May 13, 2024 : 6:21 AM
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यूपी का गांव, जहां हर घर में फौजी:बुलंदशहर का सैदपुर…जहां के युवाओं ने प्रथम विश्व युद्ध से लेकर करगिल तक में कुर्बानी दी; 1965 में इंदिरा गांधी खुद शहीद की अस्थियां लेकर आईं थीं

बुलन्दशहर/मेरठ15 मिनट पहले

सैदपुर गांव जिला मुख्यालय से 30 KM और देश की राजधानी दिल्ली से 90 KM की दूरी पर है।

आज पूरा देश कारगिल विजय दिवस मना रहा है। कारगिल दिवस पर हम आपको यूपी के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां हर घर से कोई न कोई व्यक्ति सेना में है। हम बात कर रहे हैं बुलंदशहर के सैदपुर गांव की। इसे फौजियों के गांव के नाम से भी जाना जाता है। इस गांव ने अभी तक आर्मी को 9600 जवान दिए हैं। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर कारगिल युद्ध तक यहां के जवानों ने शहादत देकर अपने गांव की माटी का नाम रोशन किया है।

आर्मी में गांव के 1100 जवान
सैदपुर गांव जिला मुख्यालय से 30 KM दूर है। जबकि देश की राजधानी दिल्ली से 90 KM है। 5 वर्ग किमी में बसे सैदपुर की जनसंख्या 21 हजार है। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक, गांव में आर्मी से सेवानिवृत्त 2450 जवानों की पेंशन आ रहीं हैं। गांव में 380 विधवा पेंशन हैं। इस गांव के 1100 जवान मौजूदा समय में आर्मी में हैं। आर्मी के अलावा 550 लोग यूपी पुलिस, पैरामिलिट्री फोर्स व दूसरी सरकारी सेवाओं में हैं। गांव की 82 प्रतिशत आबादी जाट है, जबकि 18 प्रतिशत में दलित, मुस्लिम व अन्य बिरादरी हैं।

5 वर्ग किमी में बसे सैदपुर गांव की जनसंख्या 21000 है।

5 वर्ग किमी में बसे सैदपुर गांव की जनसंख्या 21000 है।

अस्थि कलश लेकर खुद गांव आईं थीं इंदिरा गांधी
जाट बिरादरी के गांव सैदपुर में 80 प्रतिशत जाटों का गौत्र सिरोही है। ऐसे में यहां सिरोही एसोसिएशन रही है। इसके महासचिव रहे धर्मपाल सिंह सिरोही बताते हैं कि सैदपुर गांव में पूर्व PM पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह के अलावा मुलायम सिंह यादव भी आ चुके हैं। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने उत्तरप्रदेश, पंजाब व राजस्थान से सैनिकों को विदेश भेजा, लेकिन अनेक सैनिकों ने युद्ध मे जाने से मना कर दिया था।

सैदपुर अकेला ऐसा गांव था जिसके 155 सैनिकों ने युद्ध की चुनौती को स्वीकार किया। 1914 में यहां के 155 सैनिक जर्मनी भेजे गए। इनमें 29 सैनिक मारे गए, 60 सैनिक वहीं बस गए। 66 सैनिक लौटे। तब अंग्रेजों ने सैदपुर गांव को विशेष गांव का दर्जा दिया था। 1962 में भारत- चीन युद्ध, 1965 व 1971 भारत- पाकिस्तान युद्ध हो, यहां के जवानों ने देश का मान बढ़ाया है।

1965 के युद्ध में सैदपुर के कैप्टन सुखवीर सिंह दुश्मनों से लोहा लेते हुए शहीद हुए। जिसके बाद इंदिरा गांधी खुद शहीद की अस्थि कलश लेकर सैदपुर गांव में आईं। 1971 के युद्ध मे एक ही दिन गांव के मोहन सिरोही व विजय सिरोही शहीद हुए थे। तब इंदिरा गांधी PM रहते हुए भी गांव में आईं थीं।

