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कोविड-19 से एक बार ठीक होने के बाद भी एंटीबॉडीज के सबूत नहीं, दाेबारा इंफेक्शन से बच जाएंगे यह कहना मुश्किल

दैनिक भास्कर

Apr 25, 2020, 07:19 PM IST

जेनेवा. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने शनिवार को एक नई चेतावनी देते हुए कहा है कि, मौजूदा समय में ऐसे कोई सबूत नहीं है जिनके आधार पर ये कहा जा सके कि कोविड-19  वायरस से ठीक होने वाले मरीज़ों के शरीर में ऐसी एंटीबॉडीज हैं जो कि उन्हें आगे कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाए रखेंगी। संगठन ने ये भी कहा कि इस बात को लेकर भी संदेह है कि किसी को एक बार कोरोना हो जाने के बाद उसे दोबारा नहीं होगा।

कुछ दिनों पहले तक ये माना जा रहा था कि कोरोना वायरस से संक्रमित होकर ठीक होने के बाद लोगों में ऐसे एंटीबॉडीज़ के विकसित होने की संभावना है जो कि वायरस पर हमला करके दोबारा संक्रमण के खतरे को टाल सकती है। इसी के आधार पर दुनियाभर में प्लाज्मा थैरेपी से कोरोना का इलाज किया जा रहा है। भारत में भी केरल, दिल्ली, राजस्थान समेत कई राज्यों में ठीक हुए मरीज के एंटीबॉडीज युक्त प्लाज्मा को लेकर संक्रमितों को दिया जा रहा है।

worldometers.info के अनुसार कोरोना वायरस से दुनिया भर में मरने वालों की कुल संख्या लगभग दो लाख हो गई है, वहीं 29 लाख लोग संक्रमित हैं।

WHO ने बताई COVID-19 और एंटीबॉडीज रिस्पांस को लेकर 5 बड़ी बातें 

  • 1. कुछ सरकारों ने सुझाव दिया है कि COVID-19 पैदा करने वाले वायरस SARS-CoV-2 का मुकाबला इसके कारण शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी कर सकती है। यह एंटीबॉडी एक तरह से दुनियाभर के लोगों के लिए काम पर लौटने और यात्रा करने के लिए इम्यूनिटी पासपोर्ट की तरह हो सकती है। लेकिन, हम कहना चाहेंगे कि वर्तमान में कोई सबूत नहीं है। ऐसे लोग जो COVID-19 से ग्रस्त हुए हैं और उनके शरीर में भले ही एंटीबॉडी हैं तो भी वे दूसरी बार होने वाले संक्रमण से सुरक्षित नहीं हैं।
  • 2. कुदरती संक्रमण के माध्यम से एक वायरस से शरीर में इम्यूनिटी पाना लम्बी प्रक्रिया है और आमतौर पर इसमें 7 से 15 दिन तक का समय लग जाता है। ये एंटीबॉडी वास्तव में इम्यूनोग्लोबुलिन नाम का प्रोटीन हैं। शरीर टी-सेल्स भी बनाता है जो वायरस से संक्रमित अन्य कोशिकाओं को ढूंढ़कर मारती हैं। इसे सेल्यूलर इम्यूनिटी कहा जाता है। एंटीबॉडी और टी-सेल्स साथ मिलकर वायरस का सफाया कर सकती हैं, और अगर इनका रिस्पांस अच्छा होता है तो आगे दोबारा संक्रमण को रोका जा सकता है। लेकिन, कोरोना वायरस के मामलों में अभी यह कहना जल्दबाजी होगी।
  • 3. WHO में हम SARS-CoV-2 संक्रमण को लेकर इंसानी शरीर की एंटीबॉडी रिस्पांस के सबूतों की समीक्षा कर रहे हैं। अधिकांश अध्ययनों से पता चलता है कि जो लोग संक्रमण से उबर चुके हैं उनके पास वायरस के लड़ने वाले एंटीबॉडी मौजूद हैं। हालांकि, इनमें से कुछ लोगों के खून  में एंटीबॉडी का स्तर बहुत कम हैं। ऐसे में सेल्यूलर इम्यूनिटी से रिकवरी होना मुश्किल होता है। यह भी महत्वपूर्ण है कि वैज्ञानिकों के किसी भी अध्ययन में अब तक यह मूल्यांकन नहीं किया गया है कि SARS-CoV-2 से लड़ने वाली एंटीबॉडीज की मौजूदगी आगे संक्रमण के लिए प्रतिरक्षा प्रदान करती है या नहीं।
  • 4.कई देश नए मरीजों और स्वास्थ्य कार्यकर्ता पर वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडी का परीक्षण कर रहे हैं।  WHO इन अध्ययनों का समर्थन करता है, क्योंकि वे हद तक जोखिम कारकों के साथ जुड़े संक्रमण को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनसे जो डेटा मिलेगा उससे आगे फायदा मिलेगा, लेकिन अभी चुनौती यह है कि अधिकांश परीक्षण इस तरह से डिजाइन नहीं किए गए हैं जिनसे दूसरी बार होने वाले संक्रमण के प्रति इम्यूनिटी का पता लग सके
  • 5.कोरोना महामारी में इस पड़ाव पर, “इम्यूनिटी पासपोर्ट” या “रिस्क-फ्री सर्टिफिकेट” की गारंटी के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं। जो लोग मानते हैं कि अगर वे पहली बार में ठीक हो गए हैं तो दूसरे संक्रमण से भी लड़ सकते हैं और वे सार्वजनिक स्वास्थ्य सलाह की अनदेखी करते हैं तो वे इस वायरस के खतरे को और बढ़ा देंगे। 

अभी और भी बुरा वक्त आने का डर

इससे पहले संगठन के महानिदेशक डॉ. टेड्रॉस गीब्रियेसस ने कहा है कि इससे भी बुरा वक्त अभी आने वाला है और ऐसे हालात पैदा हो सकते हैं कि दुनिया कोविड-19 महामारी का और ज्यादा बुरा रूप देखेगी। उनकी चेतावनी के पीछे नए डेटा को आधार बताया जा रहा है जिसके मुताबिक पूरे विश्व में सिर्फ 2 से 3 फीसदी आबादी में ही इस वायरस की इम्यूनिटी है और बिना वैक्सीन के स्थितियां लगातार बिगड़ रही हैं। 

लॉकडाउन में ढील से हालात बिगड़ेंगे

संगठन के महानिदेशक ने दुनिया के सभी देशों से अपील की है कि वे लॉकडाउन हटाने का फैसला लेने जल्दबाजी न करें क्योंकि यह वायरस हमारे बीच लंबे वक्त तक बना रहेगा। इसलिए कोई गलती न करे और अलर्ट रहे। कई देश इससे लड़ने के शुरुआती दौर में हैं। टेड्रोस ने कहा, “यह बहुत खतरनाक स्थिति है और मौजूदा हालात 1918 के फ्लू की तरह बन रहे हैं, जिसमें 5 करोड़ से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। लेकिन, अब हमारे पास टेक्नोलॉजी है और इसकी मदद से हम इस आपदा से बच सकते हैं।’’ 

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