May 2, 2024 : 6:46 AM
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देवघर रोपवे हादसे में 22 लोगों की जान बचाने वाले पन्नालाल पंजियारा कौन हैं

उन्हें उम्मीद है कि स्थितियां सामान्य होने के बाद वे 16 अप्रैल से काम पर वापस जा पाएंगे. वे दामोदर रोपवेज़ इन्फ्रा लिमिडेट (डीआरआइएल) के कर्मचारी हैं. यह कंपनी त्रिकूट पहाड़ पर रोपवे का संचालन करती है.

10 अप्रैल की शाम यहां हुए हादसे और उसके बाद चले रेस्क्यू आपरेशन के दौरान तीन लोगों की मौत हो गई थी.

लेकिन, पन्नालाल पंजियारा ने करीब 700 फीट की ऊंचाई पर ट्रॉलियों में फंसे 22 पर्यटकों को अपने दम पर बचाया था. इस कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनकी तारीफ़ की है. इन दोनों नेताओं ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए पन्नालाल से बात भी की.

राज्य सरकार ने दी प्रोत्साहन राशि

झारखंड सरकार ने पन्नालाल को एक लाख रुपये की प्रोत्साहन राशि भी दी है. इस कारण वे सुर्खियों में हैं और उनके घर लोगों का आना-जाना लगा हुआ है.

त्रिकूट पहाड़ झारखंड के देवघर शहर से क़रीब 20 किलोमीटर दूर दुमका-देवघर रोड के किनारे स्थित है. पन्नालाल पंजियारा अपने तीन बच्चों संजू, राहुल, खुशबू और पत्नी सुनीता देवी के साथ त्रिकूट पहाड़ के पास बसे गांव तीरनगर में रहते हैं. यहां उनका छोटा-सा मकान है.

उनका पैतृक गांव बलडीहा भी पहाड़ के पास ही है, लेकिन वहां पार्याप्त ज़मीन नहीं होने के कारण उन्होंने बगलगीर गांव तीरनगर को अपना ठिकाना बना लिया. अब यही उनका निवास स्थान है.

यह इत्तेफाक ही है कि जिस पन्नालाल पंजियारा की बहादुरी की चर्चा प्रधानमंत्री ने की, उन्हें सरकार की अधिकतर योजनाओं का लाभ नहीं मिल सका. उन्होंने अपने दम पर दो कमरों का मकान बनाया, लेकिन उसमें शौचालय नहीं बनवा सके. इस कारण उनका परिवार आज भी खुले में शौच के लिए विवश है.

सरकारी सुविधाएं न मिलने की ख़बर के बाद झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अधिकारियों को पन्नालाल के घर में शौचालय बनवाने का निर्देश दिया है. बीबीसी की ख़बर का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा है कि इस मामले की जांच कराई जाए और पन्नालाल को सरकारी योजनाओं से जोड़ा जाए.

बचपन में ही गुजर गए थे मातापिता

पन्नालाल के मां-पिताजी की मौत उनके बचपन में ही हो गई. तब वे सिर्फ 10 साल के थे. उसके बाद पांच भाई-बहनों के साथ उन्होंने अपनी जिंदगी गुजारी. इसलिए उन्हें बचपन से ही संघर्ष की आदत हो गई थी. वे अनपढ़ हैं लेकिन उनके साहस ने पढ़े-लिखे लोगों को भी चकित कर दिया है.

पन्नालाल ने कहा, “रोपवे में काम करने से मुझे क़रीब 15 हज़ार रुपये मिल जाते हैं लेकिन अगर मुझे इससे ज्यादा तनख्वाह की सरकारी नौकरी और सुविधाएं मिल जातीं, तो परिवार चलाना आसान हो जाता.”

रेस्क्यू की कहानी, पन्नालाल की जुबानी

पन्नालाल ने रामनवमी की शाम हुए रोपवे हादसे की पूरी कहानी बीबीसी को बताई.

