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कोई परिवार के पास पहुंचने को है परेशान; कोई जॉब की वजह से नहीं जाना चाहता घर, यहां हालात खराब होने के बावजूद हैं लोग सामान्य

  • दैनिक भास्कर ऐप के संवाददाता ने दुबई और अमेरिका में रह रहे भारतीयों से वहां के हालात के बारे में फोन से बातचीत की
  • बातचीत के दौरान उन लोगों ने अपनी कहानी बतायी, दुबई में एक ऐसे भारतीय भी हैं जिनकी पत्नी और बच्चे चीन में फंसे हुए हैं

दैनिक भास्कर

Jun 12, 2020, 11:57 AM IST

लखनऊ. कोरोनावायरस के संक्रमण की वजह से भारत में इस समय अनलॉक 1 चल रहा है। दुनिया के अन्य हिस्सों में ऐसे कई इंडियंस हैं जोकि कहीं मजबूरी में फंसे है या उनकी नौकरी ने उन्हें रोक रखा है। ऐसे ही तीन भारतीयों से दैनिक भास्कर ऐप ने बात की। हमने दुबई और अमेरिका में रह रहे इंडियंस से बात की। बातचीत के दौरान वहां रह रहे भारतीय नागरिकों ने वहां के हालात को बयां किया। 

पहली कहानी: पत्नी और बच्चे चीन में हैं,  मैं दुबई में फंसा हुआ हूं

रवि सलूजा लखनऊ के रहने वाले हैं। उनका इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का बिजनेस चीन में हैं। उनके माता पिता तो लखनऊ में हैं लेकिन उनकी पत्नी और बच्चा चीन में हैं। वह खुद दुबई में फंसे है और एक होटल में हैं। रवि सलूजा बताते हैं कि “फरवरी में मैं लखनऊ आया था। मेरे बीवी बच्चे चीन में ही थे। उस समय वहां कोरोना बड़े स्तर पर फैला हुआ था। फिर मुझे काम के सिलसिले में ही सऊदी अरब जाना था। फरवरी लास्ट वीक में मैं वहां गया तो वहां भी लॉकडाउन हो गया। मुझे दुबई में भी काम था। वहां से मैं दुबई आ गया तो मार्च लास्ट वीक में यहां भी लॉकडाउन हो गया। मैं लगातार परेशान हो रहा था लेकिन अब मैं दुबई में फंस चुका था। लगभग 2 महीने से ज्यादा समय मुझे यहां होटल में हो गया है। 200 दिरहम रोज यानी 4 हजार रुपए रोजाना होटल का किराया दे रहा हूं। सबसे बड़ी दिक्कत यहां लॉकडाउन के दौरान खाने पीने की हुई। जिस होटल में रुका हूँ। वहां का रेस्टॉरेंट बन्द हो गया था। बाकी जगह से डिलेवरी तो थी लेकिन पसंद का ऑप्शन नहीं था। इसलिए कई बार बेमन का भी खाना खाना पड़ा। जबकि कई बार खाना भी नही खाया।

बताया कि “अब थोड़ी बहुत ढील दी गयी है लेकिन पूरी तरह से लॉकडाउन अभी यहां खत्म नहीं हुआ है। पैसे की दिक्कत इसलिए नहीं हुई कि कई दोस्त हैं जिन्होंने पैसे खत्म होने पर मदद की है। सबसे ज्यादा चिंता मुझे अपने परिवार को लेकर है। मां और पिता जी लखनऊ में हैं वहां भी बुरी तरह से यह बीमारी फैल रही है। जबकि बीवी और मेरा 3 साल का बेटा चाइना में हैं जहां यह फैला ही हुआ है। मुझे उनके पास जाने की जल्दी है लेकिन अभी तक मेरा हर प्रयास विफल ही हुआ है। चाइना में मेरी फैमिली ईंगजिंग सिटी में रहते हैं। हालांकि वहां कोरोना का असर थोड़ा कम है। चाइना में तो असर कम हो गया है अब मैं माता पिता को लेकर परेशान हूं क्योंकि लखनऊ में यह बड़ी तेजी से फैल रहा है। क्योंकि इंडिया में लोग लॉकडाउन को सीरियसली नहीं ले रहे हैं। मैं आपको बताऊं दुबई में 26 मार्च से मैं लॉक डाउन की वजह से होटल में बन्द हुआ तो जब रमजान 24 अप्रैल से शुरू हुआ तब पहली बार 26 अप्रैल को मैंने सड़क पर पैर रखा है। उससे पहले मैं होटल में कमरे से बाहर नहीं गया। बाहर निकलने के लिए आपके पास वैलिड रीजन होना चाहिए नहीं तो जुर्माना या पुलिसिया कार्यवाई तय है।”

यह तस्वीर दुबई की है जहां लॉकडाउन में पूरी तरह से सन्नााटा पसरा हुआ है।
यह तस्वीर दुबई की है जहां लॉकडाउन में पूरी तरह से सन्नााटा पसरा हुआ है।