गांव में लगी कारगिल युद्ध के शहीद सुरेंद्र सिंह की प्रतिमा

गांव में लगी कारगिल युद्ध के शहीद सुरेंद्र सिंह की प्रतिमा

सैदपुर गांव के कई घर ऐसे, जहां पांच- पांच फौजी
सैदपुर गांव में एक एक घर मे पांच- पांच फौजी हैं। हर घर में फौजी मिलेंगे। कोई भी ऐसा घर नहीं है जहां घर का एक व्यक्ति आर्मी में न हो। सिपाही से लेकर मेजर जनरल तक पहुंचे। गांव के DS सिरोही मेजर जनरल बने। त्रिलोक सिंह सिरोही व नरेंद्र सिंह कमिश्नर रह चुके हैं। मेरठ में रह रहे गांव निवासी वीरेंद्र सिरोही आर्मी में सूबेदार रहे हैं। वह बताते हैं कि मेरा बेटा भी आर्मी में है, 17 साल का पोता भी आर्मी की तैयारी कर रहा है। 1973 में सेना के अधिकारी गांव में भर्ती करने पहुंचे थे। उसके बाद सेना गांव में स्पेशल भर्ती का कैंप लगा चुकी है।

गांव में शहीद स्मारक में लगा शिलापट, जहां अंकित हैं शहीदों के नाम

गांव में शहीद स्मारक में लगा शिलापट, जहां अंकित हैं शहीदों के नाम

बीच गांव में बना है शहीद स्मारक
सैदपुर गांव के बीच मे शहीद स्मारक बना हुआ है। इस शहीद स्मारक पर उन शहीदों के नाम अंकित हैं, जिन्होंने देश के लिए प्राणों की आहुति दी। कारगिल युद्ध मे गांव निवासी सुरेंद्र सिंह शहीद हुए थे। उनकी प्रतिमा सैदपुर गांव में लगी है। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर 1999 के कारगिल युद्ध में यहां की माटी के वीरों ने अपने प्राण न्योछावर किए हैं।

गांव में मिलिट्री हीरोज के नाम पर बना इंटर कॉलेज, जो देता है देशसेवा की प्रेरणा

गांव में मिलिट्री हीरोज के नाम पर बना इंटर कॉलेज, जो देता है देशसेवा की प्रेरणा

मिलिट्री हीरोज मेमोरियल इंटर कॉलेज

शायद ही यह एक मात्र कॉलेज हो, जिसका नाम ही मिलेट्री हीरोज मेमोरियल इंटर कॉलेज है। शाम के समय गांव के युवा सड़कों पर दौड़ते मिलेंगे। बस एक ही लक्ष्य है कि सेना में भर्ती होना। सैदपुर गांव से अधिकांश युवा NCC में भी कैम्प करते हैं।

गांव का ये दादीधाम मंदिर यहां पूजा करना अहम माना जाता है, यहीं से मिलता है जोश

गांव का ये दादीधाम मंदिर यहां पूजा करना अहम माना जाता है, यहीं से मिलता है जोश

गांव में दादी धाम की पूजा है मुख्य
पूर्व प्रधान धीरज सिरोही बताते हैं कि गांव के बाहर दादी धाम मंदिर है। गांव का हर परिवार साल में एक बार इस मंदिर पर जरूर आता है। परिवार विदेश में या दूसरे राज्यों में है तो परिवार का एक सदस्य जरूर यहां पहुंचकर दर्शन करता है। 500 साल पहले राजस्थान से आकर सिरोही सैदपुर में बसे थे। बताते हैं कि उस समय वृद्ध महिला यहां पूजा करतीं थीं। जिन्हें पूरा गांव दादी के नाम से पुकारता था। भगवान का भजन करते हुए दादी जिस स्थान पर समाई वहां उनकी समाधी बनाई। आज वही जगह दादी धाम से जाना जाता है।

दूसरे विश्व युद्ध में यहां के मेजर दिलीप सिंह सिरोही ने शौर्य का परिचय दिया
सैदपुर गांव में जन्मे रिसलदार मेजर दिलीप सिंह सिरोही ने दूसरे विश्व युद्ध में मेजर रहते हुए अपने शौर्य का परिचय दिया था। अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें बहादुर की उपाधि दी थी। दिलीप सिंह की पांचवीं पीढ़ी से आने वाले नकुल सिरोही कहते हैं कि मुझे गर्व है की मैं मेजर दिलीप सिंह सिरोही के परिवार में पैदा हुआ हूं। जब छोटा था तो मेरे दादा नरेंद्र सिरोही अपने दादा ( मेजर साहब) के किस्से सुनाया करते थे।

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