्तर को घटाने के लिए तुरंत और प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है।’ उधर, चाइनीज एकेडमी ऑफ मेडिकल साइंसेज की तिआनजिया गुआन ने कहा कि गर्भपात के कारण महिलाओं की मानसिक, शारीरिक और आर्थिक स्थिति पर बुरा असर पड़ता है।
गुआन ने कहा कि प्रसव बाद अवसाद, बाद के गर्भधारण में मृत्यु दर बढ़ने और खर्च बढ़ने की दिक्कतों का भी सामना करना पड़ता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि वायु प्रदूषण के कारण गर्भपात का खतरा भारत और पाकिस्तान के उत्तर के मैदानी क्षेत्रों में बढ़ गया है। पीएम 2.5 के स्तर में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादा की वृद्धि से गर्भपात का खतरा तीन फीसदी बढ़ता जाता है।
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