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वैशाखी 13 अप्रैल को: इसी दिन 300 साल पहले गुरु गोविंद सिंह ने आनंदपुर साहिब में रखी थी खालसा पंथ की नींव

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4 घंटे पहले

कॉपी लिंकप्रकृति को धन्यवाद देने का त्योहार है वैशाखी, इस दिन सूर्य करता है मेष राशि में प्रवेश

वैशाखी के दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है अतः इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं। इस वर्ष यह पर्व 13 अप्रैल को मनाया जाएगा। वैशाखी मुख्य रूप से समृद्धि और खुशियों का त्योहार है। ये त्योहार फसलों के पकने और कटने पर होने वाली खुशी के साथ मनाया जाता है। जब फसलों से भरे खेत पक कर तैयार हो जाते हैं तो प्रकृति की इस देन के लिए किसान नाच- गाकर भगवान को धन्यवाद देता है। पकी हुई फसल का कुछ हिस्सा अग्नि देव को अर्पित करने के बाद, इसका कुछ भाग प्रसाद स्वरुप सभी लोगों में बांट दिया जाता है। अच्छी फसल के रूप में धरती मां से जो प्राप्त होता है उसका धन्यवाद देने के लिए लोकनृत्य किया जाता है।

300 साल पहले पड़ी थी खालसा पंथ की नींवसिखों के दसवें गुरु गोबिन्द सिंह ने वैशाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में वर्ष 1699 में खालसा पंथ की नींव रखी थी। खालसा-पंथ की स्थापना के पीछे गुरु गोबिन्द सिंह का मुख्य लक्ष्य लोगों को उस वक्त के मुगल राजाओं के अत्याचारों से मुक्त कर उनके धार्मिक, नैतिक और व्यावहारिक जीवन को श्रेष्ठ बनाना था। इस दिन गुरुद्वारों में विशेष उत्सव मनाए जाते हैं। इस दिन समस्त उत्तर भारत की पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व माना जाता है।

गुरुग्रंथ साहिब की पूजा से होती है दिन की शुरुआत

सुबह 4 बजे गुरु ग्रंथ साहिब को समारोहपूर्वक कक्ष से बाहर लाया जाता है। दूध और जल से प्रतिकात्मक स्नान करवाने के बाद गुरु ग्रंथ साहिब को तख्त पर बैठाया जाता है। इसके बाद पंच प्यारे पंचबानी गाते हैं। दिन में अरदास के बाद गुरु को कड़ा प्रसाद का भोग लगाया जाता है। इस दिन पंजाब का परंपरागत नृत्य भांगड़ा और गिद्दा किया जाता है। शाम को आग के आसपास इकट्ठे होकर लोग नई फसल की खुशियां मनाते हैं। पूरे देश में श्रद्धालु गुरुद्वारों में अरदास के लिए इकट्ठे होते हैं। मुख्य समारोह आनंदपुर साहिब में होता है, जहां खालसा पंथ की नींव रखी गई थी।

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