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आनंद बख्शी बर्थडे स्पेशल:17 साल की उम्र में जबलपुर में सेना जॉइन की, दो बार नौकरी छोड़ी; रंगमंच के साथ शुरू हुआ नज्म लिखने और गीतकार बनने का सफर

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जबलपुर4 घंटे पहलेलेखक: संतोष सिंह

फौजी से गीतकार आनंद बख्शी बनने का रोचक है सफर।

मशहूर गीतकार और सबसे अधिक गाने रिकॉर्ड करने वाले आनंद बख्शी का 21 जुलाई को जन्मदिन है। बहुत कम लोग जानते होंगे कि आनंद बख्शी का जबलपुर की माटी से गहरा नाता है। दरअसल, उनका एक फौजी से गीतकार बनने का सफर जबलपुर में ही शुरू हुआ। नाटकों में अभिनय करने वाले बख्शी देखते ही देखते नज्म लिखने लगे और गाने लगे। पहले फौज के इवेंट में, फिर थिएटर में।

15 नवंबर 1947 में आनंद बख्शी जब जबलपुर में फौज के सिग्नल कोर में भर्ती हुए, तब उनकी उम्र महज 17 वर्ष थी। उन्हें सिग्नल मेन का रैंक मिला था। जबलपुर में उन्होंने कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। वे अपनी कविताओं को बैरक में फौजी साथियों और अफसरों के सामने गाते थे। उन्हें जब अफसर शाबासी देते तो ये अहसास बड़ा गहरा होता कि उनके भीतर एक हुनर है। धीरे-धीरे वे वार्ष‍िक थिएटर के आयोजनों और बड़ा खाना (एक साथ सैनिक से लेकर अधिकारी भोजन करते हैं) में भी अपनी पेशकश देने लगे।

आनंद बख्शी ने नाटकों में अभिनय भी किया।

आनंद बख्शी ने नाटकों में अभिनय भी किया।

ये वो फौजी है जो नज्म ल‍िखता है, गाता है और नाटकों में अभ‍िनय भी करता है
फौज में रहने के दौरान आनंद बख्शी ने सभी नाटकों में हिस्सा लिया। इससे उनकी पहचान बनी। उनका परिचय कुछ इस तरह करवाया जाता- ‘ये है वो फौजी जो नज्म ल‍िखता है, गाता भी है और नाटकों में अभ‍िनय भी करता है।’ 18 जून 1949 को आनंद बख्शी सिग्नल ट्रेनिंग सेंटर जबलपुर में स्व‍िच बोर्ड ऑपरेटर क्लास थ्री बने। जबलपुर में जनरल दुबे ने आनंद बख्शी का हौसला बढ़ाया कि वे फौज छोड़ें और मुंबई (तब बॉम्बे) जा कर फिल्मों में भाग्य अजमाएं। 25 मार्च 1950 को उनकी पहली कविता सैनिक समाचार में छपी।

सेना के साथियों के साथ ग्रुप फोटो। लाल गोल घेरे में गीतकार आनंद बख्शी।

सेना के साथियों के साथ ग्रुप फोटो। लाल गोल घेरे में गीतकार आनंद बख्शी।

‘बरसात फिल्म बनी गीतकार आनंद बख्शी की जिंदगी का यू-टर्न
नगमें, किस्‍से, बातें, यादें- हिंदी फिल्‍मी दुनिया के प्रसिद्ध गीतकार आनंद बख्शी की आत्‍मकथा है। इसमें उन्होंने जबलपुर और भारतीय फौज के सिग्‍नल कोर में नौकरी को लेकर कई जानकारी साझा की है। 1949 में आनंद बख्शी ने जबलपुर में ही राज कपूर और नरगिस के अभिनय वाली ‘बरसात’ फिल्म देखी थी। इस फिल्‍म को उन्‍ह‍ोंने 20 बार देखा था। इसी फिल्म को देख कर आनंद बख्शी ने अपनी शैली में गीत लिखने शुरू कर दिए थे।

जिंदगी का मकसद’ नाम से घोषणा पत्र तैयार किया
24 जनवरी 1950 में उन्‍होंने अपना एक घोषणा पत्र तैयार किया। जिसे उन्‍होंने नाम दिया- ‘जिंदगी का मकसद’। जबलपुर में लिखे इस घोषणा पत्र में लिखा था- ‘मैं आनंद बख्शी ये ऐलान करता हूं कि मैं संगीत सीखने की तमन्‍ना रखता हूं। मेरी जिंदगी का मकसद है कलाकार बनना। इसे पूरा करने के लिए मैं फिल्‍म, रेडियो या थिएटर में जाऊंगा। मैं गायक, संगीतकार, निर्देशक जो मुमकिन होगा, बनूंगा’। आनंद बख्शी ने फौज की नौकरी में बहुत सारा वक्‍त जबलपुर डिवीजन में सिग्‍नल कोर में बिताया। वे 1947 से 1950 तक जबलपुर में रहे। इसके बाद आनंद बख्शी बेंगलुरु (बैंगलोर) में जलहल्‍ली चले गए। वहां से वे 16 फरवरी 1951 को वापस जबलपुर आ गए।

