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मैन्यूफैक्चरिंग में भारत की आत्मनिर्भरता कम, चीन के सामानों को बायकॉट कर दिया जाए तो आज की तारीख में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को बना पाना भी असंभव

  • स्टेच्यू पर लगे कांसे के आवरण की ढलाई चीन के फाउंड्र्री में की गई थी, क्योंकि भारत में उतनी बड़ी फाउंड्री नहीं थी
  • स्टेच्यू को बनाने वाली कंपनी एलएंडटी ने कहा था कि इस परियोजना में 9 फीसदी चीन के सामानों का इस्तेमाल हुआ है

दैनिक भास्कर

Jun 25, 2020, 05:21 PM IST

नई दिल्ली. गलवान विवाद के बाद चीन को सबक सिखाने के लिए वहां के सामानों का बायकॉट करने की आवाज जोर-शोर से उठ रही है। लेकिन यदि हम चीन के सामानों का सचमुच बायकॉट कर दें, तो आज की तिथि में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को बना पाना संभव नहीं होगा। इस पर लगे कांसे के आवरण की ढलाई चीन के फाउंड्र्री में की गई थी, क्योंकि भारत में उतनी बड़ी फाउंड्री नहीं थी। स्टेच्यू ऑफ यूनिटी को बनाने वाली कंपनी एलएंडटी ने एक रिपोर्ट में कहा था कि इस परियोजना में चीन से हुए आयात का योगदान करीब 9 फीसदी के बराबर है।

चीन के आयात को हतोत्साहित किए जाने से मैन्युफैक्चरर्स में बढ़ी बेचैनी

मीडिया की चर्चा के मुताबिक चीन से आ रहे माल को क्लियरेंस मिलने में देरी हो रही है। इससे आयातकों और मैन्युफैक्चरर्स में बेचैनी बढ़ रही है। ऐसी भी चर्चा है कि चीन से आ रहे माल की 100 फीसदी जांच होगी। कुछ दिनों पहले सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जीईएम) ने विक्रेताओं से कहा कि वे अपने उत्पादों के स्रोत देश (कंट्री ऑफ ओरिजिन) की जानकारी दें। इसमें एक नया मेड-इन-इंडिया फिल्टर भी लगाया गया है। इस फिल्टर में खरीदार ऐसे उत्पादों को चुनाव कर सकते हैं, जो कम से कम 50 फीसदी लोकल कंटेंट की शर्त को पूरा करते हैं। इतना ही नहीं। कुछ अन्य रिपोर्ट्स के मुताबिक सरकार अमेजन और वालमार्ट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स से यह सुनिश्चित करने के लिए कह रही है कि उनके आपूर्तिकर्ता भी उत्पादों की लिस्टिंग स्रोत देश के आधार पर करें।

उत्पादों का स्रोत देश तय कर पाना होगा कठिन

स्रोत देश (कंट्री ऑफ ओरिजिन) कैसे तय किया जाएगा, यह हालांकि स्पष्ट नहीं है। सिर्फ एक देश में बने उत्पाद का स्रोत देश बताना तो आसान है। लेकिन कुछ उत्पाद कई देशों में बनते हैं। भारत में बनने वाले सैमसंग या एपल फोन में चीन के कंपानेंट लगे होते हैं। कोरिया या जापान के भी ऐसे कंपोनेंट लगे हो सकते हैं, जिनमें चीन के कंपोनेंट का इस्तेमाल हुआ होगा। इस तरह से तैयार हुआ अंतिम उत्पाद भारत का होगा या चीन का? वियतनाम से होने वाले आयात का क्या होगा। कई लोग मानते हैं कि चीन के माल किसी तीसरे देश से होकर भी भारत में आते हैं। किसी देश का सामान माने जाने के लिए उसमें कितना फीसदी वहां का कंपोनेंट होना जरूरी है। क्या इंस्पेक्टर यह भी जांच कर पाएंगे कि लाखों-करोड़ों उत्पादों में लगाए जा रहे लेबल बिल्कुल सही हैं।

भारतीय उद्योग में प्रतिस्पर्धा नहीं, इसलिए आयात को मिल रहा है बढ़ावा

फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कारोबारी साल 2018 में भारत का मैन्यूफैक्चरिंग उत्पादन 99,78,415 करोड़ रुपए का था। उस साल भारत ने चीन से 4,92,236 करोड़ रुपए का आयात किया था। यह भारत के मैन्यूफैचरिंग उत्पान का करीब 5 फीसदी है। यदि चीन से हुए कुछ आयात को अंतिम उत्पाद के रूप में इस्तेमाल कर लिया गया होगा, तो उसका हिस्सा 5 फीसदी से भी कम हो जाएगा। भारतीय सामानों में 5 फीसदी चीन के माल की हिस्सेदारी अधिक चिंता की बात नहीं लगती। साथ ही चीन के सस्ते आयात के कारण भारत के उद्योग अप्रतिस्पर्धी नहीं हुए हैं। सच्चाई यह है कि आयात को इसलिए बढ़ावा मिल रहा है, क्योंकि भारत के उद्योग में प्रतिस्पर्धा नहीं है। इसका कारण सरकार की दशकों पुरानी गलत नीतियां हैं।

क्या चीन के कंपोनेंट से बने सामान पर रोक लगा पाना संभव होगा?

क्या चीन के 5 फीसदी कंपोनेंट वाले सभी उत्पादों को खारिज कर दिया जाए। नहीं तो इसके लिए क्या सीमा रखी जाए? भारतीय फार्मा उद्योग चीन के आयात पर काफी निर्भर हैं। तो क्या भारत में बिकने वाली दवाओं को चीन की दवा समझकर लोग उन्हें खरीदना बंद कर देंगे? सौर ऊर्जा के क्षेत्र में क्या होगा, जिसमें अधिकतर उत्पाद चीन के हैं? साथ ही जीईएम पोर्टल या अन्य सरकारी खरीद में सीएजी के नियमों में संशोधन कर यह प्रावधान बनाया जाएगा कि जिन सामानों में अधिक भारतीय कंपोनेंट होंगे, उन्हें ऊंची कीमत पर खरीदा जा सकता है?

बायकॉट की जगह उद्योग में प्रतिस्पर्धा बढ़ाए सरकार

तमाम कोशिशों के बाद भी यदि भारतीय बाजार में चीन के माल की उपलब्धता नहीं घटी तो क्या होगा? लोग चीन के सामान का इस्तेमाल नहीं करने की अपील और जोर-शोर से करेंगे। आयात शुल्क बढ़ाने या किसी अन्य नॉन टैरिफ प्रतिबंध लगाने की आवाज उठाई जाएगी। लेकिन इससे भारतीय उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता और घट जाएगी। क्योंकि सरकार पर समस्या का सही निदान करने का दबाव और कम हो जाएगा। यदि चीन के सामान को भारत आने से रोक भी दिया गया, तो भारत में बांग्लादेश या दूसरे देश के सामान आ जाएंगे। भारतीय उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता तब भी नहीं बढ़ेगी। चीन के सामान को बायकॉट करने से अच्छा यह होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मंत्रियों से कहें कि वे अपने-अपने मंत्रालय के तहत आने वाले उद्योगों में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने पर ध्यान दें।

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