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पर्व: फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से शुरू हो जाता है होलाष्टक, पूर्णिमा पर होलिका दहन के बाद शुरू होते हैं शुभ काम

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2 घंटे पहले

कॉपी लिंकहोलाष्टक के दिनों में नकारात्मकता से बचें और भगवान के मंत्रों का जाप करें

रविवार, 21 मार्च को फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि है। इस दिन से होलाष्टक शुरू हो रहे हैं, जो कि पूर्णिमा पर तिथि पर होलिका दहन तक रहेंगे। इन दिनों में शुभ काम नहीं किए जाते हैं। होलिका दहन के बाद फिर से शुभ और मांगलिक कर्म शुरू हो जाते हैं।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार होलाष्टक का मतलब है होली से पहले के आठ दिन। प्राचीन समय में इन दिनों में हिरण्यकश्चप ने भक्त प्रहलाद को कई तरह कष्ट दिए थे। इन दिनों में नए घर में प्रवेश, शादी, मुंडन, नए व्यापार की शुरुआत करने से बचने की सलाह ज्योतिष में दी जाती है।

पूजा-पाठ के लिए श्रेष्ठ होते हैं ये दिन

होलाष्टक के दिनों में भक्त प्रहलाद में भगवान विष्णु की अटूट भक्ति की थी। प्रहलाद के पिता हरिण्यकश्यप ने अपने पुत्र पर कई अत्याचार किए, कई बार उसे मारने की कोशिश की, लेकिन हर बार विष्णुजी की कृपा से उसके प्राण बच गए। इसी वजह से इन दिनों भगवान विष्णु के लिए जप, तप और ध्यान करने का विशेष महत्व है। इन दिनों में ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। शिवजी के मंदिर में शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाएं। ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। हनुमानजी के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें। इन दिनों भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप बालगोपाल की भी विशेष पूजा करनी चाहिए। दक्षिणावर्ती शंख से भगवान का अभिषेक करें। कृं कृष्णाय नम: मंत्र का जाप करें।

होलाष्टक के दिनों में नकारात्मक विचारों से बचें

मान्यता है कि होलाष्टक के दिनों में नकारात्मक ऊर्जा सक्रिय रहती है। इस वजह से हमारे विचारों में भी नकारात्मकता बढ़ जाती है। होलाष्टक की पहली तिथि फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक क्रोध, क्लेश और वाद-विवाद से बचना चाहिए। इन दिनों में मन को शांत रखें और भगवान का ध्यान करेंगे तो जीवन में सुख-शांति बनी रहती है।

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