May 15, 2024 : 6:29 AM
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भास्कर एनालिसिस… भाजपा की जीत के पीछे की रणनीति:3050 सीटों में भाजपा ने जीती थीं सिर्फ 603, 1088 निर्दलीयों के सहारे बनाई पंचायतों में सरकार, बाहुबलियों से नहीं जीत पाई

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लखनऊ2 घंटे पहले

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उत्तर प्रदेश की 75 जिला पंचायतों में 67 में भाजपा के उम्मीदवार जीत गए। जबकि यूपी के 75 जिलों में कुल 3050 सदस्यों में भाजपा के 603 सदस्य जीते थे। सपा के 842 सदस्य जीते थे। निर्दलीयों की संख्या 1088 थी। इन्हीं निर्दलीयों का साथ पाकर भाजपा ने पंचायतों पर फतह हासिल कर ली, लेकिन सरकार बाहुबलियों को डिगा नहीं पाई। प्रतापगढ़ में राजा भैया और जौनपुर में धनंजय सिंह की धमक बरकरार रही। ये दोनों पंचायतें सरकार नहीं जीत पाई।

पूर्वांचल की 28 सीटों में 23 भाजपा के खाते में आई। यहां समाजवादी पार्टी को सिर्फ 3 सीटें मिलीं। पश्चिमी यूपी में भी भाजपा को 23 सीटें मिलीं और सपा को दो। सेंट्रल यूपी की 15 सीटों में 14 भाजपा के नाम रही। बुंदेलखंड की सभी सातों सीटों पर भाजपा ने क्लीन स्वीप किया।

सेंट्रल यूपी में सपा के पास सिर्फ इटावा

शिवपाल यादव और अखिलेश यादव में मतभेद किसी से छुपा नहीं है, लेकिन इस बार परिवार के बेटे अभिषेक के लिए दोनों इटावा में एकजुट हो गए। समाजवादी पार्टी को यहां 9 सीटें मिलीं जबकि प्रसपा को 8 मिली। 24 सदस्यों वाले इटावा में निर्दलीयों ने भी सपा का साथ दिया। यहां सपा के अभिषेक यादव निर्विरोध जीते।

पूर्वांचल में बाहुबलियों से जीत नहीं पाई भाजपा

प्रतापगढ़ में राजा भैया रघुराज प्रताप सिंह और जौनपुर में धनंजय सिंह का जलवा बरकरार रहा। राजा भैया की जनसत्ता दल लोकतांत्रिक पार्टी की माधुरी पटेल जीतीं। प्रतापगढ़ में भाजपा दो धड़ों में बंट गई। भाजपा का बड़ा हिस्सा राजा भैया के पाले में हो गया। जौनपुर में भाजपा- अपना दल का गठबंधन था। दोनों ने यहां अपने उम्मीदवार के लिए ताकत नहीं लगाई बल्कि धनंजय के पाले में ही शामिल हो गए।

पश्चिम यूपी में निर्दलीयों ने दिलाई भाजपा को पंचायतें

पश्चिमी यूपी में भाजपा की लहर के बावजूद विपक्ष बागपत और एटा में लाज बचाने में कामयाब रहा। बागपत में सालों से रालोद का कब्जा रहा है। भाजपा की सरकार से बचाने के लिए रालोद ने अपने सदस्यों को नजरबंद करके राजस्थान में रखा था। चुनाव के दिन ही ये सदस्य लौटे। एटा में सालों से सपा का कब्जा रहा है। कुल 30 सदस्यों में सपा के पास 19 सदस्य थे, भाजपा के पास सिर्फ तीन। यहां यादव परिवार का दबदबा होने के कारण निर्दलीयों ने भी सत्ता पक्ष से दूरी बनाए रखी।

बुंदेलखंड में कोई टक्कर में ही नहीं था

बुंदेलखंड में नामांकन के अंतिम दिन ही भाजपा ने 7 में से 4 सीटों पर कब्जा जमा लिया था। यहां सिर्फ 3 सीटों पर चुनाव हुए थे। इसमें भाजपा ने बाजी मार ली। जालौन में कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार उतारा था। पूरे विपक्ष ने समर्थन दिया था, लेकिन वो एकजुट विपक्ष भी भाजपा के सामने नहीं टिक सका।

इन तीन बिंदुओं से समझिए भाजपा की रणनीति

12 निर्दलीयों को अपना उम्मीदवार बनाया भाजपा ने

भाजपा ने जिलों में अपने सदस्यों की संख्या कम होने पर जीते हुए निर्दलीयों को पार्टी के सिंबल पर उम्मीदवार बनाया। साथ ही निर्दलीयों को प्रत्याशी के पक्ष में लामबंद भी किया। ऐसा लखनऊ समेत 12 सीटों पर भाजपा ने किया है। निर्दलीय उम्मीदवार की साफ सुथरी छवि के सहारे अन्य लोगों को भाजपा में शामिल करते हुए पार्टी में शामिल कराया। उन्हें जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जितवाया।

जातीय समीकरण का सहारा

प्रदेश की 23 सीटों पर भाजपा ने अनसूचित जाति और जनजाति के अलावा ओबीसी महिला उम्मीदवारों की तलाश की गई। इनमें से अधिकतर वह थी जिन्होंने पहली बार चुनाव में हिस्सा लिया। ऐसी महिला सदस्यों को अपने सिंबल पर चुनाव लड़वाकर जितवाया। पार्टी ने हर जिले के लिए जातीय आधार पर समीकरण तैयार किए।

मंत्री -विधायकों को दी जिम्मेदारी, लेकिन टिकट नहीं

पार्टी ने इस बार फैसला किया कि इस पर किसी भी पदाधिकारी के परिवार व रिश्तेदार को उम्मीदवार नहीं बनाया जाएगा। इसका उदाहरण है कि गोंडा के जिला पंचायत अध्यक्ष सीट पर मौजूदा सांसद बृज भूषण शरण की नहीं चली। ऐसे ही प्रतापगढ़ में कैबिनेट मंत्री मोती सिंह की पत्नी का टिकट काट दिया गया। संगठन ने सभी सांसद, मंत्री व विधायकों को जिलों की सीट जिताने की जिम्मेदारी दे दी। जिससे वह लोकल स्तर की गुटबाजी में खुद शामिल न हो सकें।

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