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पॉल्यूशन कंट्रोल डे: हवा में बढ़ते जहर से हर साल 70 लाख मौतें, यह कोरोना और कैंसर से मौतें भी बढ़ा रहा; 8 तरीकों से इसे कंट्रोल करें

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3 घंटे पहलेलेखक: अंकित गुप्ता

कॉपी लिंकWHO कहता है, दुनियाभर में हर 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैंदुनिया में एक तिहाई मौतें एयर पॉल्यूशन के कारण होने वाली बीमारियों से हो रहीं

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की रिसर्च कहती है कि एयर पॉल्यूशन और कोरोना से होने वाली मौतों के बीच कनेक्शन है। अगर हवा में पीएम 2.5 पार्टिकल्स 1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर भी बढ़ता है तो कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या 8 फीसदी तक बढ़ सकती है।

दिल्ली में एयर पॉल्यूशन का लेवल विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों को पार कर चुका है। वैज्ञानिकों का कहना है, हवा में बढ़ता नाइट्रोजन ऑक्साइड और कारों से निकला हुआ धुआं जहर की तरह काम कर रहा है। इसका सीधा असर सांस की नली पर हो रहा है। यही कोरोना का भी एंट्री पॉइंट है इसलिए कोरोना का संक्रमण होने पर मौत का खतरा बढ़ता है।

आज नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल डे है। इस बार बात सिर्फ एयर पॉल्यूशन की, क्योंकि यह दम भी घोट रहा है और कोरोना से होने वाली मौतों का खतरा भी बढ़ा रहा है।

एयर पॉल्यूशन शरीर पर कैसे असर छोड़ रहा, पहले इसे समझें

WHO कहता है, दुनियाभर में हर 10 में से 9 लोग प्रदूषित हवा में सांस ले रहे हैं। जहरीली हो रही हवा से हर साल 70 लाख मौतें हो रही हैं। दुनियाभर में एक तिहाई मौतें एयर पॉल्यूशन के कारण होने वाले स्ट्रोक, लंग कैंसर और हार्ट डिसीज के कारण हो रही हैं।प्रदूषित हवा में बेहद बारीक पार्टिकल्स पाए जाते हैं, जिन्हें पीएम पार्टिकल्स कहते हैं। सांस लेने के दौरान ये सीधे फेफड़ों तक पहुंचकर नुकसान पहुंचाते हैं। इसके अलावा नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड और ओजोन कई तरह से शरीर को डैमेज कर रहे हैं।इन सभी चीजों का शुरुआती असर सांस की नली पर दिखता है। फेफड़ों के काम करने की क्षमता घटती है। अस्थमा का खतरा बढ़ता है। प्रदूषित हवा में मौजूद सल्फर डाई ऑक्साइड आंखों और स्किन पर जलन की वजह बनता है।

सिरदर्द, आंख, नाक और गले में जलन हो तो डॉक्टरी सलाह लें

इन्द्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल्स, नई दिल्ली के सीनियर पल्मोनोलोजिस्ट डॉ. राजेश चावला कहते हैं- एयर पॉल्यूशन कई तरह से शरीर पर बुरा असर छोड़ता है। सांस के रोग जैसे सीओपीडी, ब्रॉन्कियल अस्थमा के लक्षण गंभीर होने लगते हैं। थकान, सिरदर्द के अलावा आंख, नाक और गले में जलन हो सकती है। कार्डियोवेस्कुलर सिस्टम पर बुरा असर होता है। ऐसे लक्षण दिखने पर फिजिशियन की सलाह लें।

बेहतर होगा कि जिन जगहों पर पॉल्यूशन अधिक है, वहां जाने से बचें। अगर जाना जरूरी है तो चश्मा और मास्क लगाएं और वापस लौटने के बाद आंखों को सादे पानी से धोएं। कुछ आई ड्रॉप्स भी पॉल्यूशन का असर घटाते हैं, इसे एक्सपर्ट की सलाह से ले सकते हैं।

ये सावधानियां एयर पॉल्यूशन के असर को कम करेंगी

घर का वेंटिलेशन न बिगड़ने दें। बीच-बीच में घर की खिड़कियां खोल दें, ताकि ताजी हवा आती रहे।ऐहतियात के तौर पर मास्क जरूर पहनें। ये कोरोना के साथ प्रदूषण के असर को भी कुछ हद बचाने का काम करेगा।आंखों में जलन या खुजली होने पर रगड़े नहीं। पानी का छींटा मारकर आंखों को धोएं।सर्दियों में सुबह और शाम को पॉल्यूशन का लेवल अधिक होता है इसलिए खुले में एक्सरसाइज करने की जगह कमरे ही करें तो बेहतर है।

एयर पॉल्यूशन को कैसे कम कर सकते हैं, 8 तरीके जान लें

वाहन का इस्तेमाल कम कर सकते हैं। आसपास जाने के लिए साइकल भी बेहतर विकल्प है।लकड़ी, कचरा, सूखी पत्तियां और प्लास्टिक मत जलाएं, ये पॉल्यूशन का लेवल बढ़ाते हैं।घर में ऐसे इंडोर प्लांट्स लगाएं, जो एयर पॉल्यूशन को कम करें। जैसे- एरेका पाम, मनी प्लांट्स बॉस्टन फर्न, स्पाइडर प्लांट।बिजली बचाकर भी एयर पॉल्यूशन घटा सकते हैं। एनर्जी बचाने के लिए घर में फ्लोरोसेंट लाइट्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।कोशिश करें कि एयरकंडीशनर की जगह पंखे का ज्यादा इस्तेमाल करें, क्योंकि AC से कई तरह की जहरीली गैस रिलीज होती हैं।साल में कुछ दिन ऐसे तय करें जब आप पौधरोपण करें। खुद भी ऐसा करें और दूसरे लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करें।ऐसी चीजों का इस्तेमाल करें जिसे रीसाइकल किया जा सके, ये चीजें इकोफ्रेंडली होती हैं।घर के कचरे और पत्तियों को जलाने की जगह इससे खाद तैयार कर सकते हैं।

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