ब्रिटेन में रहने वाली 12 वर्षीय सारा ग्रिफिन को गत सितंबर में अस्थमा का दौरा पड़ा और उसे अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत आ गई.
चार दिन अस्पताल में कोमा में रही सारा की हालत फिलहाल बेहतर है, लेकिन वेपिंग की लत उसके फेफड़ों को बुरी तरह क्षति पहुंचा चुकी है.
सारा की मां मैरी ने बीबीसी संवाददाता डॉमिनिक ह्यूजस और लूसी वाटकिन्सन को बताया,”डॉक्टरों का कहना है कि उसका एक फेफड़ा लगभग पूरी तरह खराब हो चुका है. उसका श्वसन तंत्र ऐसा हो गया है, जैसे किसी 12 साल के बच्चे की बजाय 80 साल के बुजुर्ग का हो.”
मैरी बताती हैं, ”इलाज के दौरान सारा की हालत देखकर एकबारगी तो यही लगा था कि मैं अपनी बेटी को खो दूंगी. बहरहाल, सारा ने अब वेपिंग से तौबा कर ली है और अब लोगों को वेपिंग न करने के लिए जागरूक कर रही है.’’
सारा को वेपिंग की लत तब लगी थी, जब वह महज नौ साल की थी. वहीं, भारत में भी स्कूल जाने वाले छोटे-छोटे बच्चों के पास वेपिंग डिवाइस मिलने की घटनाओं ने चिंता बढ़ा दी हैं.
कुछ मांओं के बनाए संगठन मदर्स अगेंस्ट वेपिंग ने गत अक्टूबर में महिला सांसदों को लिखे एक पत्र में कहा है कि प्रतिबंध के बावजूद छह-सात साल तक की उम्र के बच्चों के पास ई-सिगरेट जैसे उत्पाद मिलना उनके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ है.
क्या होती है ई-सिगरेट?
ई-सिगरेट बैटरी से चलती है. इसमें तरल पदार्थ जिसे बैटरी के जरिये गर्म करने के बाद इनहेल या सांस के ज़रिए खींचा जाता है.
तरल पदार्थ में आमतौर पर तंबाकू से तैयार निकोटिन का कुछ अंश होता है. इसके अलावा प्रोपलीन ग्लाइकोल, कार्सिनोजन, एक्रोलिन, बेंजिन आदि केमिकल और फ्लेवरिंग का इस्तेमाल किया जाता है.
अब बाज़ार में ये पेन, पेनड्राइव, यूएसबी या किसी खिलौने के रूप में आकर्षक पैकिंग में भी उपलब्ध है और जानकार बताते हैं कि इन वेपिंग डिवाइस का विदेशों ही नहीं भारत में भी चलन ख़ासा बढ़ रहा है.
बच्चों के लिए दोहरा खतरा
फोर्टिस हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा में एडिशनल डायरेक्टर, पल्मोनलॉजी एंड क्रिटिकल केयर से बातचीत में कहा, ” वेपिंग से बच्चों को दोहरा खतरा होता है, एक तो इसमें इस्तेमाल होने कई तरह के रसायन, निकोटिन आदि उनके फेफड़ों को क्षति पहुंचाते हैं. दूसरा एक बार वेपिंग की लत लगने पर आगे चलकर सीधे तौर पर सिगरेट या बीड़ी का कश लगाने की संभावना और ज्यादा बढ़ जाती है.”