May 2, 2024 : 3:16 PM
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हिमानी बुंदेला: देख नहीं सकतीं लेकिन केबीसी में जीत गईं एक करोड़ रुपये

हिमानी बुंदेला

आगरा की हिमानी बुंदेला ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन उनकी कामयाबी को देश भर में लोग देखेंगे. बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन उनकी तारीफ़ों के पुल बांधेंगे.

महज़ 25 साल की उम्र में हिमानी बुंदेला ‘कौन बनेगा करोड़पति’ सीज़न 13 की पहली करोड़पति बन गयी हैं. उनकी कामयाबी की अहमियत इसलिए भी है कि वो देख नहीं सकतीं.

हिमानी जब 15 साल की थीं तब उनकी आंखों की रोशनी एक दुर्घटना में चली गई. आर्थिक रूप से सामान्य परिवार ने हिमानी की आंखों के चार-चार ऑपरेशन का ख़र्चा उठाया, लेकिन आंखों की रोशनी नहीं लौटी.

पर हिमानी ने हिम्मत ने नहीं हारी. नए सिरे से शुरुआत की और अपने परिवार में सरकारी नौकरी हासिल करने वाली पहली शख़्स बनीं.

केंद्रीय विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी करने वाली हिमानी बुंदेला ने अपने बचपन, आंखों की रोशनी गंवाने वाले हादसे, अपने संघर्षों से लेकर केबीसी में करोड़ रुपये जीतने के अपने तमाम अनुभव बताए. उनसे जानिए उनकी कहानी:-

केबीसी के लिए 2009 से कोशिश कर रही थी

मुझे बचपन से ही टीवी देखने का शौक़ था. जब मैं रियलिटी शो देखती थी और लोगों को परफ़ॉर्मेंस करते देखती थी तो मेरे मन में भी आता था कि क्या मैं भी टीवी पर आ सकती हूं?

फिर मैंने केबीसी देखा तो महसूस हुआ कि इस शो में तो हम जेनरल नॉलेज के दम पर जा सकते हैं और तभी मैंने तय कर लिया कि मुझे एक दिन उस हॉट सीट पर बैठना है और अमिताभ सर से मिलना है.

अब तो दुनिया ने भी देख लिया कि मैं ना केवल हॉट सीट तक पहुंची बल्कि एक करोड़ रुपये भी जीत लिए. इस अनुभव को मैं शब्दों में नहीं बयां कर सकती. लेकिन यह कोई झटके से मिली कामयाबी नहीं है.

मैंने साल 2009 से ही ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में रजिस्ट्रेशन की कोशिश शुरू कर दी थी, लेकिन हर बार कोशिश फ़ेल हो जाती थी. रजिस्ट्रेशन नहीं हो पाता था. इस बीच मेरी दुनिया बदल गई, आंखों की रोशनी चली गई लेकिन दस साल के बाद 2019 में रजिस्ट्रेशन सफल रहा, पर हॉट सीट पर बैठने का मौका नहीं मिल पाया. 2019 से 2021 तक लगातार तीन बार रजिस्ट्रेशन सफ़ल हुआ और आख़िरकार मौका 2021 में मिला.

जब सोनी टीवी की ओर से मुझे बताया गया कि आप ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में भाग लेने के लिए मुंबई आ रही हैं तो मुझे यक़ीन ही नहीं हुआ. पहली बार तो यही लगा कि कोई फ़्रॉड तो नहीं कर रहा है? लेकिन उन लोगों से लंबी बातें हुईं और जब मुझसे किसी तरह के बैंक डिटेल्स या कोई निजी जानकारी नहीं मांगी गई तब जाकर यक़ीन हुआ.

केबीसी के सेट से बाहर निकलने के बाद भी मुझे ऐसा लग रहा था कि क्या यह सच था कि मैं अमिताभ सर के साथ बैठी थी. उन्होंने मुझे अपने हाथों से पानी दिया. मुझे यह सब एक सपने की तरह लग रहा था. मुझे लग रहा था कि मेरी लाइफ़ में मुझे सब कुछ मिल गया और यह समय अब यहीं पर थम जाए.

हिमानी बुंदेला

इमेज स्रोत,BUNDELA FAMILY

न देख पाने के चलते घबराहट थी

हालांकि फ़ास्टेस्ट फ़िंगर फ़र्स्ट होने से पहले मेरे दिमाग़ में रात भर यही चल रहा था कि यह सब कैसे होगा क्योंकि मेरा कॉम्पिटीशन ऐसे लोगों के साथ था जो देख सकते थे, सुन सकते थे और सभी चीज़ों में नॉर्मल थे. क्योंकि उन सब के पास लर्निंग सोर्सेज़ बहुत थे.

