हिंदी फिल्मों के यूं तो कई ऐसे गीत हैं, जिन्हें सुनकर पांव थिरकने लगते हैं लेकिन जिन गीतों पर पैर थिरकने के साथ दिल भी झूम उठे, ऐसे कई गीत बप्पी लाहिड़ी ने ही दिए.
बप्पी लाहिड़ी के निधन से फ़िल्म संगीत के ‘पॉप-डिस्को संगीत’ के एक युग का अंत हो गया. बड़ी बात यह है कि ये युग उन्होंने ही शुरू किया था.
इसे संयोग कहें या कुछ और कि बप्पी लाहिड़ी सचिन देव बर्मन के दीवाने थे. उन्हीं की शास्त्रीय धुनों से प्रभावित होकर वह फ़िल्मों में आए लेकिन मायानगरी ने बप्पी दा की शास्त्रीय धुनों को दरकिनार कर उन्हें ‘डिस्को किंग’ बना दिया.
बॉलीवुड में तीन साल में बना ली अपनी जगह
कुछ बांग्ला फ़िल्मों के बाद हिंदी फ़िल्मों में बतौर संगीत निर्देशक बप्पी लाहिड़ी की शुरुआत 1973 की फ़िल्म ‘नन्हा शिकारी’ से हुई थी. उस समय लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल, कल्याणजी आनंद जी और आरडी बर्मन जैसे कई दिग्गज संगीतकारों की धूम थी.
राजेश खन्ना, जितेंद्र, धर्मेन्द्र, सुनील दत्त, शशि कपूर और अमिताभ बच्चन जैसे नायकों का ज़माना था. लेकिन बप्पी लाहिड़ी ने दिग्गज संगीतकारों के बीच भी सिर्फ़ तीन साल में ऐसी जगह बना ली थी कि वह जल्द ही ज्यादातर नायकों की पहली पसंद बन गए.
फ़िल्म ‘जख्मी’ के गानों से मिली पहचान
बप्पी लाहिड़ी की जिस फ़िल्म के संगीत ने पहली बार युवा दिलों को छुआ, वो थी ‘ज़ख़्मी’. 1975 में प्रदर्शित निर्माता ताहिर हुसैन (आमिर ख़ान के पिता) की ‘ज़ख़्मी’ के गीत इतने लोकप्रिय हो गए कि संगीत कंपनियों के ही नहीं, फ़िल्म उद्योग के कितने ही लोगों के होश उड़ गए.
फ़िल्म के पांचों गीतों में कुछ इतना अलग, इतना नया था कि आज भी उन गीतों की लोकप्रियता बरकरार है.
चाहे वह लता मंगेशकर का गाया गीत -‘अभी अभी थी दुश्मनी’ हो या फिर किशोर कुमार का गाया ‘ज़ख़्मी दिलों का बदला चुकाने, आए हैं दीवाने दीवाने’ या फिर किशोर -आशा भोसले का ‘जलता है जिया मेरा भीगी भीगी रातों में’ और लता-सुषमा श्रेष्ठ का गाया -आओ तुम्हें चाँद पर ले जाएं’.
साथ ही, फ़िल्म में एक वह गीत- ‘नथिंग इज इंपोसिबल’ भी था जिसमें किशोर, रफी के साथ ख़ुद बप्पी लाहिड़ी ने भी अपनी आवाज़ दी थी, यह गीत भी तब लोकप्रिय हुआ था.
कम पैसे वाले फिल्म प्रोड्यूसर्स के ‘आरडी बर्मन‘
बस इस फ़िल्म की सफलता के बाद बप्पी दा ने फिर अंत तक कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, हालांकि फ़िल्म उद्योग के कुछ लोगों के साथ बहुत से अन्य संगीत प्रेमियों को उनका यह नया संगीत रास नहीं आया.
उन पर कई आरोप भी लगते रहे, यह भी कहा जाने लगा “यह डिस्को संगीत हमारे देश में चलने वाला नहीं, दो चार साल बाद बप्पी लाहिड़ी की यह लहर फुर्र हो जाएगी, यह चार दिन की चाँदनी है, यह फूहड़ संगीत है वगैरह.” लेकिन बप्पी दा के गीतों की चाँदनी चार दिन की नहीं, दिन-दूनी रात चौगुनी बढ़ती गई.
असल में बप्पी लाहिड़ी की सफलता के चार खास कारण थे. एक तो यह कि वह युवाओं की नब्ज़ बहुत अच्छे से समझ रहे थे, दूसरा वह फटाफट धुनें बनाते थे. तीसरा बड़े गायक-गायिकाएं बप्पी दा की प्रतिभा और व्यवहार के कायल थे. किशोर कुमार तो उनके मामा ही लगते थे इसलिए उनके साथ काम करने के लिए कोई भी सिंगर झट से हां कर देता था. चौथा कारण ये था कि वह तब अन्य संगीत निर्देशकों की तुलना में पैसे कम लेते थे.
कभी-कभी इस शर्त पर भी काम करने को तैयार हो जाते थे कि यदि फ़िल्म हिट हो जाए तो बाकी पैसे बाद में दे देना इसलिए तब बप्पी दा को ‘ग़रीब फिल्म निर्माताओं का आरडी बर्मन’ कहा जाने लगा था.
इस सबके चलते वह पहले मुंबई के छोटे फ़िल्मकारों के साथ दक्षिण के फ़िल्म निर्माताओं के बीच भी घर कर गए, ‘ज़ख़्मी’ के ठीक बाद आई बप्पी दा की ‘चलते-चलते’ अपने शीर्षक गीत के कारण ही उस बरस की एक सुपर हिट म्युज़िकल साबित हुई.
जब ‘डिस्को डांसर ने एक पूरी पीढ़ी को दीवाना बना दिया
लेकिन बप्पी की सफलता की इससे भी बड़ी कहानी 1980 के दशक में तब लिखी गई, जब 1982 में ‘डिस्को डांसर’ रिलीज हुई. यही वह फिल्म है जिसने बप्पी लाहिड़ी युग शुरू किया.
विजय बेनेडिक्ट का गाया -आय एम डिस्को डांसर, पार्वती खान का गया -जिमी जिमी, उषा उत्थुप का गाया -कोई यहां नाचे नाचे, सुरेश वाडेकर-उषा मंगेशकर का -गोरों की ना कालों की और बप्पी का गाया ‘याद आ रहा है तेरा प्यार’, फिल्म के ऐसे गीत थे जिनसे फिल्म संगीत की हवा ही बदल गई.
इस फिल्म ने बप्पी लाहिड़ी को तो सफलता-लोकप्रियता का नया शिखर दिया ही, साथ ही, फिल्म के नायक मिथुन चक्रवर्ती इसी फिल्म से बॉलीवुड के रॉक स्टार बन गए, बप्पी दा की तरह मिथुन भी तब गरीब फ़िल्मकारों के अमिताभ बच्चन कहे जाने लगे.