May 20, 2024 : 9:41 PM
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500 से ज्यादा लापता लोगों को अब तक घर पहुंचा चुके, जो बच्चा बोल-सुन नहीं सकता था, उसका घर भी ढूंढ निकाला

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  • More Than 500 Missing Have Been Brought Home So Far, The Child Who Could Not Speak And Hear, Also Brought Him To His Home

नईदिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: अक्षय बाजपेयी

राजेश कहते हैं कि मैं ये काम इसलिए कर रहा हूं कि क्योंकि ये मेरा जुनून है। पूरा खर्चा डिपार्टमेंट उठाता है।

  • स्टेट क्राइम ब्रांच पंचकूला में एएसआई हैं राजेश कुमार, 2013 से लापता लोगों को उनके परिवारों से मिलवाने का काम कर रहे
  • लॉकडाउन पीरियड में ही 53 लोगों को परिवार तक पहुंचाया, कहते हैं- बिछड़ों को अपनों से मिलवाना ही मेरा जुनून
  • देशभर के चाइल्ड केयर सेंटर्स में फोन करके जुटाते हैं मिसिंग केस की जानकारी

केतुक न बोल सकता है, न सुन सकता है। तीन साल पहले वो अपने परिवार से बिछड़ गया था और तभी से नजफगढ़ (दिल्ली) के आशा चाइल्ड होम में रह रहा था। 4 जनवरी को एक केस के सिलसिले में स्टेट क्राइम ब्रांच पंचकूला के एएसआई राजेश कुमार नजफगढ़ के इस चाइल्ड होम में पहुंचते हैं। चाइल्ड होम की देखरेख करने वाले राहुल राजेश को बताते हैं, ‘हमारे पास एक बच्चा है, जो बोल-सुन नहीं सकता, उसे उसके परिवार से मिलवाना है।’ राजेश केतुक से इशारों में बातचीत करते हैं। कुछ-कुछ डिटेल मिल पाती है। फिर बच्चे का डुप्लीकेट आधार कार्ड अप्लाई किया जाता है।

राजेश आधार सेंटर पर इसे सर्च करवाते हैं तो पता चलता है कि बच्चे का आधार कार्ड तीन बार अपडेट किया गया है। जहां-जहां परिवार रहा, वहां-वहां का एड्रेस अपडेट किया गया। सबसे आखिरी अपडेट मुजफ्फरपुर में हुआ था। फिर राजेश मुज्जफरपुर पुलिस से संपर्क करते हैं और बच्चे की तस्वीर भेजते हैं। थाने से पता चलता है कि केतुक मुज्जफरपुर से ही लापता हुआ है और उसकी लापता होने की रिपोर्ट भी दर्ज करवाई गई है। इसके बाद परिवार से संपर्क किया जाता है और बच्चे को उन्हें सौंप दिया जाता है।

राजेश सिर्फ बच्चोंं को ही नहीं बल्कि परिवार से बिछड़ चुकी लड़कियों, महिलाओं, पुरुषोंं को भी मिलाते हैं।

राजेश सिर्फ बच्चोंं को ही नहीं बल्कि परिवार से बिछड़ चुकी लड़कियों, महिलाओं, पुरुषोंं को भी मिलाते हैं।

राजेश कुमार के लिए लापता बच्चों को अपने परिवार से मिलवाने का ये पहला केस नहीं था, बल्कि वो पिछले 7 सालों में 500 से ज्यादा बच्चों, महिलाएं, पुरुषों को उनके परिवार से मिलवा चुके हैं। बिछड़ों को अपनों से मिलवाना ही उनका जुनून है। मार्च से लेकर अगस्त वाले लॉकडाउन पीरियड में ही वो 53 लोगों को उनके परिवारों से मिलवा चुके हैं। आपको लापता बच्चों की जानकारी कैसे मिलती है, और उन्हें कैसे मिलवा पाते हैं? यह पूछने पर राजेश ने बताया कि, मैं 2013 से पंचकूला के स्टेट क्राइम ब्रांच में काम कर रहा हूं। यहां मैं एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग सेल में काम करता हूं।

2013 में जब काम की शुरुआत की थी तो इसके बारे में कुछ पता नहीं था। तब सिर्फ हमारे पास जो केस आते थे, उनकी जानकारी ऊपर पहुंचाते थे। धीरे-धीरे मैंने लापता बच्चों से बातचीत करना शुरू की तो मन में आया कि इनके लिए जरूर कुछ करना चाहिए। वो कहते थे, अंकल हमें पापा से मिलवा दो। मैंने रुचि दिखाई तो अधिकारियों ने बताया कि काम करना चाहते हो तो चाइल्ड केयर सेंटर्स में जाना शुरू करो। वहां लापता बच्चे आते हैं। उनकी काउंसलिंग करो और परिवार से मिलवाओ।

