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राहुल गांधीः अनिच्छुक नेता से पराजित योद्धा तक; 2009 के चुनावों से पहले कांग्रेस को एक बार रिवाइव किया, पार्टी को फिर उनसे ही उम्मीदें

18 मिनट पहले

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राहुल गांधी ने पिछले साल लोकसभा चुनावों में हार के बाद जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। तब से सोनिया गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं और पार्टी का कामकाज देख रही हैं।

ऐसे में कई नेता चाहते हैं कि सोनिया गांधी औपचारिक तौर पर अध्यक्ष पद संभाल लें या राहुल गांधी को दोबारा जिम्मेदारी सौंप दी जाए। कुछ नेता पार्टी के भीतर प्रियंका गांधी को भी मुख्य भूमिका में लाने की मांग कर रहे हैं। लेकिन, फिलहाल कोई भी आगे आकर जिम्मेदारी लेता नजर नहीं आ रहा। कांग्रेस के अंदर एक तरह की बेचैनी दिख रही है।

राहुल गांधी ने पहले भी पार्टी के युवाओं को एकजुट किया है। उन्हें प्रेरित किया। 2009 में यूपीए की सत्ता में वापसी का श्रेय काफी हद तक उनकी नेतृत्व क्षमता को दिया गया था। ऐसे में, उनसे उम्मीद है कि वे वेंटिलेटर पर चल रही पार्टी में नई ऊर्जा भरें।

राहुल जिम्मेदारी लेंगे या नहीं, कुछ दिन में सामने आ ही जाएगा। लेकिन, राहुल के फैसले पर कांग्रेस का भविष्य टिका है। ऐसे में राहुल की मनोदशा समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि उनका अब तक व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन का सफर कैसा रहा है-

दादी-पिता की हत्या की वजह से पढ़ाई प्रभावित हुई

  • राहुल की परवरिश बहुत ही अलग माहौल में हुई। 19 जून 1970 को जब राहुल का जन्म हुआ तब उनकी दादी इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं। लिहाजा, घर और परिवार का माहौल आम घरों जैसा तो बिल्कुल ही नहीं था।
दादी इंदिरा गांधी के साथ राहुल और प्रियंका।

दादी इंदिरा गांधी के साथ राहुल और प्रियंका।

  • शुरुआती पढ़ाई दिल्ली के सेंट कोलंबस स्कूल में हुई और उसके बाद 1981 से 1983 तक देहरादून के दून स्कूल में। 14 साल के थे जब दादी की अक्टूबर 1984 में हत्या हो गई। रातोंरात पिता राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने।
  • सुरक्षा की चिंता थी, लिहाजा पिता ने राहुल को घर बुला लिया। अब उनकी पढ़ाई अपनी बहन प्रियंका के साथ घर में ही हुई। दिल्ली यूनिवर्सिटी में सेंट स्टीफंस कॉलेज में दाखिला लिया। लेकिन, पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। वहां से अमेरिका में हार्वर्ड भेज दिए गए।
1991 में पिता राजीव गांधी को मुखाग्नि देने के बाद राहुल।

1991 में पिता राजीव गांधी को मुखाग्नि देने के बाद राहुल।

  • जब 21 साल के थे, तब पिता की 1991 में बम ब्लास्ट में हत्या कर दी गई। फिर पढ़ाई प्रभावित हुई। सुरक्षा कारणों से राहुल को फ्लोरिडा जाना पड़ा और 1994 में रोलिंस कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। अगले साल कैम्ब्रिज में ट्रिनिटी कॉलेज से एम.फिल किया।
  • सियासत में आने की कतई इच्छा नहीं थी इसलिए पहले लंदन में मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म मॉनिटर ग्रुप के साथ काम किया। भारत लौटे तो मुंबई में टेक्नोलॉजी आउटसोर्सिंग फर्म बैकअप्स सर्विसेस प्रा.लि. बनाई। इसके डायरेक्टर भी रहे।

