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Hindi NewsLocalUttar pradeshChairman Of UP State Law Commission Said Studied A Lot Before Making Draft, Where There Will Be Jihad, There Will Be No Love
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लखनऊ , रवि श्रीवास्तवएक घंटा पहले
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जस्टिस आदित्यनाथ मित्तल ने यूपी लॉ सर्विस 1978 में जॉइन किया। इसके बाद वह अलग अलग पोस्ट पर रहे। जस्टिस मित्तल डायरेक्टर जेटीआरआई में रहे हैं। वह विधानसभा प्रमुख सचिव की पोस्ट पर भी रह चुके हैं।
कहा- लव जिहाद विधेयक में ‘लव जिहाद’ शब्द ही नहीं है, ड्राफ्ट बनाने से पहले कई देशों के धर्मांतरण कानून का अध्ययन कियायोगी सरकार ने लव जिहाद के खिलाफ अध्यादेश पारित किया है, राज्यपाल की मंजूरी के बाद बन जाएगा कानून
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म समपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 पास किया है। अब राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद लव जिहाद अपराध माना जाएगा। कानून के तहत 10 साल तक की सजा दी जा सकती है। इसे यूपी स्टेट लॉ कमीशन के चेयरमैन जस्टिस आदित्यनाथ मित्तल ने ड्राफ्ट किया है। हालांकि इस विधेयक में लव जिहाद शब्द नहीं रखा गया है। जस्टिस आदित्यनाथ मित्तल का कहना है कि मेरा मानना है कि जहां जिहाद होगा वहां लव नहीं हो सकता और जहां लव होगा वहां जिहाद नहीं हो सकता है। दैनिक भास्कर ने विधेयक पर स्टेट लॉ कमीशन के चेयरमैन जस्टिस आदित्यनाथ मित्तल से विशेष बातचीत की।
सवाल: लव जिहाद पर कानून बनाने की जरूरत क्यों पड़ी? क्या इसके अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था ?
जवाब: 2019 में हमने इस ड्राफ्ट को तैयार करना शुरू किया था। तब जबरन धर्म परिवर्तन के बहुत से मामले सामने आ रहे थे। नवंबर 2019 में हमने सरकार को ड्राफ्ट सौंपा है जबकि इसके तीन महीने पहले से हमने स्टडी करनी शुरू कर दी थी। उस समय हमारे सामने 11 राज्यों के कानून थे। जिसमें मध्य प्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और झारखण्ड भी शामिल है। हमने सबका अध्ययन किया। हिमाचल 2006 में यह कानून था। 2019 में नया कानून बनाया गया। यही नहीं हमारे पड़ोसी देश जिनमें बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका यहां के धर्म परिवर्तन के कानूनों का भी अध्ययन किया। इसके बाद हमने निर्णय लिया कि यूपी के लिए भी कानून बनना चाहिए।
सवाल: आखिर पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देश और दूसरे राज्यों के कानून की स्टडी की जरूरत क्यों पड़ी?
जवाब: देखिए, धर्म परिवर्तन के मामले बढ़ रहे थे इसलिए जरूरत महसूस हुई कि यूपी के लिए भी कानून बनाया जाए। इसलिए स्टडी शुरू हुई। चूंकि इस बारे में यूपी विधान परिषद और विधानसभा में भी समय समय पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। 1954 से लेकर रिपोर्ट देने तक जितने भी प्रश्न पूछे गए थे। हमने उनकी भी स्टडी की। उन्हें रिपोर्ट में शामिल किया गया। लगभग 40 से 50 सवाल थे। इसके अलावा केंद्र में भी प्राइवेट बिल लाये गए। तीन बार ऐसा हुआ लेकिन प्राइवेट बिल पास नहीं होता है। हमने इसमें कांस्टीट्यूशनल डिबेट्स का भी अध्ययन किया। खासतौर पर अनुछेद 25 जो कि भारत के संविधान में है। उसमें मालूम पड़ा कि वहां भी यह पॉइंट आया था। तब राज्य सरकार को यह पावर दी गयी कि वह चाहे तो इस पर कानून बना सकते हैं। अनुछेद 25 में तीन प्रतिबंध लगाए गए। जिसमें कोई भी धर्म की स्वतंत्रता होगी उससे पब्लिक आर्डर, हेल्थ और मोरेलटी प्रभावित नहीं होनी चाहिए। अगर ये तीन पॉइंट्स प्रभावित नहीं होते हैं तो कोई भी व्यक्ति कोई भी धर्म अपना सकता है।
सवाल: लव जिहाद के नाम पर कोई डेटा तो राज्य सरकार के पास है नहीं, बिना डेटा आपकी स्टडी कैसे हुई ?
