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वायरस से बचने के लिए हम सोशल डिस्टेंसिंग अपना सकते हैं, तो क्या नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए इमोशनल डिस्टेंसिंग नहीं अपना सकते

दैनिक भास्कर

Jul 06, 2020, 06:09 AM IST

इस समय वायरस से बचने के साथ मन को भी संभालना है। पहले हमारा फोकस सिर्फ शारीरिक स्वास्थ पर था। शुरुआत में नोटिस ही नहीं किया कि इससे लोगों के व्यवहार पर असर पड़ना शुरू हो जाएगा। उस समय लोगों के मन के अंदर भय और चिंता के कारण ऐसे विचार आने लगे कि मुझे या मेरे परिवार को कुछ न हो जाए।

लॉकडाउन आने के बाद कुछ दिनों में लोगों के मन पर भी इसका असर होना शुरू हो गया। किसी को गुस्सा आने लगा, कोई बिना बात चिढ़ने लगा, जिसके अंदर पहले से गुस्सा या डर थे, वे और बढ़ गए। यहां तक कि कुछ घरों में तो घरेलू हिंसा बढ़ गई।

अभी डॉक्टर बता रहे हैं कि इस समय डिप्रेशन भी बहुत बढ़ चुका है। इसलिए यह बात निकलकर आई है कि खुद का ध्यान रखना भी बहुत बड़ी सेवा है। अगर एक व्यक्ति भी ठीक से हाथ धोता है, मास्क लगाता है, सोशल डिस्टेसिंग रखता है, तो वो सिर्फ अपने को नहीं बचा रहा बल्कि उसकी वजह से अनेक लोग और बच जाते हैं।

इसी तरह से अगर एक व्यक्ति भी भावनात्मक, आध्यात्मिक और मानसिक रूप से अपना ध्यान रखता है तो उससे अनेक लोग बच जाते हैं। अपने मन का ध्यान अच्छे से रखा, रिश्तों में, परिवार के साथ या टीम के साथ आपका व्यवहार अच्छा रहा तो आपने उनका भी साथ में ध्यान रख लिया।

परमात्मा कहते हैं, जो जितना स्वयं मेंं परिवर्तन ला सकता है, वो उतना ही औरों में परिवर्तन ला सकता है। हम परिवर्तन हमेशा दूसरे में ही लाने की सोचते हैं। परमात्मा कहते हैं, सेवा भाव अर्थात सर्व की कमजोरियों को समाने का भाव। दूसरों की कमजोरियों को समा लेना इसको भी भगवान सेवा भाव कहते हैं।

समा लेना मतलब उसको स्वीकार कर लेना। मतलब कि आप उसके लिए अपने मन में कोई गलत विचार नहीं लाए। तो इससे भी सेवा हो गई। जैसे डॉक्टर बीमार को ठीक करते हैं, ऐसे ही हम सब दूसरे के मन को ठीक कर सकते हैं, उनके संस्कारों को स्वीकार करके। इसलिए सहन करने को शक्ति कहा जाता है।

कई बार लोग कहते हैं कितना सहन करना पड़ता है। हम तो सहन कर-कर के मर जाएंगे। परमात्मा कहते हैं कि मरना नहीं है, सबके दिलों में स्नेह से जीना है। कैसा भी विरोधी हो एक बार नहीं दस बार सहन करना पड़े फिर भी सहनशक्ति का फल अविनाशी और मधुर होता है।

मतलब सामने वाला कितना भी गलत करे, हमें कुछ कहना है तो हम कह सकते हैं लेकिन अंदर से हम सही सोचते हैं तो हम उनकी नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से बच जाते हैंं। मान लो मुझसे कोई गलत व्यवहार करे और मैं चुप रहूं, सिर्फ मुंह से नहीं बल्कि मन से भी चुप रहूं, कुछ कहना है तो सम्मान पूर्वक कहूं, लेकिन अंदर में उनके लिए गलत नहीं सोचूं।

यदि हम ऐसा करते हैं तो इससे हमारी शक्ति बढ़ जाती है। लेकिन अगर कोई कुछ कहकर चला जाए और उसके बाद मैं दु:खी होती रहूं, उदास रहूं, तो हमने अपनी शक्ति गंवा दी। सिर्फ ये भावना नहीं रखना कि मैंने इतना सहन किया तो ये भी तो कुछ करे ना। अल्पकाल के फल की भावना नहीं रखो, रहम भाव रखो। इसको ही कहा जाता है सेवा भाव।

रिश्तों में भी सेवा समाई हुई है। लोगों के साथ व्यवहार में भी सेवा है। दूसरे के संस्कारों को स्वीकार करना, सहन करना, उनके लिए अंदर सही सोचना, चाहे वो कैसा भी व्यवहार करे, अंदर मन शांत रखना हमारी सहनशक्ति को बढ़ाता है।

परमात्मा कहते हैं वो भी बदल जाएंगे लेकिन आप उसका इंतजार नहीं करना। हमारे डॉक्टर, प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस के जवान, सफाईकर्मी जब वो अपना जीवन और परिवार दांव पर लगाकर सेवा कर सकते हैं तो क्या हम दूसरों का ध्यान रखने के लिए अपने अहम को नीचे रखकर सहन नहीं कर सकते हैं।

वायरस से बचाव के लिए अगर हम सोशल डिस्टेंसिंग को इतने अच्छे से कर सकते हैं, तो क्या हम दूसरे की नकारात्मक ऊर्जा से बचने के लिए इमोशनल डिस्टेंसिंग को नहीं अपना सकते हैं। हम चाहे एक ही घर में रह रहे हैं, एक ही साथ बैठे हैं लेकिन इमोशनली हमें थोड़ा ऊपर की तरफ जाना है। ताकि उनका लोयर वायब्रेशन हम पर असर न कर जाए, तो ये भी तो एक सेवा है। इसलिए यह बात सदा याद रखनी है कि सहनशक्ति भी एक सेवा है।

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