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भास्कर एक्सक्लूसिव:पाकिस्तान में बोली जाने वाली हिंदको दिलीप कुमार की मातृभाषा थी, अक्सर इस भाषा जानने वाले को ढूंढते थे, उनसे उसी में बात करते थे

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  • Hindko, Spoken In Pakistan, Was The Mother Tongue Of Dilip Kumar, Often Used To Find People Who Knew This Language, Used To Talk To Him In That Language.

मुंबई9 घंटे पहलेलेखक: हिरेन अंतानी

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  • पाकिस्तान के जर्नलिस्ट हफीज़ चाचड़ और पूर्व पुलिस अधिकारी अब्दुल मजीद खान मार्वात से भास्कर की खास बातचीत

दिलीप कुमार संवाद अदायगी के बादशाह थे। उनके कई डायलॉग्स मशहूर हुए। फिल्मों के ये डायलॉग हिंदी या उर्दू में हैं लेकिन दिलीप कुमार खुद अपनी मातृभाषा हिंदको बोलना ज्यादा पसंद करते थे। वह हर वक्त ऐसे लोगों की तलाश में रहते थे जो हिंदको में बात कर सके।

दिलीप कुमार का जन्म पाकिस्तान के पेशावर में हुआ था। पाकिस्तान के इस इलाके में पश्तो भाषा बोली जाती है। वास्तव में, पहले पश्तो इस इलाके के गांव और कुछ समुदायों की ही भाषा थी। शहरों में भद्र वर्ग की भाषा हिंदको थी। दिलीप कुमार का परिवार यही भाषा बोलता था।

पश्तों और हिंदको भाषा में सबसे बड़ा अंतर यह है कि पश्तो इन्डो इरानियन वर्ग की भाषा मानी जाती है। जबकि, हिंदको इन्डो-आर्यन की भाषा मानी जाती है। हिंदको पर पंजाबी भाषा का प्रभाव था। पाकिस्तान वाले पंजाब के इलाके में भी यह भाषा प्रचलित थी। इसी से इसका नाम हिंदको यानी कि हिंदुस्तान की भाषा प्रचलित हुआ था।

2017 का दिलीप कुमार का ट्विट, जिसमें उन्होंने हिंदको बोलने वालों से बात करने की घोषणा की।

2017 का दिलीप कुमार का ट्विट, जिसमें उन्होंने हिंदको बोलने वालों से बात करने की घोषणा की।

वास्तव में, हिंदुस्तान में तब के पंजाब और कश्मीर के कुछ प्रदेश छोड़कर हिंदको भाषा कहीं नहीं बोली जाती थी। कश्मीर में भी जो हिंदको भाषा कुछ लोग बोलते हैं, उस में पंजाबी और डोगरी भाषा का सम्मिश्रण है। पाकिस्तान के नॉर्थ फ्रंटियर में करीब 40 लाख लोग आज हिंदोन भाषा को जानते हैं, पर अब वहां पश्तो प्रभावी भाषा है।

हर इन्सान की तरह दिलीप कुमार को भी अपनी पारिवारिक भाषा हिंदको से काफी लगाव था। 2017 में उन्होंने अपने ट्विटर अकाउंट पर ट्वीट भी किया था कि अगर मुझे कोई हिंदोन भाषा में जवाब देगा, तो बहुत खुशी होगी।

दिलीप कुमार और सायरा बानो 1998 में पाकिस्तान गए, तब उन्होंने पेशावर का भी दौरा किया था। तब अपने परिवार के सदस्य और पुराने मित्रों के साथ हिंदको में बात करके वह बहुत खुश हुए थे।

पाकिस्तान के जर्नलिस्ट हफीज़ चाचड़ ने दैनिक भास्कर को बताया कि हिंदको एक समय में हजारा इलाका के हरिपुर, मानसेरा और पेशावर में प्रचलित थी। तब शहरों की भाषा हिंदको थी। हिंदको की अपनी स्क्रिप्ट नहीं है। वह उर्दू में लिखी जाती है पर सालों पहले वह देवनागरी में भी लिखी जाती थी।

एक तरह से कह सकते है कि हिंदको एक डायलेक्ट है। इस भाषा को जीवित रखने के लिए बहुत कोशिश की जा रही है। हिंदको बोलने वाले लोग अक्सर इस बात पर गुरूर किया करते थे कि उनकी ही जुबान बोलने वाला एक बंदा आज दुनिया का इतना महान कलाकार बना है। आज हिंदको ने अपना एक बहुत ही प्रतिभाशाली स्पीकर खो दिया है।

