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800 कछुओं के पिता को अपनी प्रजाति बचाने के लिए दूसरे कछुओं के साथ गैलापैगोस के जंगल में छोड़ा गया

  • कई दशकों तक इन्हें कैद में रखकर प्रजनन कराने के बाद गैलापैगोस आइलैंड के जंगलों में छोड़ा गया
  • ये खास तरह के कछुए होते हैं जिनकी गर्दन लम्बी होती है और औसतन उम्र 100 साल होती है

दैनिक भास्कर

Jun 19, 2020, 05:14 PM IST

विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके विशालकाय गैलापैगोस कछुओं की प्रजाति को बचाने के लिए उन्हें वापस गैलापैगोस द्वीप के जंगलों में छोड़ा गया है। कई दशकों से इनकी प्रजाति को बचाने की कोशिशें की जा रही हैं। कई दशकों तक इन्हें कैद में रखकर प्रजनन कराने के बाद आइलैंड जंगलों में छोड़ा गया है। गैलापैगोस कछुए खास तरह के होते हैं। इनकी गर्दन लम्बी होती है जो लेदर की तरह दिखती है। इनकी उम्र औसतन 100 साल होती है।

इन प्रजाति के कछुओं का नाम प्रशांत महासागर से घिरे इक्वाडोर प्रांत के गैलापैगोस आइलैंड के नाम पर रखा गया है। यह आइलैंड लैटिन अमेरिका इक्वाडोर प्रांत में है। गैलापैगोस आईलैंड को खासतौर पर बेहद अलग तरह के जीवों और पौधों के लिए जाना जाता है। 
यह है डेगो। इसकी उम्र 100 साल है। इसे अधिक प्रजनन क्षमता के लिए जाना जाता है। यह 800 कछुओं का पिता है और पिछले 8 दशक से कैलिफोर्निया चिड़ियाघर में था। इसे वापस रिकवरी प्रोग्राम के लिए गैलापैगोस आइलैंड पर लाया गया है ताकि यह अपना वंश आगे बढ़ा सके। 
गैलापैगोस नेशनल पार्क के डायरेक्टर डैनी रुएडा के मुताबिक, 15 कछुओं के समूह को जंगलों में दोड़ा गया है। इसमें एक डेगो कछुआ भी है। डेगो को 14 अन्य कछुओं के साथ जंगलों में छोड़ा गया है। इन कछुओं का वजन 180 किलो तक हो सकता है। यह खासतौर पर ऐसी जगह पाए जाते हैं जहां काफी संख्या में कैक्टस के पौधे होते हैं। इन पर नजर रखने के लिए जीपीएस ट्रैकर भी लगाए गए हैं।
विशालकाय गैलापैगोस कछुओं की प्रजाति ने वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन तक को प्रेरित किया था और जैव विकास के अध्ययन में उन्होंने 1859 में इसकी प्रजाति की उत्पत्ति का जिक्र भी किया था। कछुए की ये प्रजाति लंबे समय तक बिना खाना और पानी के जीवित रह सकती है। 
18वीं और 19वीं शताब्दी में इनकी संख्या में तेजी से कमी आई। बिना खाना और पानी के लम्बे समय तक जीवित रहने के कारण नाविक इसे अपने साथ ले जाते थे और जरूरत पड़ते पर खाते थे। आईलैंड पर मौजूद चूहे, सुअर और कुत्ते अक्सर इनके अंडों को खा जाते थे इस कारण भी इनकी संख्या सीमित होती गई और विलुप्त जीवों की श्रेणी में मान लिया गया।

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