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कलियुग में भी जीवित माने जाते हैं भगवान परशुराम, अष्टचिरंजीवियों में से एक हैं ये

दैनिक भास्कर

Apr 25, 2020, 07:45 PM IST

वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर भगवान विष्णु के अवतार परशुराम का जन्म हुआ था। अक्षय तृतीया के दिन ही इनकी जयंती मनाई जाती है। कलियुग में आज भी ऐसे 8 चिरंजीव देवता और महापुरुष हैं, जो जीवित हैं। इन्हीं 8 चिरंजीवियों में एक भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम भी हैं। इस साल 26 अप्रैल को अक्षय तृतीया है और इसी दिन परशुराम जयंती भी पड़ेगी।

ब्राह्मण कुल में पैदा फिर भी क्षत्रियों जैसा व्यवहार
भगवान राम और परशुराम दोनों ही विष्णु के अवतार हैं। भगवान राम क्षत्रिय कुल में पैदा हुए लेकिन उनका व्यवहार ब्राह्मण जैसा था। वहीं भगवान परशुराम का जन्म ब्राह्मण कुल में हुआ, लेकिन व्यवहार क्षत्रियों जैसा था। भगवान शिव के परमभक्त परशुराम न्याय के देवता हैं। इन्होंने 21 बार इस धरती को क्षत्रिय विहीन किया था। यही नहीं इनके क्रोध से भगवान गणेश भी नहीं बच पाए थे।

पूजा विधि
इस दिन सबसे पहले स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद एक चौकी पर परशुरामजी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। हाथ में पुष्प और अक्षत लेकर परशुराम जी के चरणों में छोड़ दें। इसके बाद पूजा में भगवान को नैवेद्य अर्पित करें और कथा पढ़ें या सुनें। कथा के बाद भगवान को मिष्ठान का भोग लगाएं और धूप व दीप से आरती उतारें। अंत में भगवान परशुराम से प्रार्थना करें कि वे आपको साहस प्रदान करें और आपको सभी प्रकार के भय व अन्य दोष से मुक्ति प्रदान करें।

गणेशजी ऐसे हुए थे एकदंत
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, एक बार परशुराम भगवान शिव के दर्शन करने के लिए कैलाश पर्वत पहुंचे, लेकिन प्रथम पूज्य शिव-पार्वती पुत्र भगवान गणेश ने उन्हें शिवजी से मिलने नहीं दिया। इस बात से क्रोधित होकर उन्होंने अपने परशु से भगवान गणेश का एक दांत तोड़ा डाला। इस कारण से भगवान गणेश एकदंत कहलाने लगे।

भय से मिलती है मुक्ति
भगवान परशुराम जी की पूजा करने से साहस में वृद्धि होती है, किसी भी प्रकार के भय से मुक्ति मिलती है। इनका जन्म पुत्रेष्टि यज्ञ से हुआ था और इन्हें भगवान शिव ने परशु दिया था। इसी कारण इन्हें परशुराम के नाम से जाना जाता है।

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