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- The Father Asked One To Stay For The Sister’s Wedding, But The Kothari Brothers Were Adamant On Their Stubbornness; The Saffron Flag Was Hoisted On The Disputed Structure
लखनऊ3 घंटे पहले
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रामकुमार कोठारी और शरद कोठारी ने 30 अक्टूबर 1990 को विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज फहराया था। इसके दो दिन बाद 2 नवंबर 1990 को पुलिस की गोली से दोनों मारे गए थे।
- रामकुमार और शरद कोठारी (माहेश्वरी ) ने बाबरी विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज फहराया था
- राम भूमि पूजन में कोठारी बंधुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी को ट्रस्ट द्वारा न्योता भेजा गया
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में 5 अगस्त को राम मंदिर के भूमिपूजन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचेंगे। इस दौरान वीवीआईपी लोगों को शामिल होने के लिए न्यौता भेजा जा रहा है। ट्रस्ट ने कारसेवा के दौरान बाबरी विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज लहराने वाले कोठारी बंधुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी को भी न्यौता भेजा है। रामकुमार कोठारी और शरद कोठारी ने 30 अक्टूबर 1990 को विवादित ढांचे पर भगवा ध्वज फहराया था। इसके दो दिन बाद 2 नवंबर 1990 को पुलिस की गोली से दोनों मारे गए थे।
मुलायम सिंह सरकार में हुआ था गोलीकांड
22 साल के रामकुमार और 20 साल के शरद कोलकाता में घर के करीब बड़ा बाजार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में नियमित रूप से जाते थे। दोनों द्वितीय वर्ष प्रशिक्षित थे। कई अन्य स्वयंसेवकों की तरह ही राम और शरद ने भी विहिप की कारसेवा में शामिल होने का फैसला किया। 20 अक्टूबर 1990 को उन्होंने अयोध्या जाने के अपने इरादे के बारे में पिता हीरालाल कोठारी (माहेश्वरी ) को बताया। उसी साल दिसंबर के दूसरे हफ्ते में बहन पूर्णिमा की शादी होनी तय थी। पिता ने कहा- कम से कम एक भाई तो घर पर रुको ताकि शादी के इंतजाम हो सके। पर दोनों भाई इरादे से पीछे नहीं हटे।
बकौल पूर्णिमा, “आखिर में एक शर्त पर पिताजी राजी हुए। उनसे हर रोज अयोध्या से खत लिखते रहने को कहा। अयोध्या के लिए निकलने से पहले उन्होंने ढेर सारे पोस्टकार्ड खरीदे ताकि चिट्ठियं लिख सकें। मुझे जब पता चला कि भाई अयोध्या जा रहे हैं तो मैं दुखी हो गई। उन्होंने वादा किया कि वे मेरी शादी तक जरूर लौट आएंगे।” दिसंबर के पहले हफ्ते में पूर्णिमा को जो चिट्ठी मिली वो इनमें से ही एक पोस्टकार्ड पर लिखा गया था। पूर्णिमा की शादी भी उसी साल दिसंबर में हो गई। लेकिन, बहन से किया वादा पूरा करने दोनों भाई घर लौट नहीं पाए।
अयोध्या पहुंचने के लिए 200 किलोमीटर पैदल चले थे कोठारी बंधु
राम और शरद ने 22 अक्टूबर की रात कोलकाता से ट्रेन पकड़ी। हेमंत शर्मा अपनी पुस्तक ‘युद्ध में अयोध्या’ में लिखते हैं- बनारस आकर दोनों भाई रुक गए। सरकार ने गाड़ियां रद्द कर दी थी तो वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए। यहां से सड़क रास्ता भी बंद था। 25 तारीख से कोई 200 किलोमीटर पैदल चल वे 30 अक्टूबर की सुबह अयोध्या पहुंचे। 30 अक्टूबर को विवादित जगह पहुंचने वाले शरद पहले आदमी थे। विवादित इमारत के गुंबद पर चढ़कर उन्होंने पताका फहराई। दोनों भाइयों को सीआरपीएफ के जवानों ने लाठियों से पीटकर खदेड़ दिया। शरद और रामकुमार अब मंदिर आंदोलन की कहानी बन गए थे। अयोध्या में उनकी कथाएं सुनाई जा रही थी।
सीआरपीएफ के इंस्पेक्टर ने मारी थी काेठारी बंधुओं को गोली
दोनों भाइयों के साथ कोलकाता से अयोध्या के लिए निकले राजेश अग्रवाल के मुताबिक- वे 30 अक्टूबर को तड़के 4 बजे अयोध्या पहुंचे। वे बताते हैं कि मस्जिद की गुंबद पर भगवा ध्वज फहरा कोठारी बंधुओं ने उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव की दावे की हवा निकाल दी थी। मुलायम ने कहा था, “वहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता।” फिर आया 2 नवंबर का दिन। युद्ध में अयोध्या के अनुसार दोनों भाई विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की ओर बढ़ रहे थे। जब सुरक्षा बलों ने फायरिंग शुरू की तो दोनों पीछे हटकर एक घर में जा छिपे।
सीआरपीएफ के एक इंस्पेक्टर ने शरद को घर से बाहर निकाल सड़क पर बिठाया और सिर को गोली से उड़ा दिया। छोटे भाई के साथ ऐसा होते देख रामकुमार भी कूद पड़े। इंस्पेक्टर की गोली रामकुमार के गले को भी पार कर गई। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। उनकी अंत्येष्टि में सरयू किनारे हुजूम उमड़ पड़ा था। बेटों की मौत से हीरालाल को ऐसा आघात लगा कि शव लेने के लिए अयोध्या आने की हिम्मत भी नहीं जुटा सके। दोनों का शव लेने हीरालाल के बड़े भाई दाऊलाल फैजाबाद आए थे और उन्होंने ही दोनों का अंतिम संस्कार किया था।
पांच अगस्त को भूमि पूजन में शामिल होंगी पूर्णिमा
भाइयों की याद में पूर्णिमा उनके दोस्त राजेश अग्रवाल के साथ मिलकर ‘राम-शरद कोठारी स्मृति समिति’ नाम से एक संस्था चलाती हैं। ऐसे वक्त में जब सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण का रास्ता साफ हो चुका है राम और शरद की स्मृतियॉं उस ‘शौर्य’ की पहचान है जिसके कारण यहां तक का सफर पूरा हो पाया है। 5 अगस्त को राममंदिर के लिए होनेवाले भूमिपूजन में उनकी बहन पूर्णिमाजी (माहेश्वरी) को आंमत्रित किया गया है।
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