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Hindi NewsHappylifeScientists Create 3D printed Ears And Noses From Human Cells For People Born Without Body Parts Or Who Have Facial Scarring As A Result Of Burns, Trauma Or Cancer
35 मिनट पहले
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इंग्लैंड के वैज्ञानिकों ने 3डी प्रिंटिंग के जरिए कृत्रिम कान-नाक तैयार किए हैं। इन अंगों को ऐसे बच्चों और वयस्कों में लगाया जा सकेगा जिनके चेहरे पर जन्म से कान या नाक नहीं हैं। इन कृत्रिम अंगों को मरीज की कोशिकाओं से ही तैयार करके लगाया जाएगा।
इसे वेल्स की स्वानसी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने तैयार किया है। वैज्ञानिकों का कहना है, 3डी प्रिंटिंग के जरिए कान और नाक के अलावा चेहरे के दूसरे अंग भी तैयार किए जा सकते हैं। इस तकनीक की मदद से चेहरे पर जलने, कैंसर और दूसरे ट्रॉमा के कारण हुए नुकसान की भरपाई की जा सकती है।
मरीज की स्टेम कोशिकाओं से बनाते हैं अंगस्वानसी यूनिवर्सिटी ने ऐसे लोगों की मदद के लिए स्कार-फ्री फाउंडेशन की शुरुआत की है। क्लीनिकल ट्रायल में ऐसे लोगों को शामिल किया गया है जो चेहरे का कोई न कोई अंग खो चुके हैं। ऐसे मरीजों का कहना है, वर्तमान में प्लास्टिक प्रोस्टेथेटिक का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन इसे शरीर का अंग महसूस नहीं कर पाते हैं। इसे ध्यान में रखते हुए स्कार फाउंडेशन उन्हीं मरीजों की स्टेम कोशिकाओं की मदद से कृत्रिम नाक और कान तैयार कर रहा है, ताकि इसे उन्हीं मरीजों में लगाया जा सके।
3डी-प्रिंटेड कान को खास तरह की बायोइंक से तैयार किया गया है।
दर्द सहकर कार्टिलेज देने की जरूरत नहींवैज्ञानिकों का कहना है, कृत्रिम अंग तैयार करने के लिए मरीज के शरीर से कार्टिलेज नहीं लिया जाता है, क्योंकि ऐसा करने पर उन्हें दर्द देने वाली सर्जरी से गुजरना पड़ेगा। सर्जरी पूरी होने के बाद शरीर पर इसका निशान आ जाएगा। इसलिए मरीजों की स्टेम कोशिकाओं को लिया जाता है।
इन स्टेम कोशिकाओं और पौधे से मिलने वाले नैनोसेल्युलोज से बायोइंक तैयार की जाती है। इस बायोइंक, 3डी प्रिंटर और एक सॉफ्टवेयर की मदद से कृत्रिम अंग बनाया जाता है।
पहला 3डी-प्रिंटेड कान 10 साल की रादिया मियाह को लगाया जाएगा।
कितनी सुरक्षित है बायोइंकवैज्ञानिकों का दावा है कि कृत्रिम अंगों को तैयार करने वाली बायोइंक सुरक्षित है। यह नॉन-टॉक्सिक है और रोगों से लड़ने वाले इम्यून सिस्टम पर इसका बुरा असर नहीं पड़ता।
एक दुर्घटना में बुरी तरह जलने वाले ब्रिटिश आर्मी से रिटायर्ड ऑफिसर और फाउंडेशन के ब्रांड एंबेसडर सिमोन वेस्टन कहते हैं, नए तरीके से कृत्रिम अंगों को लगाना काफी अलग है। इस तकनीक में शरीर के किसी हिस्से से स्किन लेकर उसका इस्तेमाल नहीं किया जाता। मरीज को इस दर्द देने वाली प्रक्रिया से नहीं जूझना पड़ता।
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