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- Got Admission In IIM Kolkata, Went To Leh Ladakh To Celebrate This Holiday, Took The Shadow Of Parents In Road Accident, Now Achieved 724 Rank In UPAAC
भोपाल32 मिनट पहले
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यह तस्वीर 2010 की है जब टी. प्रतीक अपने पिता टी. धर्माराव, मां टी. विद्याराव और छोटा भाई टी. तन्मय राव के साथ अपने पैतृक गांव बिल्लाकुर्रू (आंध्रप्रदेश) की ट्रिप पर गए थे।
- पता था कि पहले ही दिन से कुछ हासिल नहीं होगा लेकिन एक दिन सफलता जरूर मिलेगी : टी प्रतीक
संघ लोक सेवा आयोग की 2019 के परीक्षा परिणामों में भोपाल के टी. प्रतीक राव ने 724वीं रैंक हासिल की है। प्रतीक को आईपीएस या आईआरएस मिलने की संभावना है। तीसरे प्रयास में सफलता हासिल करने वाले प्रतीक के पिता टी. धर्माराव मप्र कैडर के आईएएस अफसर थे। छोटी सी उम्र में ही माता-पिता का साथ छूट जाने के बाद प्रतीक ने जीवन में कई उतार-चढ़ाव देखे। संघर्ष की उसी कहानी को उन्होंने सिटी भास्कर के साथ साझा किया।
टी. प्रतीक राव (724वीं रैंक)
”पापा एमपी कैडर के आईएएस अफसर थे। पिता के जरिये ही मैंने सर्विसेज को काफी नजदीक से देखा। पापा का ही सपना था कि मैं सर्विसेज में जाऊं, लेकिन उस वक्त मेरा मन कॉर्पोरेट में जाने का था। मां हमेशा कहती थी कि तुम्हारे पिता आईएएस है, तुम नहीं। इसलिए अपनी पहचान खुद बनाओ। बात 2013 की है। मेरा कैट में सिलेक्शन हो गया था और मुझे आईआईएम कोलकाता में प्रवेश मिला था। इस खुशी के साथ ही छुट्टी मनाने लेह-लद्दाख गए थे। वहां से लौटते वक्त हमारी कार का एक्सिडेंट हो गया। इस हादसे ने मेरे सिर से माता-पिता का साया छीन लिया। तब मेरे छोटा भाई सिर्फ 14 साल का था। कुछ वक्त बाद जब मैं इस हादसे से उबरा और आईआईएम कोलकाता जाने का समय आया तो भाई का अकेलापन आंखों के आगे मंडराने लगा। फिर ताऊ जी ने उसे अपने पास बिशाखापत्तनम बुला लिया। वहां की बदली हुई भाषा और कल्चर दोनों ही उसके लिए चैलेंजिंग था। मैं उसे हमेशा यही समझाता था कि भगवान ने हमारे साथ ऐसा इसलिए किया है, क्योंकि हम इतने मजबूत हैं कि ये सब हम झेल सकते हैं। पापा हमेशा कहते थे कि पढ़ाई के मामले में कभी पीछे नहीं गिरना है, बल्कि आगे बढ़ना है। यही बात मैंने छोटे भाई को समझाई कि मैंने एनआईटी से पढ़ाई की है तो तुम्हारा टारगेट भी आईआईटी से नीचे नहीं होना चाहिए। उसने मेरी बात समझी और आईआईटी कानपुर में एडमिशन लिया। आईआईएम की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने एक साल बेंगलुरू में निजी कंपनी में जॉब की। यहां अहसास हुआ कि मेरे लिए सर्विसेज ही ज्यादा बेहतर है और फिर पापा का कहना भी तो यही था। मैंने जाॅब छोड़ी और एक साल तैयारी करने के बाद 2017 में यूपीपीएससी का पहला अटैम्प्ट दिया, लेकिन 30 नंबरों से सिलेक्शन रह गया तो 2018 में दूसरे प्रयास में 4 अंकों से। मैं हर बार इंटरव्यू तक पहुंचा, लेकिन सफलता नहीं मिली। यह पता था कि पहले दिन से ही कुछ हासिल नहीं होगा, लेकिन एक दिन सफलता जरूर मिलेगी। इसी से मुझे हर बार नए सिरे से तैयारी करने का हौसला मिलता था। 14 से 18 घंटों की पढ़ाई के बजाय सिर्फ 6 से 8 घंटों की पढ़ाई ही पूरे फोकस के साथ की। मैंने करेंट अफेयर्स के नोट खुद ही तैयार किए। मेरे मेंटर रहे आईएएस अफसर पी. नरहरि सर हमेशा मुझे कहते थे, एक असल ऑफिसर वही है, जो रोज किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने का प्रयास करे, जिस तक कभी सरकार न पहुंच पाई हो।”
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