अगर मैं अपने बच्चों के बारे में सोचता, तो शायद उतने लोगों को नहीं बचा पाता. अब मैं पूरी तरह संतुष्ट हूं कि मेरी वजह से 22 लोगों की जान बच सकी. वे खुश हैं, क्योंकि अभाव में गुजर-बसर करने वाले उनके परिवार के सदस्यों को एक साथ खुश होने का मौक़ा मिला है. वे उन गांववालों के भी शुक्रगुजार हैं, जिनकी मदद से उन्होंने लोगों की जान बचाई.

उस दिन रामनवमी थी. मेरे गांव में दुर्गापूजा होती है. इस दिन बलि की परंपरा है. इसलिए मैंने अपने इंचार्ज से सिर्फ इसलिए छुट्टी ली कि बलि का प्रसाद घर पर देकर वापस काम पर लौट आऊंगा. घर जाने के क्रम में बंसडीहा मोड़ पर मैं एक दुकान पर पुड़िया (गुटखा) खाने के लिए रुका. उसी दुकानदार ने मुझे रोपवे हादसे की सूचना दी. मैं सन्न रह गया और घर जाने के बजाय वापस ड्यूटी पर लौट गया.वहां काफी भीड़ लगी थी. पहले तो डर लगा कि लोग कहीं हम लोगों को मारने न लगें. लेकिन, मैं हिम्मत जुटाकर आगे बढ़ा. फिर जो दृश्य दिखा, वह दिमाग को झकझोरने वाला था. लोग ट्रॉलियों में फंसे थे, उनके चिल्लाने की आवाजें नीचे तक आ रही थीं.

मैंने सोचा कि ऊपर फंसे लोगों को तो अपने दम पर बचाना मुश्किल है, लेकिन नीचे की ट्रालियों मे फंसे लोगों को बचाने की कोशिश करनी चाहिए. फिर मैंने सेफ्टी बेल्ट और रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ना शुरू किया. तब पांच बज रहे थे. हम समझ गए कि जो भी करना है, अंधेरा होने से पहले करना होगा. मुझे गांव वालों और साथी कर्मचारियों न केवल हिम्मत दी, बल्कि रेस्क्यू मे मेरी मदद भी की.

रस्सी के सहारे लटक-लटक कर ऊपर चढ़ने के बाद मैंने वहां फंसी चार ट्रालियों में सवार 16 पर्यटकों और तीन साल से कम उम्र के उनके दो बच्चों को एक-एक कर सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया. उन्हें नीचे लाते-लाते अंधेरा हो गया. तब तक प्रशासन की टीम भी आ गई.

अधिकारियों ने कहा कि अंधेरे में बचाव अभियान चलाना संभव नहीं है. फिर हम ऊपर नहीं गए. अगली सुबह (11 अप्रैल) आठ बजे 2 हेलिकाप्टर आए और पहाड़ का दो चक्कर लगाने के बाद वापस चले गए. तब तक सेना के जवान भी आ गए थे लेकिन बचाव अभियान शुरू नहीं हो सका. उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि इतने ऊपर लटके लोगों तक कैसे पहुंचा जाए.

फिर मैंने रस्सियों के सहारे दोबारा चढ़ाई शुरू की और एक और ट्रॉली में फंसे 4 लोगों को बाहर निकाला. इस प्रकार मैंने 2 बच्चों समेत कुल 22 लोगों को बचाने में में सफलता पाई. उसके बाद का सेना, वायुसेना, आइटीबीपी, एनडीआरएफ और स्थानीय प्रशासन के लोगों द्वारा बचाव अभियान चलाया गया और तीन लोगों को छोड़कर बाकी सभी पर्यटक बचा लिए गए.

मुझे खुशी है कि डीसी साहब ने मेरे काम की तारीफ़ की और प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जी से मेरी बात कराई. उससे पहले मैंने उन लोगों का सिर्फ फोटो देखा था.

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