एक बार तो मुझे ऐसा लगा कि मेरी इस कमज़ोरी की वजह से कहीं मुझे हॉट सीट पर बैठने का मौका ही न मिले. लेकिन मुझे अपने आप पर भरोसा था और उससे भी कहीं ज़्यादा केबीसी की टीम ने मुझे सपोर्ट किया. इससे मेरे अंदर जो डर था वह ख़त्म हो गया क्योंकि घर से जब मैं गई थी तो मैंने यही सोचा था कि जीतूंगी या सीखूंगी.जब एक करोड़ का सवाल मेरे सामने आया तो मैं बहुत ही नर्वस थी क्योंकि नॉर्मल फ़ैमिली के लिए एक करोड़ बहुत बड़ी रक़म होती है. तब मुझे ऐसा लगा कि अगर मैंने ग़लत जवाब दिया तो मैं सीधे 3,20,000 पर आ जाऊंगी और सारी मेहनत बेकार हो जाएगी, ये सोचते हुए सबसे ज़्यादा नर्वस हुई. लेकिन मेरा जवाब सही रहा.

मेरी ज़िंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव आए. बचपन से मेरी आंखों में थोड़ी प्रॉब्लम थी जिसकी वजह से मुझे कम दिखता था, लेकिन 2006 में एम्स में ऑपरेशन होने के बाद मेरा विज़न काफ़ी बेहतर हो गया था और मुझे साफ़-साफ़ दिखने लगा था. मैं आम लड़कियों की तरह सभी काम कर सकती थी, अपनी बहन को बैठाकर मैं स्कूटी भी चला सकती थी. इस आंख की कम रोशनी के चलते ही मैंने डॉक्टर बनने को अपना लक्ष्य बनाया था.

लेकिन एक दुर्घटना से सबकुछ बदल गया. जुलाई, 2011 में एक दिन मैं कोचिंग जा रही थी, उस समय मेरी साइकिल काफ़ी स्पीड में थी और साइड से एक बाइक वाला भी बहुत स्पीड में निकला और अचानक उसने आगे से टर्न ले लिया. मेरी साइकिल स्पीड में होने के कारण मैं टकरा गई और उसकी बाइक के साथ फिसलती हुई काफ़ी दूर तक चली गई. शारीरिक चोट लगी थी, लेकिन हादसे का असली असर एक सप्ताह बाद दिखा.

एक हफ्ते बाद मेरी आंखों की रोशनी कम होने लगी तो मैंने सोचा कि पापा के साथ जाकर चश्मे का नंबर टेस्ट करा लेती हूं. मुझे नहीं लगा कि मेरी आंखों पर भी कुछ असर हुआ होगा. लेकिन डॉक्टर ने बताया कि एक्सीडेंट की वजह से रेटिना अपनी जगह से हट गया है.

चौथा ऑपरेशन फ़ेल हो गया

मेरी आंखों के तीन ऑपरेशन हुए और धीरे-धीरे मैंने चीज़ों को देखना शुरू किया, लेकिन विज़न साफ़ हो, इसके लिए डॉक्टरों ने चौथे ऑपरेशन की सलाह दी. चौथी बार मेरा ऑपरेशन हुआ और ये ऑपरेशन भी फ़ेल हो गया.

मैं बारहवीं कर रही थी. मेरे सामने मेरा पूरा करियर, फ़्यूचर था. डॉक्टर बनने का सपना था.

ऑपरेशन के बाद जब आंखें खुलीं तो अंधेरा था. मुझे कुछ भी समझ में नहीं आया. मेरे माइंड में सिर्फ़ एक ही बात आई कि यह क्या हुआ? अब क्या होगा यह सब मेरे साथ ही क्यों हुआ? ऐसा लगा रहा था मानो लाइफ़ ख़त्म हो गयी हो.

डॉक्टरों से बात हुई तो उन्होंने बताया कि अभी वीकनेस है हो सकता है कुछ समय बाद आपकी आंखों की रोशनी वापस आ जाए. लेकिन 2012 से आज 2021 हो गया है. मेरी आंखों की रोशनी अब तक वापस नहीं आई है.

परिवार ने काफ़ी सहारा दिया

आप ये सोचिए कि हमलोग नॉर्मल परिवार से थे, पिता की प्राइवेट नौकरी थी और हम पांच भाई बहन थे. सबने अभाव में रहकर मेरे ऑपरेशन के लिए पैसे जुटाए थे. एक ऑपरेशन का ख़र्चा चालीस-पचास हज़ार रुपये था और वो बहुत मुश्किल से पिताजी जुटा पाते थे.