जवाब: लव जिहाद का कोई डेटा कहीं उपलब्ध नहीं है। न ही डीजी ऑफिस और न ही किसी अन्य प्लेटफार्म पर ऐसा कोई डेटा उपलब्ध है। हमने भी कोई डेटा जमा नहीं किया था। हमने तीन चार महीने की जो न्यूज़ रिपोर्ट्स थी उन्हें स्टडी किया। अपनी रिपोर्ट में पेपर कटिंग्स को पार्ट बनाया है। उसमें अक्सर यह देखने में आ रहा था कि जिसमें शादी के बाद धर्म परिवर्तन का दबाव बनाया जा रहा था। जिसमें लड़कियां परेशान हो रही थी।
सवाल: फिर लव जिहाद शब्द आया कहां से? इसका क्या मतलब है और क्या आपने लव जिहाद को रिपोर्ट में कहीं परिभाषित किया है?
जवाब: जस्टिस मित्तल कहते हैं कि कुरान शरीफ में 23 तरह के जिहाद बताए गए हैं। जिहाद का मतलब होता है किसी अच्छे काम के लिए संघर्ष करना। चाहे वह धर्म का कार्य हो, चाहे सामाजिक कार्य हो, चाहे वह राजनैतिक कार्य हो। जिहाद का मतलब होता है आंदोलन करना। मेरा मानना है कि जहां प्यार होगा वहां आंदोलन (जिहाद) नहीं होगा। जहां आंदोलन (जिहाद) होगा वहां प्यार नहीं होगा। प्यार में आदमी दीवाना हो सकता है, बेगाना हो सकता है। लेकिन प्यार में धोखा देना किसी भी धर्म मे जायज नहीं है। जहां तक शब्द लव जिहाद का प्रश्न है वह सबसे पहले केरल उच्च न्यायालय के एक निर्णय में वर्ष 2009 में इस टर्म को प्रयोग किया था और जिस संदर्भ में यह टर्म यूज किया गया था उसी संदर्भ में ही बाकी प्रदेशों में घटनाएं घट रही थी। एक विशेष धर्म के लड़के एक विशेष धर्म की लड़की को अपने प्रेमजाल में फंसा कर उनके साथ निकाह करते थे और निकाह करने के बाद उनको धर्म परिवर्तन के लिए विवश करते थे। बहुत से मामलों में पाया गया है कि वह लड़के शादीशुदा थे। उनके बच्चे भी हैं। तो इस दृष्टि से राजनीतिक पार्टियों ने, मीडिया ने लव जिहाद शब्द का इस्तेमाल किया है लेकिन हमने अपनी रिपोर्ट में पूरी सावधानी बरती है कि हमने लव जिहाद शब्द का न तो प्रयोग किया है न ही उसे परिभाषित किया है। क्योंकि हम मानते है कि लव कोई आंदोलन नहीं हो सकता है। प्रेम स्वतः होता है। प्रेम अंदर से होता है। प्रेम के लिए कोई आंदोलन चलाने की जरूरत नहीं होती है। इसीलिए हमने इस शब्द को परिभाषित नहीं किया है।
सवाल: विधेयक में दो अलग धर्मों के लोग यदि शादी कर रहे हैं तो उन्हें 2 महीने पहले डीएम से परमिशन क्यों लेनी होगी? आखिर इसकी क्या जरूरत है ?
जवाब: हमने अपनी ड्राफ्ट रिपोर्ट में कई बातों को शामिल किया है। हम मानते है कि भारत के प्रत्येक व्यक्ति को धर्म की स्वतंत्रता है वह कोई भी धर्म अपना सकता है। हमने इसमें इसलिए प्रावधान किया है कि यदि कोई व्यक्ति अपना धर्म परिवर्तन करना चाहता है तो वह 2 महीने पहले संबंधित जिला मजिस्ट्रेट को दिए गए प्रारूप में आवेदन कर सकता है। फिर जिला मजिस्ट्रेट जांच करेगा कि यह व्यक्ति जो धर्म परिवर्तन कर रहा है वह दबाव, लालच में तो नहीं कर रहा है। इसके अलावा जिस पादरी, मौलवी या पंडित के माध्यम से धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है उसे भी यह सूचना देनी होगी। जब जिला मजिस्ट्रेट संतुष्ट हो जाएंगे तो वह अनुमति दे देंगे। धर्म परिवर्तन के बाद अनुसूची 3 में एक डिक्लेरेशन देना होगा कि मेरा पहले ये धर्म था अब मेरा धर्म यह होगा। इससे अमुक व्यक्ति को भी सोचने समझने का मौका मिल जाएगा।
सवाल: जब संविधान अधिकार दे रहा है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म में शादी कर सकता है तो फिर यह यह कानून अंतर्धार्मिक विवाह को तो प्रभावित करेगा?
