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कथा: जो लोग निस्वार्थ भाव से भक्ति करते हैं, उन्हें मिलती है भगवान की कृपा

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4 घंटे पहले

कॉपी लिंकपुराने समय में एक ग्वाले ने संत को तप करते हुए देखा, संत ने बताया ऐसा करने भगवान के दर्शन मिलते हैं, ये सुनकर ग्वाले ने तप करना शुरू कर दिया

एक ग्वाला रोज गायों को चराने गाय से बाहर जंगल में जाता था। जंगल में एक संत का आश्रम था। वहां संत रोज तप, ध्यान, मंत्र जाप करते थे। ग्वाला रोज संत को देखता तो उसे समझ नहीं आता था कि संत ये सब क्यों करते हैं?

ग्वाले की उम्र कम थी। संत के इन कर्मों को समझने के लिए वह आश्रम में पहुंचा और संत से पूछा कि आप रोज ये सब क्या करते हैं?

संत ने बताया कि मैं भगवान को पाने के लिए भक्ति करता हूं। रोज पूजा-पाठ, तप, ध्यान और मंत्र जाप करने से भगवान के दर्शन हो सकते हैं।

संत की बात सुनकर ग्वाले ने सोचा कि मुझे भी भगवान के दर्शन करना चाहिए। ये सोचकर ग्वाला आश्रम से निकलकर एक सुनसान जगह पर पेड़ के नीचे एक पैर पर खड़े होकर तप करने लगा। कुछ देर बार उसने सांस लेना भी बंद कर दिया। ग्वाले ने सोचा कि जब तक भगवान दर्शन नहीं देंगे, मैं ऐसे ही रहूंगा।

छोटे से भक्त की इतनी कठिन तपस्या से भगवान बहुत जल्दी प्रसन्न हो गए। वे ग्वाले के सामने प्रकट हुए और बोले कि पुत्र आंखें खोलो, मैं तुम्हारे सामने आ गया हूं।

ग्वाले ने आंखें खोले बिना ही पूछा कि आप कौन हैं?

भगवान बोले कि मैं वही ईश्वर हूं, जिसके दर्शन के लिए तुम तप कर रहे हो।

ये सुनकर ग्वाले ने आंखें खोल लीं, लेकिन उसने ईश्वर को कभी देखा नहीं था। वह सोचने लगा कि क्या ये ही वो भगवान हैं?

सच जानने के लिए उसने भगवान को एक पेड़ के साथ रस्सी से बांध दिया। भगवान भी भक्त के हाथों बंध गए।

ग्वाला तुरंत दौड़कर उस संत के आश्रम में पहुंच गया और पूरी बात बता दी। संत ये सब सुनकर हैरान थे। वे भी तुरंत ही ग्वाले के साथ उस जगह पर पहुंच गए।

संत उस पेड़ के पास पहुंचे तो वहां कोई दिखाई नहीं दिया। भगवान सिर्फ ग्वाले को दिखाई दे रहे थे। संत ने बताया कि मुझे तो यहां कोई दिखाई नहीं दे रहा है तो ग्वाले ने भगवान से इसकी वजह पूछी।

भगवान ने कहा कि मैं उन्हीं इंसानों को दर्शन देता हूं जो निस्वार्थ भाव से मेरी भक्ति करते हैं। जिन लोगों के मन में कपट, स्वार्थ, लालच होता है, उन्हें मैं दिखाई नहीं देता।

सीख – जो लोग भगवान की भक्ति निजी स्वार्थ की वजह से करते हैं, उन्हें भगवान की कृपा नहीं मिल पाती है। निस्वार्थ भाव से की गई भक्ति ही सफल होती है।

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