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कहानी उनकी जिन्होंने अपनों को खोया:10 हजार परिवारों ने मुखिया खोया, लेकिन सरकार इन्हें मदद के लायक भी नहीं मानती

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भोपाल35 मिनट पहलेलेखक: हरेकृष्ण दुबोलिया

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60 फीट रोड ओमविहार कॉलोनी निवासी बृजेश गर्ग एकाउंटेट थे, 10 मई को संक्रमण से जान चली गई। - Dainik Bhaskar

60 फीट रोड ओमविहार कॉलोनी निवासी बृजेश गर्ग एकाउंटेट थे, 10 मई को संक्रमण से जान चली गई।

  • मध्य प्रदेश में कोरोना से जान गंवाने वालों के परिवारों के लिए 5 स्कीमें, इनमें से चार सरकारी कर्मचारियों के लिए… बाकी बची एक स्कीम के तो अब तक नियम भी नहीं बने…

प्रदेश में 10 हजार से ज्यादा परिवार ऐसे हैं जिन्होंने कोरोना में अपने मुखिया को खोया है। ये महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों का अनुमान है। सरकार दो महीनों में कोरोना से मरने वालों के परिजनों की मदद के लिए 5 स्कीमें लाई है, पर इनमें सिर्फ विशेष मुआवजा योजना ही ऐसी है जिसमें उन परिवारों को मदद मिल सकती है, जिनके मुखिया सरकारी नौकरी में नहीं थे, लेकिन इसके अब तक नियम नहीं बने।

सरकार को सीएम बाल कल्याण योजना के तहत 600 अनाथ हो चुके बच्चों के आवेदन मिले हैं। लेकिन 4000 ऐसे आवेदन आए हैं, जिनमें किसी एक अभिभावक की मौत हुई है। इस एक अभिभावक में घर का मुखिया भी है। महिला बाल विकास के संयुक्त संचालक विशाल नाडकर्णी बताते हैं कि इनमें से 600 को चुनकर स्पॉन्सर स्कीम के तहत 2000 रु. मासिक पेंशन देने की तैयारी है। यानी सरकार को मालूम है कि ऐसे परिवारों की लिस्ट लंबी है जिनके यहां रोजी रोटी कमाने वाले गुजर चुके हैं। अब उनके सामने पेट भरने का संकट है। दैनिक भास्कर ने इन्हीं कुछ परिवारों को खोजकर उनकी कहानी मालूम की। ऐसे परिवार सरकारी मदद ढूंढते दफ्तरों और नेताओं के चक्कर काट रहे हैं…। पढ़ें इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और उज्जैन की ये कहानी…

गोद लेने वाले पिता भी साथ छोड़ गए… 7 साल की मासूम के नसीब में ही नहीं था पिता का प्यार

ग्वालियर (मुरार) के आर्यनगर की गली नंबर-1 मेें किराए के मकान में रहने वाले जयप्रकाश जैन की 15 मई को कोरोना से मौत हो गई। परिवार में सिर्फ पत्नी विनीता और 7 साल की बेटी जिया (बदला हुआ नाम) बचे हैं। जयप्रकाश और विनीता नि:संतान थे, इसलिए छह महीने की एक अनाथ बच्ची गोद ली थी, लेकिन जिया को शायद पिता का प्यार नसीब ही नहीं था। अपनी सिसकियों को थामकर विनीता बताती हैं कि अब किराया देने की स्थिति में भी नहीं हूं, इसलिए गंगामाई संतर जैन मंदिर परिसर में रहने के लिए आवेदन देकर आई हूं, लेकिन वहां जगह खाली नहीं है। मायके वाले सक्षम नहीं हैं। जेठ-जेठानी हैं, लेकिन उनसे संबंध नहीं रखना चाहते।

इंदौर : मेडिक्लेम नहीं मिला, एलआईसी ने बीमे का फॉर्म रिजेक्ट कर दिया

60 फीट रोड ओमविहार कॉलोनी निवासी बृजेश गर्ग एकाउंटेट थे, 10 मई को संक्रमण से जान चली गई। अब परिवार में 65 साल की मां आशा गर्ग, पत्नी बरखा, 10 साल की बेटी और 5 साल का बेटा हैं। बरखा कहती हैं कि पति की मेडिक्लेम पॉलिसी थी, पर कैश देकर इलाज कराना पड़ा। हॉस्पिटल में पहले 2 लाख रु. चार्ज लिया, लेकिन बिल एक लाख का ही दिया। डेथ रिपोर्ट में कोविड की जगह पेनामॉलिक निमोनिया लिख दिया। इसलिए मेडिक्लेम नहीं मिला। पति का एलआईसी बीमा था, लेकिन पॉलिसी तीन साल से कम की थी, इसलिए हॉस्पिटल से मौत के कारण का पूरा ब्यौरा भरकर दिया जाना था, पर फॉर्म अधूरा ही दिया, इसलिए क्लेम अटक गया। अब किसका दरवाजा खटखटाऊं।

