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गाजीपुर बॉर्डर…किसान आंदोलन को 8 माह पूरे: चंद किसान आए थे, अब एक्सप्रेस-वे पर बसी तंबुओं की बस्ती; टिकैत बोले- सरकार बताएगी कब तक चलेगा आंदोलन

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गाजियाबाद5 मिनट पहले

कॉपी लिंकगाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का धरना आठ महीने से जारी है। - Dainik Bhaskar

गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों का धरना आठ महीने से जारी है।

केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बॉर्डर पर चल रहे किसानों के धरने को कल यानी 25 जुलाई को 8 माह पूरे हो रहे हैं। इन 8 माह में धरना अब किसानों की संसद तक का सफर तय चुका है। 26 नवंबर 2020 को चंद किसान यूपी-दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में भरकर आए थे। अब दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे पर गाजीपुर टोल के पास करीब एक किलोमीटर में तंबुओं की बस्ती बस चुकी है। अब तक किसानों और केंद्र सरकार के बीच 11 बार बातचीत हुई, लेकिन ठोस नतीजा एक भी बार नहीं निकला। गाजीपुर के साथ दिल्ली के सिंघु और टीकरी बॉर्डर पर भी आठ महीने से धरना जारी है।

भारतीय किसान यूनियन (BKU) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा, किसान आंदोलन कब तक चलेगा, यह सरकार बताएगी। हम चाहते हैं कि तत्काल कृषि कानून रद हों और हम घर वापस जाएं। हमने पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में बड़ी पंचायत बुलाई है। उसमें महत्वपूर्ण निर्णय लेंगे। तब तक कृषि कानूनों पर सोचने के लिए सरकार के पास वक्त है।

गाजियाबाद से दिल्ली जाने वाली लेन है बंद

गाजीपुर बॉर्डर पर धरने की वजह से गाजियाबाद से दिल्ली की तरफ जाने वाली एक्सप्रेस-वे की लेन पिछले आठ महीने से बंद पड़ी है। इस वजह से दिल्ली जाने वाले लाखों वाहनों को कई किलोमीटर अतिरिक्त सफर तय करके जाना पड़ता है। शुरुआत में कुछ महीनों तक दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे की सभी लेन बंद रहीं, लेकिन 18 अप्रैल को दिल्ली से गाजियाबाद आने वाली सभी लेन खोल दी गई थीं।

धरनास्थल पर गर्मी से बचाव के लिए खास तरह के तंबू बनाए जा रहे हैं।

धरनास्थल पर गर्मी से बचाव के लिए खास तरह के तंबू बनाए जा रहे हैं।

आलीशान तंबू, सारी सुख-सुविधाएं

गाजीपुर बॉर्डर स्थित धरनास्थल पर कुछ जगह किसानों ने पक्के निर्माण कर लिए हैं। उन्होंने आलीशान तंबू बनाए हैं। इन तंबुओं के अंदर सारी सुख-सुविधाएं मौजूद हैं। अभी हाल ही में एक तंबू में एयर कंडीशन लगी थी, यह फोटो खूब वायरल हुआ था। कई राज्यों से किसानों के लिए खाद्यान्न पहुंच रहा है। धरनास्थल पर बड़ी संख्या में किसान परिवारों की महिलाएं भी मौजूद हैं। वह दिन में धरना देती हैं और शाम को किसानों के लिए खाना बनाती हैं।

11 दौर की वार्ता ऐसे रही बेनतीजा

14 अक्तूबर 2020 : किसानों की बैठक लेने आए केंद्रीय कृषि सचिव संजय अग्रवाल का बहिष्कार। किसान बोले- हम कृषि मंत्री से बात करने आए थे।

13 नवंबर : कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर व रेलमंत्री पीयूष गोयल ने किसानों संग बैठक की। बैठक बेनतीजा रही।

01 दिसंबर : सरकार ने विशेषज्ञों की कमेटी बनाकर बिल परखने का सुझाव दिया। किसानों ने इसे अस्वीकारा।

