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साउथ एशिया में नाइट्रोजन से होने वाले प्रदूषण को घटाने और फसल की पैदावार बढ़ाने के तरीके बताएगी आईपी यूनिवर्सिटी

  • स्कूल ऑफ बायोटेक्नोलॉजी को मिला रिसर्च फंड, 300 रिसर्च प्रोजेक्ट की प्रतियोगिता से मिला

दैनिक भास्कर

Jun 09, 2020, 06:44 AM IST

दिल्ली. साउथ एशिया में नाइट्रोजन से होने वाले प्रदूषण को घटाने और फसल की पैदावार बढ़ाने के तरीके बताने के लिए दिल्ली की इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी को ढाई करोड़ रुपए का फंड प्रोजेक्ट मिला है। यह फंड रिसर्च प्रोजेक्ट्स की अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता को जीतकर यूनिवर्सिटी के बायो टेक्नोलॉजी विभाग को मिला। प्रतियोगिता में 300 से ज्यादा प्रोजेक्ट शामिल हुए थे। वातावरण को प्रदूषित करने में नाइट्रोजन का भी अहम रोल होता है।

यह नाइट्रोजन खेती की पैदावार बढ़ाने में इस्तेमाल होने वाले यूरिया से निकलती है। जानकारों के मुताबिक पैदावार बढ़ाने के लिए खेत में यूरिया डाली जाती है लेकिन उसका पूरा इस्तेमाल नहीं हो जाता। पैदावार बढ़ाने में सिर्फ 30-40 फीसदी यूरिया का इस्तेमाल होता है, बाकी यूरिया के कारण नाइट्रोजन प्रदूषण होता है। फसल कटने के बाद पराली का प्रदूषण इसी नाइट्रोजन प्रदूषण की वजह से होता है। 

भारत और यूके के अलावा पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान और बंगलादेश के पार्टनर भी शामिल 

यूरिया के कारण होने वाले इसी नाइट्रोजन प्रदूषण को घटाने और पैदावार बढ़ाने को लेकर इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के बायो टेक्नोलॉजी विभाग ने एक प्रोजेक्ट तैयार किया गया, जिसका नाम ‘’साउथ एशियन नाइट्रोजन हब’’ रखा गया। यानी रिसर्च के माध्यम से साउथ एशिया देशों में नाइट्रोजन प्रदूषण कम करने के उपाय और पैदावार बढ़ाने के उपाय ढूंढ़े जाएंगे।
आईपी यूनिवर्सिटी को ढाई करोड़ रुपए का रिसर्च प्रोजेक्ट ग्लोबल चैलेंज रिसर्च फंड के तहत यूके रिसर्च एंड इनोवेशन (यूकेआरआइ) की ओर से दिया गया है। अपने रिसर्च और फंड के बारे में बताते हुए यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ बायो टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर एन रघुराम ने बताया कि ग्लोबल रिसर्च फंड दुनिया से प्रदूषण घटाने के लिए होने वाले शोध के संबंध में दिया जाता है। फंड के लिए दुनियाभर से 300 से ज्यादा आवेदन आए थे।

उसमें से बहुत कम प्रोजेक्ट रह गए। हमें बताया गया है कि ‘’साउथ एशियन नाइट्रोजन हब’’ प्रोजेक्ट टॉप पर रहा है। रिसर्च के बारे हमारी कोशिश रहेगी कि कैसे कम यूरिया के इस्तेमाल से ज्यादा पैदावार हो सकती है। इससे पैसा भी बचेगा और नाइट्रोजन के कारण जो प्रदूषण होता है, वह भी कम हो जाएगा।

प्रोफेसर रघुराम इस वक्त इंटरनेशनल नाइट्रोजन इनिशिएटिव के भी चेयरमैन हैं। उनकी मदद से भारत के नेतृत्व में पहली बार चौथे यूएन एनवायरमेंट असेंबली में ‘’सस्टेनेबल नाइट्रोजन मैनेजमेंट’’ प्रस्ताव पास हुआ था। इससे भारत ने दुनिया को अपना ग्लोबल एन्वायरमेंटल लीडरशिप का परिचय दिया।

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