आनंद बख्शी ने ‘जिंदगी का मकसद’ नाम से घोषणा पत्र तैयार किया था।

आनंद बख्शी ने ‘जिंदगी का मकसद’ नाम से घोषणा पत्र तैयार किया था।

वर्ष 1950 में पहली बार मिला गाने का मौका
आनंद बख्शी 1950 में पहली बार नौकरी छोड़ कर मुंबई पहुंचे, हालांकि परिवार के लोग इसके लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने किसी की एक न सुनी। दादर स्टेशन पर उतरे तो उनके पास दो गाने थे। तीन महीने वह दादर स्टेशन पर टीटी की नजर बचाकर रात में रुकते थे। दिन में प्रोडक्शन हाउस के चक्कर काटते। कहीं भी काम नहीं मिला। पास में जो पैसे थे, वो भी समाप्त हो गए। फिर वहां से दिल्ली की ट्रेन पकड़ ली। घरवालों से झूठ बोल दिया कि मैंने फिर से नौकरी जॉइन कर ली है।

आकाशवाणी के ऑडिशन में हो गए फेल
इसके बाद वे दिल्ली आकाशवाणी में ऑडिशन देने पहुंचे। 22 दिसंबर 1950 को ऑडिशन में फेल हो गए। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि वह फेल कैसे हो सकते हैं। इसके बाद उन्हें लगा कि फौज की नौकरी में वापस लौट जाना चाहिए। पहले फौज में रि-जॉइनिंग का विकल्प था। वे जबलपुर वापस आ गए और 16 फरवरी 1951 को फिर से फौज जॉइन कर ली। दो साल तक वे जबलपुर में ही पदस्थ रहे। सितंबर 1953 में प्रमोशन के बाद ट्रांसफर हो गया। दो अक्टूबर1954 में लखनऊ में उनकी कमला मोहन से शादी हो गई।

1956 में दूसरी बार मुंबई गए
1956 सितंबर में दूसरी बार वह मुंबई पहुंचे। इस बार तय कर लिया था कि कलाकार बनूंगा या टैक्सी चलाउंगा। इस बार भी वे कई दिनों तक स्टेशन के वेटिंग रूम में रहे। मोटर मैकेनिक का काम भी किया, हालांकि बाद में इस नौकरी से मालिक ने निकाल दिया। प्रोडक्शन हाउस का वे चक्कर लगाते रहे। पहली बार उन्हें कामयाबी मिली। मिस्टर भगवान ने उन्हें एक फिल्म की कहानी सुनाई और गाने लिखने के लिए बोला।

आनंद बख्शी ने 15 दिन में चार गाने लिखे। ये उन्हें पंसद आया और आनंद बख्शी से अनुबंध किया। इसके एवज में आनंद बख्शी को 150 रुपए मिले। 9 नवंबर 1956 को पहला गाना “धरती के लाल, न कर इतना मलाल, धरती तेरे लिए, तू धरती के लिए’ रिकॉर्ड हुआ था। उस गाने में संगीतकार निशार बज्मी थे, जो बाद में पाकिस्तान चले गए थे। 1958 में फिल्म भला आदमी रिलीज हुई थी।

पहले रेडियो फिर फिल्मों में करियर बनाया। साभार : फिल्मफेयर

पहले रेडियो फिर फिल्मों में करियर बनाया। साभार : फिल्मफेयर

रेडियो से फिर फिल्मों में बनाई जगह
आनंद बख्शी का संघर्ष यहीं समाप्त नहीं हुआ। इस फिल्म के बाद उन्हें कोई काम नहीं मिला। धैर्य जवाब देने लगा। फौज की नौकरी छोड़ने का पश्चाताप भी हुआ। लगा कि फिर से लौट जाना चाहिए। मुंबई उनके लिए नहीं है। यहां से वे फिर दिल्ली पहुंचे। इस बार रेडियो में काम मिल गया। 1959 में रेडियो पर उनका पहला गाना “जमीं के तारे’ प्रसारित हुआ। रेडियो से धीरे-धीरे पहचान बनी और फिर फिल्मों में भी काम मिला। आनंद बख्शी ने सबसे अधिक गाने लिखने का रिकॉर्ड बनाया है। 23 मार्च 2002 को उनकी जिंदगी का सफर समाप्त हुआ। आज भी उनके गीतों का जादू बरकरार है।

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