1998 में दिलीप कुमार की पाकिस्तान यात्रा के दौरान उनके साथ पुलिस अधिकारी अब्दुल मजीद खान।

1998 में दिलीप कुमार की पाकिस्तान यात्रा के दौरान उनके साथ पुलिस अधिकारी अब्दुल मजीद खान।

भीड़ बढ़ जाने से दिलीप कुमार घर नहीं पहुंच पाए

दिलीप कुमार 1998 में अपने वतन पेशावर गए थे। वहां उन्हें देखने के लिए इतनी भीड़ जमा हो गई थी कि लॉ एंड ऑर्डर बिगड़ने के हालात बन सकते थे। आखिरकार पुलिस की बात मानकर वह बीच रास्ते से ही लौट गए।

फ्रन्टियर कांस्टेबलरी कमांडेंट यानी कि भारत के डीजीपी के समकक्ष अफसर रह चुके अब्दुल मजीद खान मार्वात ने दैनिक भास्कर के साथ दिलीप कुमार की उस मुलाकात की यादें साझा कीं। अब्दुल माजिद एक पुलिस अफसर होने के नाते पूरी मुलाकात में दिलीप कुमार के साथ थे।

अब्दुल मजीद खान को 22 मार्च, 1998 के उस दिन का पल-पल आज भी याद है। उन्होंने बताया कि दिलीप कुमार को सरकारी मेहमान का स्टेटस दिया गया था। पाक सरकार की तरफ से ही पूरा वीवीआईपी इंतजाम किया गया था। प्रोटोकॉल और सुरक्षा के लिए पाकिस्तान के आला अफसर साथ रहे थे।

अब्दुल मजीद खान बताते हैं कि पुराने पेशावर शहर में किस्सा ख्वानी बाजार है । यह इलाके में मोहल्ला खुदा दाद है। दिलीप कुमार का पुश्तैनी घर इसी मोहल्ले में है। दिलीप कुमार किस्सा ख्वानी होते हुए अपने घर के लिए रवाना तो हुए। उनकी मुलाकात का कार्यक्रम सार्वजनिक नहीं किया गया था। लेकिन,ना जाने एकदम से रास्ते में उनका दीदार करने के लिए लोग उमड़ पड़े।

दिलीप साहब का काफिला आगे नहीं बढ़ पा रहा था। भीड बेकाबू हो चली थी। आखिर पुलिस ने दिलीप कुमार साहब को बताया कि यहां इतनी भीड में कोई वारदात हो सकती है। दिलीप कुमार ने भी यह माना और वह अपने पुश्तैनी घर को देखे बिना ही वापस लौट गए।

पाकिस्तान के पुलिस अधिकारी अब्दुल मजीद खान।

पाकिस्तान के पुलिस अधिकारी अब्दुल मजीद खान।

दिलीप कुमार ने पार्टी में मधुबाला, सुरैया को किया था याद

अब्दुल मजीद खान बताते हैं कि दिलीप कुमार के फर्स्ट कज़िन फवाद इशाक ने एक पार्टी रखी थी। दिलीप कुमार ने यहां पूरे ग्रुप के साथ अपनी मातृभाषा हिंदको में ही बात की। अपना वतन छोड़े हुए करीब 60 साल हो जाने के बाद भी दिलीप कुमार हिंदको में इतने अच्छे तरीके बोले कि सब हैरत में पड़ गए।

यहां अब्दुल मजिद ने उन्हें बॉलीवुड के उनके किस्से के बारे में पूछा था। तब दिलीप कुमार ने मधुबाला और सुरैया को याद किया था। उनको मलाल था कि उन्हों ने सालों से सुरैया को देखा तक नहीं।

दिलीप कुमार और सायरा बानो अब्दुल मजिद की बड़ी बेटी आमना से काफी घुलमिल गए थे। उन्होंने आमना के साथ काफी तस्वीरें खिंचवाई और बहुत सारी बातें भी कीं। दस साल में पेशावर की उनकी यह दूसरी यात्रा थी। आमना से उन्होंने कहा था कि वह जल्दी यहां लौटेंगे लेकिन वो वक्त कभी नहीं आया।

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