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NYT की रिपोर्ट के बाद लोग कह रहे- ‘WHO ठीक से काम नहीं कर रहा, हालात गंभीर हैं और चेतावनी नहीं दी जा रही’

  • एयर बोर्न कोरोना संक्रमण पर 239 वैज्ञानिकों की WHO को चेतावनी रिपोर्ट देने के बाद दुनियाभर में फिक्र और बहस बढ़ी
  • WHO के टेक्निकल हेड डॉ. बेनेडेटा अलेगरैंजी के मुताबिक, कोरोना एयरबोर्न हो भी सकता है लेकिन ऐसा दावा करने के लिए कोई ठोस सबूत नहीं

दैनिक भास्कर

Jul 07, 2020, 05:00 AM IST

हवा से फैलने वाले यानी एयरबोर्न कोरोना संक्रमण को लेकर न्यू यार्क टाइम्स में छपी 239 वैज्ञानिकों की चेतावनी रिपोर्ट के बाद दुनियाभर में फिक्र और बहस बढ़ गई है। इस रिपोर्ट में 32 देशों 239 वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च के हवाले से बताया है कि नोवेल कोरोनावायरस यानी Sars COV-2 के छोटे-छोटे कण हवा में कई घंटों तक बने रहते हैं और वे भी लोगों को संक्रमित कर सकते हैं। 

इस पूरे मामले में लोग जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को आड़े हाथ ले रहे हैं वहीं, इस शीर्ष संगठन का कहना है कि कोरोनावायरस हवा से नहीं बल्कि एयरोसोल और 5 माइक्रोन से छोटी ड्रापलेट्स से फैल सकता है। (एक माइक्रॉन एक मीटर के दस लाखवें हिस्से के बराबर होता है।)

NYT की रिपोर्ट को इस लिंक पर क्लिक करके देखा जा सकता है।
https://www.nytimes.com/2020/07/04/health/239-experts-with-one-big-claim-the-coronavirus-is-airborne.html

वैज्ञानिकों की बड़ी चेतावनी के शब्द

32 देशों के इन 239 वैज्ञानिकों ने WHO को लिखे एक ओपन लेटर दावा किया है कि कोरोनावायरस के हवा से फैलने के पर्याप्त सबूत हैं। इन सबूतों के अधार पर WHO को यह मान लेना चाहिए कि इस वायरस के छोटे-बड़े कण हवा में तैरते रहते हैं, और इनडोर एरिया में मौजूद लोगों में उनकी सांस के जरिये प्रवेश कर संक्रमित कर सकते है।

वैज्ञानिकों ने WHO से कोविड-19  वायरस के संक्रमण को फैलने संबंधी अपनी पुरानी अप्रोच और रिकमंडेशन्स में तुरंत संशोधन करने का आग्रह किया है। यह लेटर साइंटिफिक जर्नल में अगले हफ्ते पब्लिश किया जाएगा।

लोग इसे WHO का गलती बता रहे

बीते 24 घंटों में सोशल मीडिया में भी इस बारे में कई तरह की बातें सामने आ रही है और लोग इसके लिए सरकारों और WHO को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं। दूसरी ओर, कुछ लोग इसे अमेरिका का एजेंडा भी बता रहे हैं। लोगों का कहना है कि WHO ने इस मामले में शुरू से गुमराह किया है।

कुछ लोग ट्विटर पर NYT की खबर को री-पोस्ट करके लिख रहे हैं कि दुनिया के बड़े वैज्ञानिकों की सलाह को लेकर WHO का रवैया ठीक नहीं है। यह संगठन ठीक से काम नहीं कर रहा। लोग सवाल उठा रहे हैं क्योंकि वैज्ञानिक बहुत पहले से जानते थे कि ये वायरस हवा से फैल सकता है, फिर भी इस बात को ठीक से बताया क्यों नहीं जा रहा है?