दूसरी कहानी: परिवार की चिंता है लेकिन नौकरी छोड़ कर नहीं जा सकता

जुनैद सिद्दीकी लखनऊ के रहने वाले हैं। 2008 से दुबई में नौकरी कर रहे हैं। बैंकिंग सेक्टर में काम करने वाले जुनैद बताते हैं कि दुबई बहुत अच्छे से कोरोना से लड़ रहा है। हम खुद को यहां सेफ महसूस करते हैं। जुनैद बताते हैं कि “मैं दुबई के बरदुबई में रहता हूं। यहां 24 मार्च से फूल लॉकडाउन लगाया गया था। अभी मई के पहले हफ्ते में लॉकडाउन में थोड़ी बहुत छूट देनी शुरू की है। चूंकि रमज़ान शुरू हो गया था इसलिए यह छूट दी गयी है। वैसे जब फुल लॉकडाउन था तब यहां भी जरूरी सेवाओं वालों को निकलने की छूट थी। सबसे बड़ी बात यहां बैंक बन्द ही नहीं हुए। बैंकों को लगातार उनके ग्राहकों के लिए खोला गया। दुबई पुलिस की ओर से एक वेबसाइट बनाई गई है। किसी को अगर जरूरी काम से बाहर निकलना है तो वह वहां पास के लिए अप्लाई कर दे। उसे पास मिल जाएगा। साथ ही संबंधित व्यक्ति की उसके सहित गाड़ी की जानकारी जिम्मेदारों के कम्प्यूटर में फीड हो जाएगी। ऐसा होने से उसे कहीं भी रोका नहीं जाएगा। वहीं कोई व्यक्ति बिना पास के यदि निकलता है तो उस पर जुर्माना लगाया जाने का प्रावधान किया गया है। लगभग 2000 दिरहम यानी 40 हजार से ज्यादा।

लॉकडाउन एक अलग तरह का अनुभव रहा। कभी जिंदगी में यह नहीं सोचा था कि ऐसा भी होगा। यहां किसी तरह की दिक्कत नहीं थी लेकिन मैं अपना परिवार 5 महीने पहले ही इंडिया छोड़ कर आया था। खुद से ज्यादा मुझे उनके बारे में चिंता थी। जब मामले बढ़ रहे थे तब मैने सोचा भी की घर चला जाऊं लेकिन राय मशवरा करने के बाद यही सामने आया कि अगर मैं ट्रैवेल करता हूं तो जाने अनजाने हो सकता है मैं घर तक यह बीमारी पहुंचा दूं। कम से कम अभी वह भी सुरक्षित हैं और मैं भी सुरक्षित हूं। इसलिए मैंने दुबई में ही रहने का फैसला किया। दुबई में जब लॉकडाउन हुआ उससे पहले ही आफिस आने से हम लोगों को मना कर दिया गया था। तकरीबन 16 मार्च से मैं आफिस नहीं जा रहा था। लॉकडाउन के जो शुरुआती दिन रहे वह बहुत अजीब गुजरे। काम धाम बन्द था। न खाने का मन होता था न किसी से बात करने का मन होता था। बस अपना और परिवार का भविष्य सोचता था कि अब क्या होगा। हालांकि संभलने में थोड़ा वक्त लगा। फिर वर्क फ्रॉम होम शुरू हुआ तो थोड़ा मन लगने लगा।

यह तस्वीर भी दुबई की है जहां चारों तरफ सन्नाटा ही दिखायी दे रहा है।
यह तस्वीर भी दुबई की है जहां चारों तरफ सन्नाटा ही दिखायी दे रहा है।

तीसरी कहानी: अमेरिका में कोरोना पॉजिटिव मिलने पर पूरे इलाके को सील नहीं किया जाता, इंडिया से ज्यादा सेफ हम यहां हैं

यह तस्वीर अमेरिका की है जहां लॉकडाउन की वजह से आफिस पूरी तरह से सूने पड़े हैं। एक दो लोग ही काम करते नजर आ रहे हैं।
यह तस्वीर अमेरिका की है जहां लॉकडाउन की वजह से आफिस पूरी तरह से सूने पड़े हैं। एक दो लोग ही काम करते नजर आ रहे हैं।

शकील अहमद साइंटिस्ट हैं और अमेरिका के नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट में ब्रांच हेड के तौर पर वाशिंगटन डीसी के मैरीलैंड में तैनात हैं। वह बताते हैं कि अमेरिका में न्यूयॉर्क शहर ही ऐसा है जहां कोरोना का सबसे ज्यादा असर है। जबकि अन्य इलाके बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हैं। अब यहां भी कोरोना का असर धीरे धीरे कम भी हो रहा है। अगर बात की जाए कि समस्या क्या हुई तो मैं बताऊं कि समस्या कुछ भी नहीं हुई। दरअसल, अमेरिका में जब लॉकडाउन किया गया तो उससे पहले जरूरी तैयारियां कर ली गईं थीं। इसलिए कोई पैनिक क्रिएट नहीं हुआ। यहां की जनता ने भी लॉक डाउन को मजबूरी की तरह नहीं बल्कि प्रीकॉशन के तौर पर लिया। जिसका असर भी अब धीरे धीरे दिख रहा है। शुरुआत में कुछ युवा इसे मजाक में ले रहे थे तो पुलिस ने उन पर सख्त कार्यवाई भी की और कोरोना को लेकर जो नियम बनाए उस पर सख्त जुर्माना लगाया जिससे जो जबरदस्ती बाहर निकलने की आदत थी उस पर लगाम लग गई। मैं यह जरूर बताना चाहूंगा कि यहां पर सरकार को हमारी जान की फिक्र है। वह हमे यूं ही नहीं छोड़ रही है। इसलिए भी यहां हम सेफ महसूस करते हैं। मैं अपने परिवार की बात करूं तो मैं खुद घर से केवल 4 बार अब तक समान वगैरह लाने के लिए निकला हूं।

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