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दरिंदगी के घावों से उबरने में आधा साल लगा:2016 में हैवान पिता सहित 5 दुष्कर्मियों के चंगुल से छूटी इंदौर की बेटी की जिंदगी में अब उजियारा; अच्छे-बुरे की पहचान कराने में लगा सबसे ज्यादा वक्त

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इंदौर10 घंटे पहलेलेखक: संतोष शितोले

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यह असल कहानी है इंदौर की 15 साल की उस बिटिया की जिसके साथ दरिंदगी उसके अपनों ने ही की। पिता और पड़ोसी उसे दो साल तक नोचते रहे। मोहल्ले की वृद्ध महिलाओं ने उसे बचाया और उसे सामाजिक संस्था के सुपुर्द किया। उसे उन दर्द भरी यादों और घावों से उबरने में 6 महीने लग गए। पिता सहित सभी आरोपियों को अदालत ने उम्रकैद की सजा दी है। यह बच्ची अब पढ़ाई कर रही है। उसके इस बदलाव में सबसे ज्यादा वक्त उसे यह समझने में लगा कि अच्छे और बुरे शख्स को पहचाना कैसे जाए। बेड और गुड टच क्या है।

मध्यप्रदेश में सोमवार को मुरैना, ग्वालियर, देवास और खण्डवा में 3 से 16 साल की 4 बच्चियों को दरिंदों ने अपनी हवस का शिकार बनाया। इसने इंदौर की इस बच्ची की याद ताजा कर दी। बाल कल्याण से जुड़े विशेषज्ञों व मनोचिकित्सकों का मानना है कि इनमें से जो चार बालिकाएं हैं उनके दिलोदिमाग पर अभी ऐसी घटनाओं का लम्बे समय तक असर रहेगाा। ऐसे में इन्हें सुरक्षित संस्थाओं के जिम्मे देने के साथ इनकी नियमित काउंसलिंग व विशेष तरीके की ट्रेनिंग जरूरी है।

यह था इंदौर की कोमल का मामला
इंदौर में भी 2016 में ऐसा ही एक हैवानियत वाला मामला हुआ था। इसमें 15 वर्षीय बेटी कोमल (परिवर्तित नाम) के साथ उसका पिता व चार पड़ोसी युवक दो साल तक दुष्कर्म करते रहे। क्षेत्र की ही वृृद्ध महिलाओं को जब इसकी जानकारी लगी तो पुलिस को सूचना दी और पांच आरोपियों पप्पू, पड़ोसी मुन्ना, राम, राहुल और सोनू को गिरफ्तार किया। खास बात यह कि कोमल उस दौरान मंदबुद्धि थी। उसका पिता रोज शराब पीकर आता था और अकसर उसके साथ दुष्कर्म करता था। कई बार तो कोमल की वृद्ध दादी जो बीमार थी, उसने विरोध किया तो पिता पप्पू उसकी पिटाई करता था। कुछ समय बाद आपराधिक प्रवृत्ति के पड़ोसी युवकों मुन्ना, राम, राहुल और सोनू को इसका पता चला तो वे कोमल के पिता के बाहर जाते ही उसके घर चले जाते थे और करीब दो साल तक वे भी उसके साथ दुष्कर्म करते रहे।

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इस तरह सदमे से उबरती गई मासूम कोमल

इधर, आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया जबकि कोमल को संस्था आस द्वारा संचालित इंदौर चाइल्ड लाइन प्रोजेक्ट के तहत रेस्क्यू कर तीन दिन अपने पास रखा। इस दौरान उसकी हालत काफी खराब थी और मनोस्थिति भी और बिगड़ गई थी। ऐसे में पहले उसका उपचार चला और फिर उसे इंदौर के एक एनजीओ में रखकर उसकी काउंसलिंग शुरू की गई। करीब छह महीने तक उसे यहां मनोवैज्ञानिक तरीके से उबारने की कोशिश की गई।