03 दिसंबर : सरकार ने भरोसा दिया कि एमएसपी जारी रहेगा, लेकिन किसान तीनों कानूनों को रद करने पर अड़े रहे।

05 दिसंबर : किसानों ने सरकार से कहा कि वह कृषि बिल रद करने पर अपना जवाब हां या ना में दे।

08 दिसंबर : गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों संग बैठक की। सरकार द्वारा भेजे गए 22 पेज के प्रस्ताव को किसानों ने खारिज किया।

30 दिसंबर : बिजली संशोधन अधिनियम-2020 को निरस्त करने और पराली के नाम पर एक करोड़ का जुर्माने का नियम निरस्त करने पर सरकार ने सहमति जताई।

04 जनवरी 2021 : ‘ताली दोनों हाथ से बजती है’…कृषि मंत्री के इस बयान के साथ बैठक समाप्त हुई और 8 जनवरी को पुन: चर्चा करने का फैसला हुआ।

08 जनवरी : किसान बिल रद करने पर अड़े रहे। कृषि मंत्री ने बिल रद करने के अलावा कोई अन्य सुझाव मांगा।

15 जनवरी : कई घंटे तक सरकार और किसानों की बैठक चली, बेनतीजा रही।

20 जनवरी : सरकार ने दो साल तक बिल निलंबित रखने और कानूनों पर विचार करने को संयुक्त समिति बनाने का प्रस्ताव रखा।

22 जनवरी : किसानों ने सरकार के संयुक्त समिति बनाने के प्रस्ताव को खारिज किया।

ट्रैक्टर रैली हिंसा से आंदोलन टूटा

11वें दौर की वार्ता असफल रहने पर किसानों ने 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकाली। इस दौरान कई जगह पर हिंसा हुई। लालकिले पर धार्मिक झंडा फहराया गया। हिंसा में दिल्ली में 59 मुकदमे दर्ज किए गए। 158 किसान गिरफ्तार हुए। इस हिंसा के बाद कई किसान संगठन आंदोलन से अलग हो गए। तब एक बार ऐसा लगा कि अब किसान आंदोलन समाप्त होने की तरफ है।

टिकैत के आंसुओं से मिली संजीवनी

28 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर पर धरनारत भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत के आंसू निकले तो माहौल बदलता चला गया। आंदोलन का केंद्र बिंदु गाजीपुर बॉर्डर हो गया। तमाम राज्यों से किसान उन्हें समर्थन देने पहुंचने लगे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिलों में राकेश टिकैत, चौधरी अजीत सिंह, जयंत चौधरी ने तमाम किसान पंचायतें की। कुल मिलाकर एक बार फिर यह आंदोलन उठ खड़ा हुआ था।

कोई संशोधन नहीं, कानून रद चाहते हैं किसान

किसान केंद्र सरकार से तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। वह कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को किसान विरोधी बता रहे हैं। MSP और APMC पर लिखित आश्वासन मांग रहे हैं। इस मसले पर केंद्र सरकार और किसान नेताओं में अब तक 11 दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है। हालांकि पीएम नरेंद्र मोदी खुद सदन से इस बात का आश्वासन दे चुके हैं कि MSP था, MSP है और MSP रहेगा लेकिन किसान कानूनों को रद करने की मांग पर अड़े हुए हैं।

‘किसान संसद’ से हैं कुछ उम्मीदें

कृषि कानूनों को रद कराने के लिए 22 जुलाई से दिल्ली के जंतर-मंतर पर ‘किसान संसद’ जारी है जो 9 अगस्त तक चलेगी। इसमें प्रत्येक दिन 40 संगठनों से पांच-पांच यानी कुल 200 किसान जाएंगे। दिनभर बैठेंगे और शाम को अपने-अपने धरनास्थलों पर लौट आएंगे। किसानों का कहना है कि मानसून सत्र चल रहा है। सांसद हमारी बातों को सदन में उठाएं।

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