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रिसर्च में खुलासा:हफ्ते में सिर्फ तीन दिन 40-40 मिनट तेज चलने से 60 पार वालों की याददाश्त में भी सुधार, यह वर्कआउट और डांस से ज्यादा असरदार

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12 घंटे पहलेलेखक: ग्रेचेन रेनॉल्ड्स

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सक्रिय होने से दिमाग का व्हाइट मैटर बेहतर हुआ, सोचने-समझने की क्षमता सुधरी। - Dainik Bhaskar

सक्रिय होने से दिमाग का व्हाइट मैटर बेहतर हुआ, सोचने-समझने की क्षमता सुधरी।

बुजुर्गों को अक्सर ये शिकायत रहती है कि उन्हें कुछ याद नहीं रहता। उम्र बढ़ने के साथ तो समस्या और भी बढ़ जाती है। इस समस्या को ब्रिस्क वॉकिंग (तेज चलना) के जरिए बहुत हद तक कम किया जा सकता है। अगर हफ्ते में तीन दिन 40-40 मिनट तक ब्रिस्क वॉक करते हैं तो दिमाग में मौजूद व्हाइट मैटर (दिमागी सेल्स को जोड़ने वाला) तरोताजा होने के साथ बेहतर अवस्था में आने लगता है। इससे 60 की उम्र में भी याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता सुधरने लगती है। यह दावा कोलोराडो यूनिवर्सिटी के ताजा शोध में किया गया है।

स्टडी के मुताबिक डांस और एक्सरसाइज की तुलना में ब्रिस्क वॉक से ज्यादा फायदा मिलता है। न्यूरोइमेज में प्रकाशित इस स्टडी के लिए कोलोराडो स्टेट यूनिवर्सिटी में न्यूरोसाइंस एंड ह्यूमन डेवलपमेंट की प्रोफेसर एग्निज्का बर्जिंंस्का और उनकी टीम ने ऐसे 250 बुजुर्ग पुरुष-महिलाओं को चुना जो सक्रिय नहीं थे।

60 से 80 उम्र वाले इन सभी बुजुर्गों की हालिया एरोबिक फिटनेस और संज्ञानात्मक कौशल का परीक्षण लैब में किया गया। एमआरआई स्कैन के जरिए इनके दिमाग में व्हाइट मैटर की सेहत और कामकाज को भी मापा गया। इन्हें तीन समूह में बांटा गया। पहले समूह को स्ट्रेचिंग और बैलेंस ट्रेनिंग, दूसरे हफ्ते में तीन बार 40 मिनट ब्रिस्क वॉक और तीसरे को डांस और ग्रुप कोरियोग्राफी का टास्क दिया गया।

छह महीने तक इनकी यही दिनचर्या रखी गई। नतीजे चौंकाने वाले थे। तीनों ही समूहों के दिमागी और शारीरिक स्थिति में सुधार दिखा। वॉक और डांस करने वालों की एरोबिक फिटनेस भी बेहतर हुई। महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके दिमाग में मौजूद व्हाइट मैटर नया लग रहा था। वॉक करने वालों में सबसे ज्यादा सुधार दिखा। उन्होंने मेमोरी टेस्ट में भी अन्य समूहों से बेहतर प्रदर्शन किया।

गतिहीन रहने पर व्हाइट मैटर कम होता है, गुणवत्ता भी घटती है : विशेषज्ञ

प्रो. बर्जिंस्का कहती हैं ‘नतीजे दिमाग की गतिशीलता के बारे में बताते हैं। हम जिस तरह रहते हैं (निष्क्रिय या सक्रिय) उसी हिसाब से दिमागी टिशू भी खुद को बदलते हैं। शारीरिक तौर पर ज्यादा सक्रिय होने से व्हाइट मैटर दोबारा बनने लगता है, जबकि गतिहीन रहने पर दिमाग में इसकी कमी होने लगती है और गुणवत्ता भी घटती है। व्हाइट मैटर ऐसा टिशू है जो दिमाग और रीढ़ की हड्‌डी को नर्व फाइबर से जोड़ता है। व्हाइट मैटर दिमाग में मौजूद ग्रे मैटर जितना ही महत्वपू्र्ण है।

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