मेरी आंखों की रोशनी जाने के छह महीने तक मेरे चेहरे पर कोई स्माइल नहीं थी. मैं भगवान से हमेशा पूछती थी कि यह सब मेरे साथ ही क्यों हुआ. लेकिन मेरी फ़ैमिली और मेरे दोस्तों से मुझे ऐसा पॉज़िटिव सपोर्ट मिला कि मैं यह सब भूलने में कामयाब रही और उस हादसे से बाहर निकल पाई.

एक बात ज़रूर कहना चाहूंगी कि मम्मी-पापा ने हम सब भाई बहनों को अच्छे से पढ़ाया. लोग कहते थे कि लड़कियों को कहां अंग्रेज़ी मीडियम में पढ़ा रहे हैं, लेकिन पिताजी ने कोई भेदभाव नहीं किया. मुझे लगता है कि पढ़ाई की वजह से ही मैं यहां तक पहुंच सकी हूं.

मैंने आगरा सदर स्थित बीडी जैन कॉलेज से बीए किया. उसके बाद लखनऊ में दिव्यांगों के लिए बनी एशिया की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी डॉक्टर शकुंतला मिश्रा रीहैबिलिटेशन यूनिवर्सिटी से डिप्लोमा इन एजुकेशन किया जिसके बाद 2017 में केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक के रूप में नियुक्ति मिली.

शिक्षक बनकर बहुत खुश हूं

अब मुझे बिल्कुल भी फ़ील नहीं होता कि मैं डॉक्टर क्यों नहीं बनी. टीचर बनने के बाद आज मुझे लगता है कि मैंने सबसे बेस्ट प्रोफ़ेशन सेलेक्ट किया है. मैं ज़्यादा से ज़्यादा स्टूडेंट से कनेक्ट होकर उनको फ़्यूचर के लिए तैयार कर सकती हूं.

यह भी सही है कि ऐक्सीडेंट के बाद मेरी ज़िंदगी बिल्कुल बदल चुकी थी, लेकिन अगर मैं ऐक्सीडेंट से पहले और ऐक्सीडेंट के बाद की ज़िंदगी की बात करूं तो ऐक्सीडेंट के बाद मैंने ज़्यादा एंजॉय किया. म्यूज़िक और सिंगिंग भी सीखा और पढ़ाई भी जारी रखी और 21 साल की उम्र में मैं अपने परिवार में सरकारी नौकरी हासिल करने वाली पहली शख़्स बनी.

टीचर के तौर पर लोग मुझसे पूछते रहते हैं कि बच्चे आपके लिए मुश्किल तो पैदा नहीं करते, मुझे यह बिल्कुल नहीं पता था कि बच्चे भी इतने समझदार होते हैं. हम हमेशा यह सोचते हैं कि बच्चे शरारती होते हैं, लेकिन इतने साल पढ़ाने के दौरान कभी भी मेरी क्लास में इस बात का फ़ायदा उठाने की कोशिश किसी बच्चे ने नहीं की कि मुझे दिखता नहीं है. बल्कि स्कूल के गेट से क्लास रूम तक ले जाने के लिए बच्चे मेरे पास दौड़े हुए आते हैं और आपस में लड़ते हैं कि हिमानी मैडम को क्लास तक हम लेकर जाएंगे.

दिव्यांगों के लिए संस्थान खोलने का इरादा

मैंने 13-14 साल की उम्र से ही अपनी दोनों बड़ी बहनों के साथ बच्चों को ट्यूशन देना शुरू कर दिया था इसलिए बच्चों के साथ कैसा व्यवहार रखना है और वह किस प्रकार पढ़ना चाहते हैं यह सब मैंने सीखा है. बच्चों को पढ़ाने के दौरान मैं उनसे कभी यह नहीं कहती कि आपको मैथ पढ़ाया जाएगा. मैं हमेशा मैज़िक मैथ के नाम से उनको पढ़ाती हूं और उनसे कहती हूं कि आज आपको हम जादू करना सिखाएंगे.

मेरे इस सफ़र में मेरी बड़ी दीदी चेतना और भावना, छोटी बहन पूजा के साथ सबसे छोटे भाई रोहित का बड़ा योगदान है. इन लोगों ने क़दम क़दम पर मेरा साथ दिया. कह सकती हूं कि आंखों में रोशनी नहीं होने का मुझे कोई अफ़सोस नहीं है बल्कि खुशी है कि आज मेरी वजह से मेरे मम्मी-पापा की आंखों में चमक है और यह मेरे लिए ज़्यादा इंपॉर्टेंट है.

हां, एक और बात जो पैसा मैंने जीता है उसका एक हिस्सा मैं दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई के लिए ख़र्च करूंगी. आगरा में एक ऐसा इंस्टीट्यूट बनाने का इरादा है जहां सभी तरह के दिव्यांग बच्चों को अपने दम पर, अपनी शिक्षा के दम पर आगे बढ़ने का मौका मिल सके.

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