भोपाल : घर में बूढ़ी मां, विधवा पत्नी, 5 साल की बेटी और बेइंतेहा दर्द

20 अप्रैल को कोरोना से जान गंवाने वाले नरेला शंकरी के मंदिर मोहल्ला निवासी राजेश राजपूत के परिवार में अब सिर्फ बूढ़ी मां रियाबाई, पत्नी किरन और 5 साल के बेटी है। राजेश शेफ थे। लॉकडाउन में नौकरी गई। लॉकडाउन खुलते ही चाइनीज फूड का स्टॉल लगाने लगे। वे परिवार में अकेले कमाने वाले थे। किरण बताती हैं कि सुजालपुर से मायके वालों ने दो महीने का राशन भेज दिया है। भारतपे से 10 हजार रुपए का लोन लेकर घर में ही महिलाओं के कपड़े और चूड़ियां बेच रही हूं। आगे की जिंदगी भगवान के भरोसे ही है।

ग्वालियर… सबकुछ इलाज में खर्च, 985 रु. की पेंशन पर पल रहा परिवार

70 साल की किरण जादौन कोरोना और कैंसर की दोहरी बीमारी से गुजर चुके बेटे की तस्वीर सामने रखकर पूजाघर में बैठे ठाकुरजी से कहती हैं कि कुछ तो रहम करो। जेसी मिल के नजदीक चंदनपुरा में रहने वाले भूपेंद्र की 4 मई को कोरोना से मौत हो गई। एक साल में कैंसर के इलाज में ही 10 लाख रु. खर्च हो गए। अब कोई बचत नहीं है। आमदनी के नाम पर 71 साल के पिता की 985 रुपए महीने की पेंशन हैं। किरण बताती हैं कि बहू सीमा बच्चों को लेकर अपने मायके चली गई है। 14 साल की एक बेटी और 11 साल का एक बेटा है। 2 महीने का फ्री राशन मिला था, जिससे कुछ दिन कट गए।

उज्जैन …ढाई महीने से नेता सिर्फ फोन पर हालचाल पूछ रहे, मदद कुछ नहीं

केशव नगर में रहने वाले 44 साल के फिजियोथैरेपिस्ट जितेन कुमार मिश्रा 20 अप्रैल को चल बसे। परिवार में अब पत्नी रुचि मिश्रा, 12 साल का बेटा और 9 साल की बेटी है। रुचि हाउसवाइफ हैं। वे कहती हैं कि जमा पूंजी कुछ इलाज में खर्च हो गई, बाकी से अभी तक गुजारा कर लिया, अब नौकरी की तलाश है। पति भाजपा से जुड़े थे। पूर्व में मंडल अध्यक्ष भी रहे, भाजपा के नेता सांत्वना देने और हालचाल जानने फोन तो करते हैं, लेकिन कोई मदद करने नहीं आया। बच्चों को 5 हजार रुपए की सरकारी पेंशन का आवेदन किया है, लेकिन अब तक उनके नाम पर बैंक अकाउंट नहीं खुल रहे हैं।

मौतें कितनी… दो सरकारी रिकॉर्ड, पहले में 3.3 लाख, दूसरे में 9001

  1. दूसरी लहर में मार्च से अब तक मौतों का सही आंकड़ा क्या है, यह तो स्पष्ट नहीं है, लेकिन सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) के मुताबिक मप्र में जनवरी से मई 2021 के बीच सभी तरह की 3.3 लाख मौतें हुई हैं।
  2. हालांकि सरकारी रिकाॅर्ड के मुताबिक कोरोना से 9001 मौतें हुई हैं। इनमें 3864 मौतें 28 फरवरी 2021 तक हुई। जबकि सरकार ने दूसरी लहर 1 मार्च से मानी है। 1 मार्च से 30 जून तक मौतों का आंकड़ा 5117 है।
  3. दूसरी लहर में हर दिन 42 मौतें कोविड से हुईं। हालांकि मौतों का वास्तविक आंकड़ा इससे करीब 5 से 6 गुना अधिक होने का अनुमान है। इनमें टेस्ट होने से पहले मौत हो जाना भी शामिल है।
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