– कोमल उस दौरान काफी गहरे सदमे में थी। उसे संस्था द्वारा निर्मित ऐसी मूवीज बताई गई जिससे उसका मनोबल बढ़ा।

– मूवीज के जरिए बताया गया कि उसके साथ जो घटित हुआ है, उसमें उसकी कोई गलती नहीं है।

– उसे ‘सुरक्षित बचपन’ के नाम से तैयार किए गए मॉड्यूल से समझाया गया।

– वह लोगों से खासकर पुरुषों से डरने लगी थी। इस पर उसे कुछ दृश्यों के माध्यम से समझाया गया कि समाज में अच्छे लोग भी हैं। चूंकि उसकी मां और भाई नहीं थे इसके चलते उसे बताया गया कि परिवार समाज में हर बच्चे का कोई विश्वासपात्र जैसे मां, बहन, मौसी, टीचर या सहेली होती है जिसे अपना दुख दर्द साझा किया जा सकता है।

– कोमल को ऐसी मूवीज व फोटो बताए गए जिसमें बच्चे खुशीभरे मूड में अपने परिवार या नजदीकी विश्वासपात्र लोगों के साथ किसी आयोजन, बर्थ डे पार्टी या अन्य मौकों पर हैं।

– कोमल को मनोचिकित्सकों ने भी ट्रीट किया जिससे उसके मानसिक संतुलन में काफी सुधार आया।

– करीब छह महीने में वह अपने साथ हुई हैवानियत को धीरे-धीरे भूलने लगी। इसके बाद उसे माहौल बदलने के लिए उज्जैन के एक एनजीओ में भेजा गया। यहां उसे एक तरह से पारिवारिक माहौल मिला। फिर वह अपना दैनिक कार्य, मनोरंजक कार्यक्रम देखने के साथ पढ़ाई भी करने लगी। अब पांच साल में वह अपने साथ हुए वह हैवानियतभरे मंजर को पूरी तरह भूल चुकी है।

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पिता सहित पांच आरोपी उम्रभर सलाखों के पीछे

मामले में तब पुलिस ने पप्पू, पड़ोसी युवक मुन्ना, राम, राहुल व सोनी को दुष्कर्म, पाक्सो सहित कई गंभीर धाराओं में केस दर्ज कर गिरफ्तार किया था। केस की सुनवाई जल्द हुई और कोर्ट ने पिता सहित सभी आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। ये सभी अभी जेल में हैं। खास बात यह कि क्षेत्र की जिन बुजुर्ग महिलाओं ने कोमल के साथ हो रही ज्यादती की शिकायत पुलिस को की थी, पुलिस व चाइल्ड लाइन को ऐसे ही सजग लोगों से उम्मीदें हैं ताकि बच्चियों को ऐसी घटनाओं से बचाया जा सके।

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ऐसे अपराध चाहरदीवारी में ही नहीं बाहर भी, इसलिए गुड टच व बेड टच की ट्रेनिंग जरूरी

संस्था ‘आस’ के डायरेक्टर वसीम इकबाल ने बताया कि 2016 में कोमल जिस स्थिति में आई थी, उसकी गहन काउंसलिंग के साथ, विशेष ट्रेनिंग देकर उसे हादसे से उबारा गया। पांच सालों में वह पहले से कई गुना अच्छी है और मानसिक तौर पर भी अब मजबूत हैं। समाज में इस तरह की घटनाएं चिंताजनक हैं। दरअसल ऐसा जरूरी नहीं कि घर की चाहरदीवारी के बीच ही ऐसी घटनाएं होती हैं। बाहरी माहौल में भी बच्चियों को गुड टच व बेड टच की शिक्षा जरूरी होती है। इस मॉड्यूल के तहत अब तक प्रदेश के ढाई लाख बच्चों का इसका पाठ पढाया गया। इसके अलावा आंगनवाड़ियों व सुपरवाइजरों को भी ट्रेनिंग दी गई क्योंकि बच्चे उनके ज्यादा संपर्क में रहते हैं। ये ही वास्तव में बच्चों के लिए मास्टर ट्रेनर हैं।

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