लोकेशन फोन और इंटरनेट पर कंफर्म नहीं हो पाती तो राजेश संबंधित जगह में परिवार को ढूंढ़ने पहुंच जाते हैं।

लोकेशन फोन और इंटरनेट पर कंफर्म नहीं हो पाती तो राजेश संबंधित जगह में परिवार को ढूंढ़ने पहुंच जाते हैं।

फिर मैंने चाइल्ड केयर सेंटर्स में जाना शुरू कर दिया। वहां जाता था, बच्चों की काउंसलिंग करता था। उनकी डिटेल लेता था और फिर जो जानकारियां मिलती थीं, उनके जरिए संबंधित थाना क्षेत्र से संपर्क कर लापता लोगों को मिलवाता था। 2016 में मेरे पास एक बच्ची का केस आया था, जो मंदबुद्धि थी। वो सिर्फ बांग्ला भाषा ही जानती थी। ज्यादा कुछ बता नहीं पा रही थी, लेकिन कागज पर उसने अपने स्कूल का नाम लिख दिया। स्कूल का नाम इंटरनेट पर सर्च किया तो उस एरिया के बारे में पता चला। फिर वहां की पुलिस से संपर्क किया तो पता चला कि बच्ची पश्चिम बंगाल के चांदीपुर गांव की है और उसका परिवार अब गुड़गांव चला गया है। फिर गुड़गांव पुलिस में संपर्क करके उसके परिवार को ढूंढ़ा और बच्ची को उन्हें सौंप दिया।

राजेश कहते हैं, मैं अब सिर्फ पंचकूला में काम नहीं कर रहा बल्कि देशभर में मैंने नेटवर्क बना लिया है। ऐसे कैसे किया? बोले, तमाम राज्यों के चाइल्ड केयर सेंटर्स के नंबर मेरे पास हैं। सबका एक वॉट्सऐप ग्रुप बना लिया है। इस ग्रुप के जरिए अलग-अलग जगहों की जानकारियां मिलती हैं, और बच्चों को उनके घर तक पहुंचाने में बहुत आसानी हो गई है। मैं हर रोज किसी न किसी सेंटर पर कॉल करता हूं और पूछता हूं कि आपके यहां मिसिंग का कौन सा केस है। उस जानकारी के आधार पर सर्चिंग शुरू कर देता हूं। वॉट्सऐप ग्रुप बनने से ये फायदा भी हुआ है कि उसमें अलग-अलग प्रांतों के लोग जुड़े हैं तो लैंग्वेज की दिक्कत आती है तो बच्चों को उनसे कनेक्ट करवा देता हूं और जानकारी जुटा लेता हूं।

अब तक 500 से ज्यादा लोगों को मिला चुके हैं। इनमें अधिकांश वो बच्चे हैं, जो बस स्टैंड, ट्रेन, रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर परिवार से बिछड़ गए थे।

अब तक 500 से ज्यादा लोगों को मिला चुके हैं। इनमें अधिकांश वो बच्चे हैं, जो बस स्टैंड, ट्रेन, रेलवे स्टेशन जैसी जगहों पर परिवार से बिछड़ गए थे।

क्या ये काम आप नौकरी के अलावा कर रहे हैं? इस पर राजेश कहते हैं, बच्चों को परिवार से मिलवाना मेरा जुनून है, इसलिए ये कर रहा हूं। इसके साथ में मैं अपना काम भी करता रहता हूं। हालांकि, डिपार्टमेंट का पूरा सपोर्ट है। लापता के परिवार को ढूंढ़ने के लिए कहीं जाना भी होता है तो उसका पूरा खर्च डिपार्टमेंट ही उठाता है। वॉट्सऐप ग्रुप में सोशल वर्कर्स, सीसीआई मेम्बर्स, पुलिस यूनिट्स के लोगों को भी जोड़ रखा है। इससे फोटो और डिटेल डालते ही कोई न कोई क्लू मिल जाता है। राजेश मिसिंग चिल्ड्रन पंचकूला नाम का फेसबुक पेज भी चला रहे हैं। आपके परिवार का भी कोई लापता है तो आपको राजेश से उनके मोबाइल नंबर 94175 67221 पर कॉल कर मदद ले सकते हैं। इसके साथ ही चाइल्डलाइन 1098 पर भी कॉल कर मदद ले सकते हैं।

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