34 साल की उम्र में पहली बार सांसद बने

2004 में राहुल अपनी मां सोनिया गांधी के साथ अमेठी में चुनाव प्रचार करते हुए।

2004 में राहुल अपनी मां सोनिया गांधी के साथ अमेठी में चुनाव प्रचार करते हुए।

  • राहुल गांधी की उम्र 28 साल की रही होगी, जब मां सोनिया गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल ली थी। कांग्रेस में बार-बार मांग उठ रही थी कि राहुल को राजनीति में आना चाहिए। आखिर, 2004 में राहुल भी सियासत में आ गए।
  • उत्तरप्रदेश के अमेठी से सोनिया गांधी परिवार की परंपरागत सीट से सांसद थीं। उन्होंने राहुल के लिए पास की रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया। बड़ी आसानी से 34 साल की उम्र में राहुल अमेठी से सांसद बने।
  • लोकसभा चुनावों में भाजपा का इंडिया शाइनिंग कैम्पेन धरा का धरा रह गया। कांग्रेस ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में सबसे बड़ी पार्टी बनकर सत्ता पर कब्जा किया। राहुल फैक्टर भी ग्रांड ओल्ड पार्टी को मिली नई ताकत में महत्वपूर्ण रहा।

37 साल में महासचिव, 43 साल में बने उपाध्यक्ष

  • राहुल को काफी जल्दी यानी 37 साल की उम्र में ही पार्टी ने 24 सितंबर 2007 को महासचिव बनाया। भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन और युवक कांग्रेस का प्रभारी बनाया। राहुल की सक्रियता से युवा कार्यकर्ताओं में नया जोश भी आया।
  • 2008 में युवा राजनीति में सुधार किया। युवा नेताओं के इंटरव्यू लिए। विस्तार के लिए 40 सदस्यों को युवक कांग्रेस से जोड़ा। पूरे देशभर में युवक कांग्रेस के सदस्यों में बढ़ोतरी हो रही थी। इसका फायदा अगले साल के लोकसभा चुनावों में पार्टी को मिला।
2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान एक रोड शो में लड़की ने इस अंदाज में राहुल के साथ सेल्फी ली थी।

2017 में गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान एक रोड शो में लड़की ने इस अंदाज में राहुल के साथ सेल्फी ली थी।

  • राहुल ने युवा ताकत का 2009 के लोकसभा चुनावों में बखूबी इस्तेमाल किया। 80 सीटों वाले उत्तरप्रदेश में लंबे अरसे बाद पार्टी ने 20 से ज्यादा सीटों पर कब्जा जमाया। 8 दिन पूरे देश का दौरा किया। 125 से ज्यादा रैलियां भी की। हर राज्य में सीटें बढ़ी थीं।
  • 2009 में कांग्रेस पहले से बड़ी ताकत के साथ सत्ता में लौटी। तब से ही लग रहा था कि मनमोहन सिंह की जगह कभी भी राहुल को प्रधानमंत्री बनाया जा सकता है। लेकिन, राहुल ने जिम्मेदारी संभालने में रुचि नहीं दिखाई। कई लोग चाह रहे थे कि वे मनमोहन कैबिनेट में मंत्री बनें, लेकिन वे इससे इनकार ही करते रहे।
  • कांग्रेस ने जनवरी 2013 में जयपुर में चिंतन बैठक की। इसमें पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं का अनुरोध स्वीकार कर राहुल ने पार्टी के उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। उस समय वे 43 साल के थे। लोकसभा चुनावों से एक साल पहले राहुल को पार्टी का नंबर दो नेता बनाया गया। इससे पहले पार्टी में उपाध्यक्ष पद ही नहीं होता था।
  • उपाध्यक्ष बनने के बाद राहुल भावुक हो गए। उन्होंने भाषण में कहा था “बीती रात मेरी मां मेरे कमरे में आकर बैठी और वो रो रही थीं। वह समझती है कि जो सत्ता बहुत सारे लोग चाहते हैं, वह असल में जहर है।’
2013 में जयपुर के चिंतन शिविर में राहुल और सोनिया गांधी।

