गोरखपुरएक घंटा पहले
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गोरखपुर के प्राथमिक स्कूल सिक्टौर खोराबार की सहायक शिक्षक श्वेता सिंह बच्चों के साथ काफी घुलमिलकर रहती हैं। उनका कहना है कि बच्चों को शिक्षा देते समय हमेशा आसान रास्तों का ही चुनाव करना चाहिए।
- जिले की रानीडीहा की रहने वाली श्वेता सिंह पहले भी कई पुरस्कारों से हो चुकी हैं सम्मानित
- राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के हाथों ये पुरस्कार पाने वाली श्वेता उन 73 शिक्षकों में सम्मिलित होंगी
कहते भी हैं कि कुछ कर गुजरने की मन में ठान लें, तो तस्वीर बदली जा सकती है। ऐसे ही शिक्षकों में शुमार हैं, गोरखपुर की रहने वाली शिक्षिका श्वेता सिंह। जिनकी कहानी किसी फिल्म से मिलती-जुलती है। श्वेता ने बच्चों को अच्छी तालीम देने के लिए अपने पैसे से उन्हें अत्याधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाईं। श्वेता की मेहनत भी रंग लाई और बच्चों ने इसमें अपनी दिलचस्पी लेना शुरू किया। इस वर्ष श्वेता को राज्य अध्यापक पुरस्कार के लिए चुना गया है। वह कहती हैं कि सबसे जरूरी है कि बच्चों को पढ़ाते समय हमेशा आसान और सरल तरीके अपनाएं जिससे उनकी उत्सुकता बनी रहे।
प्राथमिक विद्यालय यानी सरकारी स्कूल की तस्वीर बदलकर तकनीकी शिक्षा से बच्चों की पढ़ाई में रुचि जागृत करने वाली श्वेता सिंह को इस वर्ष के राज्य अध्यापक पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है। राज्यपाल आनंदी बेन पटेल के हाथों ये पुरस्कार पाने वाली श्वेता उन 73 शिक्षकों में सम्मिलित होंगी, जिन्होंने सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल दी है। शासन ने राज्य अध्यापक पुरस्कार के लिए प्रदेश के 73 शिक्षकों ने नाम की घोषणा की।
गोरखपुर के रानीडीहा की रहने वाली श्वेता का सास, ससुर देवर, देवरानी से भरा-पूरा परिवार है। उनके पति पति- अनूप कुमार सिंह पुलिस रेडियो शाखा गोरखपुर में सब इंस्पेक्टर हैं। उनके दो बच्चे हैं। 15 साल की आदिता और बेटा 12 साल का बेटा श्रेयस है।
बच्चों को पढ़ाने के लिए अपने संसाधनों का प्रयोग किया
इस सूची में गोरखपुर के प्राथमिक स्कूल सिक्टौर खोराबार की सहायक शिक्षक श्वेता सिंह ने बताया- मेरा उद्देश्य बच्चों को सरल तरीकों से अच्छी शिक्षा देना है। उन्होंने बच्चों को पढ़ाने के लिए इंफॉर्मेशन कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी आइसीटी का उपयोग किया। पढ़ाई को लेकर बच्चों में उत्साह पैदा करने के लिए अपने संसाधनों से लैपटाप और माइक लेकर आना शुरू किया। उसी से बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। बच्चे जैसे ही हाथ में लाउड स्पीकर पाते, उनका उत्साह पढ़ाई के प्रति दोगुना बढ़ जाता। वे हमेशा बच्चों को कैसे आसानी से सब कुछ समझ में आए इस पर काम करती रहती हैं।
पहले भी सम्मानित हो चुकी हैं श्वेता
उन्होंने बताया कि जन समुदाय और अभिभावकों को जोडऩे के लिए उन्होंने गांव में चौपाल लगाना शुरू किया, जिसका परिणाम सार्थक रहा। श्वेता को इससे पहले राज्य आइसीटी पुरस्कार, राज्य आइसीटी कक्षा शिक्षण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान, कहानी सुनाओ प्रतियोगिता के लिए पुरस्कार और दस्तक अभियान के लिए मुख्यमंत्री पुरस्कार से भी सम्मानित हो चुकी हैं। ऐसे में प्रदेश और देश के प्राथमिक विद्यालयों के शिक्षक श्वेता जैसी शिक्षिकाओं से सीख लेकर उन्हीं के नक्शे कदम पर चलकर कुछ अभिनव प्रयोग करें, तो प्राथमिक विद्यालयों की तस्वीर बदली जा सकती है।
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