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- K.Asif Wants To Make The Biggest Film Of Indian Cinema. Starts The Film With Shiraz Ali As The Financier. The Film Was Titled “Anarkali”
अमित कर्ण, मुंबई5 घंटे पहले
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इस फिल्म में युद्ध के दृश्यों की शूटिंग के लिए भारतीय सेना के 8 हजार जवानों के अलावा 2 हजार ऊंटों और 4 हजार घोड़ों का इस्तेमाल हुआ था।
हिंदी सिने इतिहास की गौरवशाली फिल्म मुगल-ए-आजम की रिलीज को बुधवार (5 अगस्त) को 60 साल पूरे हो गए। इस मौके पर फिल्म के मेकर्स शापूरजी पेलोंजी ने फिल्म से जुड़े अहम किस्से शेयर किए हैं।
इस फिल्म को बनाने का सिलसिला 1944 में शुरू हुआ था। निर्देशक के. आसिफ हिंदुस्तान की सबसे बड़ी फिल्म बनाना चाहते थे। शुरुआती फाइनेंसर शिराज अली थे। पहले टाइटल ‘अनारकली’ था। अकबर का रोल चंद्रमोहन प्ले करने वाले थे, पर 1946 में हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई। 1947 में भारत का विभाजन हो गया। शिराज अली पाकिस्तान चले गए। फिल्म अधूरी रह गई।
कमाल अमरोही ने लिखी नई कहानी
1951 में फिल्म नई स्टार कास्ट और नए फाइनेंसर शापूरजी पेलोंजी के साथ शुरू हुई। ‘अनारकली’ को ध्यान में रखते हुए कमाल अमरोही ने अलग कहानी गढ़नी शुरू की। बैनर फिल्मिस्तान का था। प्रोड्यूसर के तौर पर एस. मुखर्जी आए। टाइटल बना ‘अनारकली विद नंदलाल जसवंत लाल’। फिर पूरे प्रकरण ने नया मोड़ लिया।
फिल्म का नाम ‘मुगल-ए-आजम’ हो गया
निर्माता एस. मुखर्जी ने के. आसिफ को बतौर डायलॉग राइटर जॉइन कर लिया। अब फिल्म को ‘मुगल-ए-आजम’ कहा गया। फिल्मिस्तान बैनर की जो ‘अनारकली’ थी, उसमें बीणा रॉय और प्रदीप कुमार थे। 1953 में रिलीज हुई और बड़ी म्यूजिकल हिट रही।
फिल्म का ज्यादातर हिस्सा ब्लैक एंड व्हाइट में रिलीज हुआ
1956 में पाकिस्तान ने हिंदी फिल्मों को बैन कर दिया। एक साल बाद टेक्निकलर इंडिया में आ गाया। 1958 में के. आसिफ ने एक रील कलर में शूट किया। 1959 में और ज्यादा कलर रील शूट किए। वक्त लग रहा था, लेकिन के. आसिफ पूरी फिल्म कलर में शूट करना चाहते थे। इससे डिस्ट्रीब्यूटर बिरादरी का धैर्य जवाब देने लगा। उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। बाद के बरसों में फिल्म 85 प्रतिशत ब्लैक एंड व्हाइट में और 15 प्रतिशत कलर में रिलीज हुई। मराठा मंदिर में 100 फीसदी बुकिंग पर फिल्म रिलीज हुई। वो भी सात हफ्तों तक।
डेढ़ करोड़ में बनी थी फिल्म
1960 में रिलीज हुई इस फिल्म का बजट उस वक्त डेढ़ करोड़ रुपए था। तब की आम फिल्मों के बजट से दस गुना ज्यादा।
पहले टेलिकास्ट पर लाहौर में खत्म हो गए थे टीवी
1976 में फिल्म को पहली बार अमृतसर दूरदर्शन पर टेलिकास्ट किया गया। नतीजा यह रहा कि पाकिस्तान में भी कराची से लाहौर लोग देखने के लिए आए, क्योंकि वहां अमृतसर दूरदर्शन के सिग्नल कैच हो रहे थे। कराची से लाहौर की सारी फ्लाइटें 15 दिनों तक बुक रहीं। लाहौर की सारी टीवी की दुकानें आउट ऑफ स्टॉक हो गईं।
16 साल पहले दोबारा रिलीज हुई
2004 में फिल्म 12 नवंबर को कलर और सिक्स ट्रैक डॉल्बी डिजिटल साउंड से री-रिलीज की गईं। आगे वो 19 फरवरी 2005 तक भारत के 14 सिनेमाघरों में 25 हफ्तों चलती रही। 2006 में पाकिस्तान ने दरवाजे खोले। वहां भी फिल्म खूब चली। आज फिल्म के 60 साल हो रहे हैं।
फिल्म से जुड़े महत्वपूर्ण आंकड़े
– 9 साल में बनकर तैयार हुई फिल्म – फिल्म की शूटिंग 500 दिनों तक चली थी – 10 महीनों में बनकर तैयार हुआ था मुगल दरबार का एक सेट – फिल्म को शूट करने में 10 लाख फीट नेगेटिव लगा (सिर्फ 1.75% ही उपयोग हुआ) – ‘ऐ मोहब्बत जिंदाबाद’ गाने के लिए 100 कोरस सिंगर्स लगे थे – युद्ध की शूटिंग के लिए भारतीय सेना के 8 हजार जवानों के अलावा 2 हजार ऊंटों और 4 हजार घोड़ों का इस्तेमाल हुआ
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