2013 में जयपुर के चिंतन शिविर में राहुल और सोनिया गांधी।

लोकसभा चुनावों के बाद कम होती गई लोकप्रियता

  • राहुल के सामने उपाध्यक्ष बनने के बाद पहली चुनौती थी- मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ के चुनाव। जिसमें कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली। दिल्ली में भी 15 साल का राज खत्म हो गया था। इस बैकग्राउंड में राहुल की चमक फीकी पड़ने लगी थी।
  • 2014 में राहुल का सीधा मुकाबला नरेंद्र मोदी से था। सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ दुष्प्रचार शुरू हो चुका था। टाइम्स नाऊ को दिए एक इंटरव्यू के बाद उन्हें ‘पप्पू’ कहा गया जबकि जवाब में कांग्रेस समर्थकों ने मोदी को ‘फेकू’ कहकर संबोधित किया।
  • राहुल ने 2014 चुनावों में अमेठी में स्मृति ईरानी को हराया। केंद्र में कांग्रेस 44 सीटों के साथ अपने सबसे कमजोर परफॉर्मेंस की वजह से सत्ता गंवा बैठी थी। मोदी सरकार के आने के बाद से ही कांग्रेस की परफॉर्मेंस में गिरावट आने लगी थी। असम, केरल, महाराष्ट्र और हरियाणा जैसे गढ़ भी कांग्रेस के हाथ से छिटक गए।
उत्तरप्रदेश में बहन प्रियंका के साथ रोड शो करते राहुल गांधी।

उत्तरप्रदेश में बहन प्रियंका के साथ रोड शो करते राहुल गांधी।

  • 11 दिसंबर 2017 को सर्वसम्मति से 47 वर्षीय राहुल को कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। उम्मीद थी कि इससे कांग्रेस अपने सबसे कमजोर प्रदर्शन से आगे बढ़ेगी। कुछ हद तक फायदा भी हुआ। 2018 में कांग्रेस राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में सरकार बनाने में कामयाब रहीं।
  • गुजरात में भी राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस ने भाजपा को काफी परेशान किया। 2019 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने केरल की वायनाड संसदीय सीट से जीत हासिल की, लेकिन अमेठी की परंपरागत सीट पर वे स्मृति ईरानी से हार गए।
  • 3 जुलाई 2019 को उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में हार की जिम्मेदारी ली और अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। तब उनकी मां सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष चुना गया। तब से अब तक कांग्रेस में कोई बदलाव नहीं आया है।

खुद ही विवादों को न्योता भी देते रहे हैं राहुल

  • राहुल ने इस दौरान कुछ राजनीतिक आंदोलन भी खड़े किए। 2011 में भट्टा-पारसौल में किसानों के जमीन अधिग्रहण का मामला हो या विदर्भ की कलावती की कहानी संसद में सुनाने तक, राहुल ने एक अलग छवि प्रस्तुत की है।
जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों के बीच पहुंच गए थे राहुल गांधी।

जमीन अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों के बीच पहुंच गए थे राहुल गांधी।

  • संसद और विधानसभाओं में 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने वाले बिल का मसला हो या समलैंगिकता को अपराध बताने वाली आईपीसी की धारा 377 हटाने के मुद्दे, वे मजबूती के साथ जनभावना के साथ खड़े रहे। इसके अलावा जमीन अधिग्रहण कानून के मामले में वे सख्त नेता के तौर पर नजर आए।
  • राहुल अपने बयानों को लेकर विवादों से भी घिरे रहे। 2011 में कहा कि जनलोकपाल बिल से भ्रष्टाचार खत्म नहीं होगा। फिर 2013 में इलाहाबाद की रैली में गरीबी को मानसिकता बता दिया। इतना ही नहीं, मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर कहा कि आईएसआई दंगा-प्रभावित युवाओं की भर्ती कर रही है।
  • सूट-बूट सरकार, अच्छे दिन सरकार हो या जुमलों की सरकार, राहुल गांधी का मोदी सरकार पर हर एक हमला चर्चाओं में रहा है। सियासत में परिवारवाद के मुद्दे पर स्पष्ट तौर पर बचाव करते दिखते हैं। लेकिन, पिछले कुछ समय में उनके नेतृत्व में पार्टी में युवा नेताओं की अनदेखी एक बड़ा मुद्दा रही है। फिर चाहे बात ज्योतिरादित्य सिंधिया की हो या सचिन पायलट की।
कांग्रेस के एक सम्मेलन में मां सोनिया गांधी के साथ राहुल।

कांग्रेस के एक सम्मेलन में मां सोनिया गांधी के साथ राहुल।

  • राहुल पर शुरू से ही एक अनिच्छुक या रिलक्टेंट नेता के तौर पर आरोप लगते रहे हैं, जो जिम्मेदारी लेने से बचता है। महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनकी विदेश यात्राएं भी चर्चाओं में रही हैं। कहा जाता है कि जब राहुल की जरूरत भारत में होती है, तब वे विदेश दौरे पर होते हैं। इसमें उनका चर्चित ‘अध्ययन अवकाश’ भी शामिल रहा है।

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