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कई जगह रोका, गिरफ्तारी हुई, हार नहीं मानी, 3 दिन में पहुंचे अयोध्या

इंदौर3 घंटे पहले

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5 दिसंबर को हनुमानगढ़ी की बैठक में इंदौर से स्व लक्ष्मणसिंह गौड़ नेतृत्व में 30 लोग मौजूद थे। तब अयोध्या में माइक पर गूंजा था इंदौर का नाम।

  • जन्मभूमि के संघर्ष में इंदौर के वीरों की कहानीं, उन्हीं की जुबानी, प्रस्तुति 1992 के भास्कर जैसी
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(हुकमचंद सांवला द्वारा)
इंदौर, 4 अगस्त।
मैं उस समय विहिप का प्रांत संगठन मंत्री था। 1984 में विहिप ने ही रामजन्म भूमि आंदोलन की योजना बनाई थी। उस समय सरयू के तट पर संतों ने संकल्प लिया था कि हम सारी बाधाएं हटाकर मंदिर निर्माण का कार्य करेंगे। उसके बाद देशभर में संत सम्मेलन शुरू हुए।
मध्य भारत प्रांत में भी हमने बड़े-बड़े सम्मेलन किए। पहले महू में फिर इंदौर और उज्जैन में किया। बड़े-बड़े हिंदू सम्मेलन हुए उस समय। मुझे याद है.. उडुपी (कर्नाटक) की धर्म संसद में 816 विभिन्न पंथों के संत पहुंचे थे। उज्जैन में सिंहस्थ की धर्म संसद में विशाल संत सम्मेलन का निर्णय हुआ। उससे पहले पद यात्राएं हुईं। अयोध्या से लखनऊ तक, राम जानकी रथ यात्रा देशभर में निकली। मप्र में दतिया से आलीराजपुर तक यह यात्रा गई। गांवों को इकट्टा करते हुए। राम खिचड़ी बनी और सभी में बंटी। फिर राम रंग आया। रंग खेला गया। राम रज अलग थी जो सभाओं के पहले मार्गों में फेंकी जाती थी। रामचरण पादुका आई। गांव-गांव में उनका पूजन हुआ। फिर राम शिला का पूजन सभी दूर हुआ। 2.40 लाख गांवों में राम शिला पूजन हुआ था, उस समय। इसमें 6 से 7 करोड़ लोग सहभागी हुए थे।
फिर देशभर में राम नाम जप हुआ। 13 माला प्रतिदिन श्री राम जय राम, जय-जय राम की। यह विजय मंत्र था। उस समय 4 अप्रैल को दिल्ली में बड़ा सम्मेलन हुआ। इसमें 15 लाख लोग थे। इसके बीच एक बड़ी घटना यह है कि 10 मई 1993 को एक प्रतिनिधिमंडल परमहंस वीतराग वामदेवजी महाराज के नेतृत्व में राष्ट्रपति से मिलने गया। देशभर में हस्ताक्षर अभियान करवाया था। अभियान का विषय था कि लोग राम जन्मभूमि पर मंदिर बना देखना चाहते हैं। इसमें 9 करोड़, 97 लाख, 73 हजार, 553 हिंदुओं के हस्ताक्षर थे।
मुसलमानों के 3 लाख, 97 हजार, 388 हस्ताक्षर थे। इसाइयों के 1 लाख, 74 हजार हस्ताक्षर थे। दुनिया का इतना बड़ा ज्ञापन जो 10 करोड़ से अधिक लोगों का था। प्रजातंत्र की यह मांग थी कि राम जन्मभूमि पर मंदिर बने। इस तरह देशभर में आंदोलन खड़ा हुआ। लोगों को तर्क दिया जाता था कि जैसे सोमनाथ का मंदिर बना, वैसे राम मंदिर बनना चाहिए।
राम मंदिर के लिए आंदोलन हुआ तो प्रांत संगठन मंत्री होने के नाते हमारे पास हर विभाग (संभाग) में पदाधिकारी थे। उनमें कुछ तो दुनिया छोड़कर चले गए। उज्जैन में मदनलाल जलधारी ने यह काम संभाला था, इंदौर संभाग में रावजी वैद्य, भोपाल में रानाडे जी और इंदौर में उस समय अशोक गुप्ता ने यह काम संभाला था। उस समय कोई नेता नहीं था। हम अलग-अलग संयोजक बनाते थे। स्व. लक्ष्मण सिंह गौड़ उस समय भाजपा के नहीं थे। हमने शंकर यादव, कैलाश शर्मा, जयप्रकाश भूराड़िया, दिनेश पांडे, इंदर पांचाल, पापाजी को कई कार्यक्रमों का प्रमुख बनाया था।

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