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डेक्सामेथासोन पहली लाइफ सेविंग ड्रग बनकर उभरी, ये 3 में से 1 गंभीर कोरोना मरीज को बचा सकती है

  • ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने कोरोनावायरस के 2,104 मरीजों को डेक्सामेथासोन देकर रिसर्च की
  • शोधकर्ताओं के मुताबिक, दवा के कारण मरीजों में लक्षण 15 की जगह 11 दिन में दिखना कम हुए

दैनिक भास्कर

Jun 16, 2020, 09:22 PM IST

इंग्लैंड के शोधकर्ताओं का दावा है डेक्सामेथासोन दवा कोविड-19 से जूझ रहे मरीजों में मौत का खतरा घटाती है। यह दवा संक्रमण के कारण होने वाली मौत के आंकड़े को एक तिहाई तक कम कर सकती है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में हुई इस रिसर्च के नतीजे मंगलवार को जारी हुए। शोधकर्ताओं ने कोरोना के 2,104 मरीजों पर रिसर्च की और इनकी तुलना 4,321 दूसरे कोरोना संक्रमितों से की, जिनका सामान्य इलाज चल रहा था।

ऑक्सीजन ले रहे मरीजों में मौत का खतरा 20 फीसदी घटा
शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना के मरीजों में डेक्सामेथासोन दवा ओरल या नली के जरिए शरीर में पहुंचाई गई। जिन मरीजों को ब्रीदिंग मशीन की जरूरत थी उनमें मौत का खतरा घटा 35 फीसदी तक घटा। वहीं, जो ऑक्सीजन ले रहे थे उनमें खतरा 20 फीसदी तक कम हुआ। 

सस्ता और असरदार इलाज 
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता पीटर हॉर्बे के मुताबिक, रिसर्च के दौरान कोरोना मरीजों के बचने की दर साफ तौर पर बढ़ी है। बड़ी संख्या में ऐसे मरीज, जिन्हें अधिक ऑक्सीजन की जरूरत है, उनमें डेक्सामेथासोन दवा का असर देखा गया। यह दवा अधिक महंगी न होने के कारण वैश्विक स्तर पर लोगों की जान बचाने में इस्तेमाल की जा सकती है। 

इम्यून सिस्टम को डैमेज करने से रोकती है

शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोरोनावायरस से जूझ रहे हाईरिस्क वाले मरीजों के लिए यह दवा बेहतर है। इसका इस्तेमाल पहले ही एलर्जी, सूजन, अस्थमा जैसी बीमारियों के इलाज में किया जा रहा है। कोरोना के कुछ मरीजों में शरीर को बचाने वाला इम्यून सिस्टम उल्टा काम करने लगता है और नुकसान पहुंचाता है, इस स्थिति को सायटोकाइन स्टॉर्म कहते हैं। जो मौत का खतरा बढ़ाता है। ऐसी स्थिति में डेक्सामेथासोन इम्यून सिस्टम को शरीर डैमेज करने से रोकती है। 

हल्के लक्षण वालों में असर नहीं
शोधकर्ता पीटर के मुताबिक, इस दवा का असर कोरोना के हल्के लक्षणों वाले मरीजों में नहीं दिखा। इसके अलावा अब तक सिर्फ एंटीवायरल ड्रग रेमेडेसेवीर का ही बेहतर असर कोरोना मरीजों पर दिखा है। आमतौर पर जिसका इस्तेमाल इबोला के लिए किया जाता है। शोधकर्ता का कहना है कि दवा के कारण मरीजों में लक्षण 15 दिन की जगह 11 दिन में दिखना कम हुए।

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