जवाब: अंतर्धार्मिक विवाह के मामले में उच्च न्यायालय ने भी कहा है कि इसके लिए धर्म परिवर्तन की जरूरत नहीं है। दोनों व्यक्ति अपने धर्म को अपनाते हुए शादी कर सकते हैं। इसके तमाम उदाहरण राजनीति और बॉलीवुड में हैं। मैं तो यहां तक कहूंगा कि जब स्वर्गीय इंदिरा गांधी की शादी स्वर्गीय फिरोज खान गांधी से हो रही थी तो गांधी जी के भी यही विचार थे कि शादी के लिए धर्म परिवर्तन की जरूरत नहीं है। अंतर्जातीय विवाह करने पर कहीं कोई रोक नहीं है। अगर कोई ऐसी शादी रजिस्टर कराना चाहे तो स्पेशल मैरेज एक्ट के तहत करा सकता है। शादी के लिए न धर्म परिवर्तन की जरूरत है न ही धर्म परिवर्तन के लिए शादी की जरूरत है। अभी आपने देखा होगा सैफ अली खान ने करीना कपूर से शादी की तो उनका नाम आज भी करीना ही है। सचिन पायलट की पत्नी का भी नाम नहीं बदला गया। अकबर ने जोधाबाई से शादी की तो न तो उनका धर्म बदला गया न ही उनका नाम। बल्कि अकबर ने उनके लिए मंदिर भी बनाया।
सवाल: फिर क्या समस्या है अंतर्धार्मिक विवाह में ?
जवाब: अंतर्धार्मिक विवाह में समस्या यह है कि जब दोनों में से पति या पत्नी अपने पार्टनर को धर्म परिवर्तन के लिए विवश करते हैं। दबाव डालते हैं तब यह दंडनीय है। इसी के लिए यह कानून बनाया गया है।
सवाल: क्या दबाव, लालच में किये गए धर्मांतरण के लिए पहले से कोई कानून नहीं था?
जवाब: नहीं पहले से कोई कानून नहीं था। भारत में आईपीसी 1860 में बना था। उसमें धारा 295, 295 A की धाराएं हैं। उसमें प्रावधान है कि दूसरे धर्म को नुकसान न पहुंचाने का है। जबकि धर्म परिवर्तन को लेकर देश मे या राज्य में कोई कानून नहीं था। यह देश का पहला राज्य नहीं है इससे पहले 11 राज्य कानून बना चुके हैं। वर्ष 1968 से यह प्रक्रिया शुरू हुई थी। 1968 में मध्य प्रदेश में जस्टिस योगी कमेटी ने अपनी रिकमेंडेशन दी थी उसके आधार पर वहां कानून बनाया गया था। उसी साल उड़ीसा में भी बनाया गया था। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय और उड़ीसा उच्च न्यायालय में दोनों राज्यों में बने कानून को चुनौती दी गयी थी। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य में बने कानून को सही ठहराया जबकि उड़ीसा उच्च न्यायालय ने पाया कि उड़ीसा में बना कानून संविधान के अनुछेद 25 के विपरीत है। यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।
सवाल: अभी सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फैसला अंतर्धार्मिक विवाह पर आया है। क्या वह फैसला इस कानून को प्रभावित करता है?
जवाब: देखिए, जहां तक मैंने उच्च न्यायालय के निर्णय को पढ़ा है। उसमें यही है कि शादी करने के लिए धर्म को परिवर्तन करने की जरूरत नहीं है। उच्च न्यायालय का अभी हाल का निर्णय और जो डेढ़ महीने पहले निर्णय आया था दोनों ही निर्णय इस कानून को संरक्षित करते हैं।
कौन हैं जस्टिस आदित्यनाथ मित्तल
जस्टिस आदित्यनाथ मित्तल ने यूपी लॉ सर्विस 1978 में जॉइन किया। इसके बाद वह अलग अलग पोस्ट पर रहे। जस्टिस मित्तल डायरेक्टर जेटीआरआई में रहे हैं। वह विधानसभा प्रमुख सचिव की पोस्ट पर भी रह चुके हैं। कानपुर देहात समेत कई जिलों में जिला जज के तौर पर भी पोस्टेड रहे हैं। 2012 में वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज बन कर पहुंचे। इसके बाद 4 दिसंबर 2016 को वह रिटायर हो गए और 18 अगस्त 2017 को वह स्टेट लॉ कमीशन के चेयरमैन बन गए। अभी 2 साल का कार्यकाल उनका बचा हुआ है।
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