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प्रफरेंशियल इश्यू के नियमों को आसान कर सकती है सेबी, इससे लिस्टेड कंपनियों को पूंजी जुटाने में मिलेगा फायदा

  • कोविड-19 संकट खत्म होने के बाद नियमों में फिर से हो सकता है बदलाव
  • आईबीसी यानी दिवालिया कानून के तहत भी कंपनियों को राहत मिल सकती है

दैनिक भास्कर

Jun 04, 2020, 02:53 PM IST

मुंबई. पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) प्राइसिंग नियमों में छूट पर सक्रिय रूप से विचार कर रहा है। अगर छूट मिलती है तो इससे सभी कंपनियों के लिए शेयर की कीमतों और आय को प्रभावित करने वाली महामारी में वित्तीय और रणनीतिक निवेशकों को प्रफरेंशियल इक्विटी बिक्री कर पूंजी जुटाना आसान हो जाएगा।

केवल तनाव वाली कंपनियों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी लिस्टेड कंपनियों के लिए होगा

सेबी के समक्ष प्रस्ताव यह है कि प्रफरेंशियल अलॉटमेंट रेगुलेशन को केवल बुरा दौर झेल रही कंपनियों के लिए ही लागू न किया जाए। बल्कि किसी भी लिस्टेड यूनिट के लिए ज्यादा रियलिस्टिक बनाया जाए। जिससे यह कंपनियां प्राइवेट इक्विटी और अन्य निवेशकों के पास से पैसे जुटा सकें। इससे एक व्यापार मॉडल के बावजूद वर्तमान माहौल में संघर्ष कर कंपनियों को फायदा होगा। इस प्रस्ताव का समर्थन सेबी की प्राइमरी मार्केट एडवाइजरी कमिटी भी कर रही है। इसने हाल ही में नियामक के साथ अपने विचार साझा किए हैं।

बाजार के उतार-चढ़ाव से फंड जुटाने में दिक्कत

मूल्य निर्धारण दिशानिर्देशों के लिए शेयरों के प्रफरेंशियल अलॉटमेंट में इश्यू प्राइस को पिछले दो हफ्तों या पिछले 26 हफ्तों का औसत, जो भी ज्यादा हो, होना जरूरी है। बाजार के उतार-चढ़ाव के कारण मौजूदा बाजार मूल्य और सेबी के प्रफरेंशियल अलॉटमेंट नियम के आधार पर कीमत के बीच अच्छा खासा अंतर (अक्सर 40-50 प्रतिशत) है। इससे कंपनियों को फंड जुटाने के लिए इस रास्ते का अनुसरण करना नामुमकिन हो जाता है।

क्यूआईबी को आवंटन के लिए छूट है

हालांकि क्वालिफाइड इंस्टीट्यूशनल बायर्स (QIBs) को आवंटन के लिए कुछ छूट है। इसमें म्यूचुअल फंड, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक और बैंकों का समावेश है। यह किसी ऐसी कंपनी को पूंजी जुटाने के लिए मदद नहीं करता है जो एक रणनीतिक निवेशक या मौजूदा प्रमोटरों के साथ शेयर रखकर इक्विटी कैपिटल बढ़ाने को देखता है।

कई निवेशक प्रमोटर के रूप में कर सकते हैं निवेश

बाजार के जानकार के मुताबिक यह देखते हुए कि वर्तमान स्थिति की वजह से कारोबार केवल अस्थाई रूप से प्रभावित हुआ है। ऐसे में कई स्थानीय और वैश्विक संस्थागत निवेशक हो सकते हैं जो वर्तमान प्रमोटर के रूप में ही पूंजी निवेश को तैयार हों। एक अन्य व्यक्ति ने कहा, “पूंजी की तत्काल आवश्यकता के कारण, जो तरीका इश्युअर और निवेशकों के लिए सबसे अच्छा काम करता है, वह एक प्रफरेंशियल इश्यू ही है।

कोविड-19 के बाद बदल गई हैं स्थितियां

बाजार नियामक ने महामारी से पहले प्राइमरी मार्केट पैनल के विचारों के आधार पर इस विषय पर चर्चा पत्र जारी किया था। कोरोना प्रकोप के बाद परिस्थितियाँ बदल गईं। सेबी को मिले फीडबैक के मुताबिक, प्रस्तावित प्राइसिंग छूट सिर्फ स्ट्रेस्ड कंपनियों तक सीमित नहीं होनी चाहिए, बल्कि सभी तक इसका विस्तार होना चाहिए। सूत्रों ने बताया कि यह मुद्दा कॉर्पोरेट इंडिया के सदस्यों और वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के संयुक्त सचिव आनंद मोहन बजाज के बीच पिछले सप्ताह आयोजित एक वेब कांफ्रेंस में सामने आया।

पैनल पहले ही सिफारिशों को भेज चुका  है

बैठक में शामिल प्राइमरी मार्केट कमिटी के एक सदस्य ने कहा कि पैनल पहले ही अपनी सिफारिशें नियामक को भेज चुका है। हालांकि रेगुलेटर की राहत उन कंपनियों को दी जा सकती है जो दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) की कार्यवाही के तहत हैं। लेकिन व्यापार गतिविधि में लॉकडाउन, लेंडर्स के बीच जोखिम से बचने और सप्लाई चेन में व्यवधान के बाद स्ट्रेस की परिभाषा बदल गई है। प्रफरेंशियल प्राइसिंग रिलैक्सेशन शॉर्ट टर्म में सरकार पर दबाव डाले बिना कठिनाई से उबरने के लिए एक समाधान हो सकता है।

हो सकता है कि सेबी इसे समयबद्ध छूट ऑफर कर सकता है जिसे संकट की समाप्ति के बाद फिर बहाल किया जा सकता है।

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