WHO ने इसे लेकर बड़ी चेतावनी नहीं दी

NYT की इस खबर के बाद समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने WHO से इस नए दावे पर प्रतिक्रिया मांगी थी। लेकिन WHO ने अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। घरों में क्वारैंटाइन और लॉकडाउन खुलने के बाद काम पर पहुंचे आम लोगों के लिए कोई बड़ी चेतावनी भी जारी नहीं की गई।

बीबीसी एक रिपोर्ट के मुताबिक मार्च के महीने में WHO के सामने जब यह विषय आया था तो इसे आम लोगों की बजाय मेडिकल स्टाफ को ज्यादा खतरा बताया गया था। इसके लिए ‘एयरबोर्न प्रिकॉशन’ भी जारी की गईं थीं। इसके बाद अमरीका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ (एनआईएच) की एक रिपोर्ट सामने आई जिसमें दावा किया गया है कि कोरोना वायरस हवा में तीन से चार घंटे रह सकता है।

WHO ने कहा कि – दावे के ठोस और साफ सबूत नहीं

WHO में संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण करने के लिए बनी टेक्निकल टीम के हेड डॉ. बेनेडेटा अलेगरैंजी के हवाले से न्यू यॉर्क टाइम्स ने अपनी इस रिपोर्ट में लिखा, ‘हमने यह कई बार कहा है कि यह वायरस एयरबोर्न हो भी सकता है लेकिन अभी तक ऐसा दावा करने के लिए कोई ठोस और साफ सबूत नहीं है। इस वायरस के हवा में मौजूद रहने के जो सबूत दिए गए हैं, उनसे ऐसे किसी नतीजे में फिलहाल नहीं पहुंचा जा सकता कि यह एयरबोर्न वायरस है।’

अब तक यही धारणा कि थूक के कण तैर नहीं सकते

23 मार्च को WHO दक्षिण-पूर्वी एशिया की रिजनल डायरेक्टर पूनम खेत्रापाल सिंह कहा था कि, “अब तक कोरोना को ऐसा कोई केस केस सामने नहीं आया है जिसकी वजह एयरबॉर्न हो। इसे समझने के लिए अभी और रिसर्च डेटा जरूरी है।

चीन से लेकर अब तक जो केस सामने आए हैं उनमें संक्रमित इंसान के खांसी, छींक के दौरान निकने ड्रॉपलेट और उसके संपर्क में आना ही वजह रही है। लेकिन, ये कण इतने हल्के नहीं होते कि हवा के साथ यहां से वहां उड़ जाएं।  5 माइक्रोन से छोटे ड्रापलेट्स बहुत जल्द ही जमीन पर गिर जाते हैं। इसलिए, दूरी बनाए रखें और हाथों को बार-बार साफ करें।”

वैज्ञानिकों ने और WHO ने दी थी एयरोसॉल थ्योरी

मार्च में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच इस थ्योरी पर जोर दिया था कि कोरोनावायरस संक्रमित जब खांसता या छींकता है तो हवा में सांस के लेने-छोड़ने से वायरस का एक घेरा बन जाता है जिसे एयरोसॉल कहते हैं। ये घेरा अपने आसपास मौजूद लोगों को संक्रमित कर सकता है और इसका ज्यादा खतरा फ्रंटलाइनर मेडिकल स्टॉफ को है।

एयरोसॉल खांसी या छींक के ड्रापलेट्स की तुलना में हल्का होता है और हवा में ज्यादा देर बना रह सकता है। ऐसे में ऐसे में कोरोना के एयरबॉर्न संक्रमण का खतरा उन्हीं अस्पताल के कर्माचारियों को होगा जो सीधे तौर पर एयरोसॉल के सम्पर्क में आते हैं या 5 माइक्रोन से छोटी ड्रापलेट्स के सम्पर्क में आते हैं।

हवा न भी चले तो भी कोरोना के कण 13 फीट तक फैलते हैं

दुनियाभर के एक्सपर्ट सोशल डिस्टेंसिंग के लिए 6 फीट का दायरा मेंटेन करने की सलाह दे रहे हैं, लेकिन हाल में हुए एक अन्य शोध के नतीजे चौंकाने वाले हैं। भारतीय और अमेरिकी शोधकर्ताओं की टीम का कहना है कि कोरोना के कण बिना हवा चले भी 8 से 13 फीट तक की दूरी तय कर सकते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, 50 फीसदी नमी और 29 डिग्री तापमान पर कोरोना के कण हवा में घुल भी सकते हैं।

यह रिसर्च बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, कनाडा की ऑन्टेरियो यूनिवर्सिटी और कैलिफोर्निया लॉस एंजिल्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मिलकर की है। शोधकर्ताओं का लक्ष्य यह पता लगाना था कि हवा में मौजूद वायरस के कणों का संक्रमण फैलाने में कितना रोल है। टीम का कहना है, रिसर्च के नतीजे स्कूल और ऑफिस में सावधानी बरतने में मदद करेंगे।

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