2 घंटे पहलेलेखक: पं. विजयशंकर मेहता
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कहानी – चीन के मशहूर दार्शनिक कन्फ्यूशियस के पास एक बहुत समझदार व्यक्ति पहुंचा। उसने कहा, ‘मैं हर काम बहुत सावधानी से करता हूं। मेरा स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। मुझे सफलता भी मिल जाती है, लेकिन अशांत बहुत रहता हूं। आपके पास शांति की तलाश में आया हूं।’
उस समय चीन में अलग-अलग राज्य बन चुके थे। एक-दूसरे पर लोग आक्रमण करते थे। कन्फ्यूशियस बहुत समझदार व्यक्ति थे तो लोग उनके पास अपनी समस्याएं लेकर आते थे।
कन्फ्यूशियस ने उस व्यक्ति से कहा, ‘एक बात बताओ, तुम देखते, सुनते कैसे हो, स्वाद कैसे लेते हो?’
व्यक्ति ने कहा, ‘मैं आंखों से देखता हूं, कानों से सुनता हूं और जीभ से स्वाद लेता हूं।’
कन्फ्यूशियस ने कहा, ‘तुम जितना आंखों से देखते हो, उससे कहीं ज्यादा मन से देखते हो, तुम्हारा मन कानों से ज्यादा सुनता है, तुम्हें लगता है कि जीभ स्वाद ले रही है, लेकिन असली स्वाद तो मन ले रहा होता है। जब तक ये तीनों काम मन कर रहा हो, दुनिया में कोई शांत नहीं हो सकता है। सबसे पहले मन को नियंत्रित करना चाहिए। केवल आंखों से देखें, जीभ को ही स्वाद लेने दो, कानों को ही सुनने दो, मन को इन कामों से अलग रखो।’
सीख – हमें लगता है कि हमारे शरीर के बाहरी अंग काम कर रहे हैं, लेकिन इन अंगों से ज्यादा हमारा मन काम करता है, जिसका मन व्यर्थ कामों में भटकता है, उन्हें शांति नहीं मिलती है। मन बहुत ज्यादा सक्रिय होगा तो हम अशांत ही रहेंगे। मन को काबू करें और व्यर्थ कामों से अलग रखेंगे तो शांति जरूर मिलेगी।