राजनीति में नेता कितना ही एक-दूसरे का विरोध करें, लेकिन कई मौके ऐसे आते हैं जब दोनों पक्ष एक जाजम पर नजर आ जाते हैं। धर्म ऐसा ही विषय है, जहां सभी दलों के नेता एक साथ शीष नवाते हैं। इन दिनों राजनीति में धर्म का भी विशेष महत्व हो गया है। भाजपा पर तो भगवा पार्टी की छाप लगी ही है, अब कांग्रेसी चेहरे भी मंदिर-मंदिर नजर आने लगे हैं। गत दिनों शहर आए स्वामी अवधेशानंद गिरि जी का आशीर्वाद लेने में भी ऐसी ही होड़ नजर आई। भाजपा की अयोध्या में पूर्व महापौर मालिनी गौड़ के निवास पर स्वामीजी पहुंचे थे। इस दौरान क्या भाजपा और क्या कांग्रेस, दोनों दलों के नेता आशीर्वाद लेने पहुंचे। फिल्मी सितारों के लिए नजर आने वाली प्रशंसकों की भीड़, एक साधू के लिए देखना सनातनी संस्कारों के बीच सुखद अनुभव था।
शहर के संभ्रांत वर्ग के प्रतिनिधि यशवंत क्लब में नए सदस्यों की आमद होने की तैयारी है। क्लब की नई सरकार के गठन के बाद इसकी उम्मीद की जा रही थी। फैसले के लिए बुलाई बैठक में कुलीनों के बीच हुई तकरार इन दिनों में सुर्खियों में है। मुद्दा खेल से जुड़ा था, लेकिन विषय पैसों को लेकर था।
क्लब के वरिष्ठ पदाधिकारी और वरिष्ठ सदस्य के बीच हुई नोकझोंक ने सभी को हैरान कर दिया। हालांकि महफिल में सुर्खियां सत्ता पक्ष से जुड़ी एक महिला चेहरे ने भी बटोरी। परिवारिक माहौल की बात करने वाले क्लब में इन्होंने महिलाओं के अधिकार का झंडा बुलंद किया। मुद्दे क्या थे वह अलग बात है, लेकिन इन्हें बैठक में ‘अपनों’ का ही खुलकर समर्थन नहीं मिला। अब ऐसा क्यों हुआ इसके कारण तलाशे जा रहे हैं।
पक्ष-विपक्ष की खींचतान में बागड का नुकसान
कांग्रेस के प्रदर्शन ने सत्ता पक्ष सहित शहर का ध्यान खींचा। लंबे समय के बाद कांग्रेसी साथ दिखे, लेकिन शहर में कांग्रेस एक हो गई हो, इसपर अभी भी संशय है। शहरी मुद्दों को लेकर विपक्ष का मुखर होना जनता को रास आता है। मगर कांग्रेस के साथ दिक्कत इतनी है कि आंदोलन के बाद नेता अपने-अपने रास्ते निकल लेते हैं और विरोध एक दिन के बाद आगे दम नहीं पकड़ता। इस बार हुए आंदोलन की उग्रता कितने दिनों तक रहती है इसपर मतदाताओं की निगाह रहेगी। युद्ध में लगी चोट वीरता का प्रमाण होती है और इस प्रदर्शन में चोटिल हुए नेताओं को उम्मीद है कि पार्टी उन्हें इसका पारितोषिक देगी। मगर आस-पास के कई दुकानदार बेवजह नुकसान उठा बैठे। कुछ के फर्नीचर टूटे तो अन्य सामान को भी नुकसान पहुंचा। पुरानी कहावत की तर्ज पर यहां हुए ‘बागड़ के नुकसान’ की भरपाई करने कोई आगे नहीं आएगा।