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19 मिनट पहले
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कहते है पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती, पढ़ने और सीखने की लगन हो तो इंसान किसी भी उम्र अपने लक्ष्य को हालिस कर सकता है। वड़ोदरा की 67 वर्षीय एक महिला ने इस बात को सच साबित करते हुए मिसाल पेश की है। वड़ोदरा की रहने वाली जैन महिला उषाबेन लोदया डॉक्टरेट की उपाधि हासिल कर यह साबित कर दिया कि सच्चे मन से कोशिश की जाए तो मंजिल देर से सही, पर मिलती जरूर है।
20 साल उम्र मे ही हो गई थी शादी
20 साल की उम्र में शादी करने वाली उषाबेन बताती है कि वह हमेशा से ही एक डॉक्टर बनना चाहती थी। जब उनकी शादी हुई तब वह ग्रेजुएशन के पहले साल में थी। उनके माता-पिता भी यह चाहते थे कि वह शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखे, लेकिन इसकी बजाय उनका ध्यान घर- परिवार पर ही रहा।
‘भावना’ विषय पर लिखी थीसिस
शुरूआत से ही एक धार्मिक रही उषाबेन पिछले 10 सालों से अपने गुरू जायदर्शी दास महाराज के पास धर्म की शिक्षा प्राप्त कर रही थीं। अपने गुरू की प्रेरणा से उन्होंने शत्रुंजय एकेडमी से पढ़ना शुरू किया। उन्होंने ‘भावना’ विषय पर थीसिस लिखना शुरू किया, जिसे पांच सालों में पूरी कर सब्मिट किया। इसी थीसिस के लिए उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि दी गई है।
रोजाना 6 से 7 घंटे करती थी पढ़ाई
इस उपलब्धि को हासिल करने में उनकी बहू निशा लोदया ने भी उनकी मदद की। उनकी बहू बताती है कि वह दिन में छह से सात घंटे पढ़ाई करती थीं। अगर उन्हें परिवार का समर्थन नहीं मिलता था, तो इस लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल होता। उनके पति आज इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके बेटे और मैंने उनका मनोबल बढ़ाया है।
थीसिस लिखने के दौरान हुई पति की मृत्यु
अपनी थीसिस के इन पांच सालों के दौरान उनके सामने कई मुसीबतें आईं। थीसिस लिखने के दौरान ही उनके पति की मृत्यु हो गई। इसके बाद कोरोना महामारी की वजह से भी उनकी थीसिस डिस्टर्ब हुई। इसके बाद उन्होंने फॉर्मफाउस में रहकर ही अपनी थीसिस पूरी की। अपने इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए उषाबेन ने लगातार मेहनत की।
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