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मनोज सिन्हा 2019 में चुनाव हारने से निराश थे; दिल्ली में करीबियों से कहा था- गाजीपुर का बनकर रहा फिर भी हार गया, जरूर कुछ कमियां रहीं होंगी

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  • Was Quite Disappointed After Losing The Lok Sabha Elections In 2019; It Was Said In A Meeting With Close Relatives In Delhi Was The Minister Of The Country, But Even Though Ghazipur Was Built, He Still Lost The Election, There Must Have Been Some Shortcomings.

लखनऊ27 मिनट पहले

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पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को जम्मू एवं कश्मीर का नया एलजी बनाया गया है।

  • करीबियों के साथ हमेशा अपनेपन से मिलते हैं सिन्हा, चुनाव हारने के बाद भी गाजीपुर में सक्रिय रहे
  • नजदीकी लोगों ने बताया- उन्हें गाजीपुर की चिंता हमेशा सताती है, कश्मीर का कार्यभर चुनौती के तौर पर लिया
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भाजपा नेता और पूर्व रेल राज्य मंत्री मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का नया उप राज्यपाल बनाया गया है। सिन्हा को राजनीति में शुचिता के लिए जाना जाता है। उनको जानने वाले लोग सिन्हा की तारीफ में हमेशा कसीदे पढ़ते मिलते हैं। दैनिक भास्कर आज सिन्हा के तीन अनकहे किस्से बताएगा।

कहानी एक: गाजीपुर से मिली हार के बाद दुखी थे, लेकिन टूटे नहीं

मनोज सिन्हा को नजदीक से जाने वाले संतोष रंजन राय (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भाजयुमो और मुंबई प्रांत के युवा मोर्चा के प्रभारी) ने बताया कि ‘‘वह जमीन से जुड़े नेता हैं। पीएम मोदी के पहले कार्यकाल में भी उन्हें इस बात का अंदेशा नहीं था कि उन्हें मंत्री बनाया जाएगा लेकिन जैसे ही उनके पास पीएमओ से फोन आया था वह अवाक रह गए थे। तब उन्होंने कहा था कि यह भाजपा में ही सम्भव है। इस तरह चीजें भाजपा में ही हो सकती हैं।’’

राय कहते हैं कि लोकसभा चुनाव 2019 में गाजीपुर से मिली हार के बाद सिन्हा काफी दुखी थे। 2014 से लेकर 2019 तक उन्होंने काफी काम किया था। लेकिन वह चुनाव हार गए थे। निराश मनोज सिन्हा दिल्ली चले गए थे। वहां अपने करीबियों के साथ बैठक में बड़े ही भावुक स्वर में कहा था- मैं तो पूरे देश का रेल मंत्री था, लेकिन गाजीपुर का बनकर रहा। इसके बावजूद चुनाव हार गया। हो सकता है मुझमें कुछ कमियां रहीं होंगी। इसीलिए जनता ने ऐसा जनादेश दिया है। आज भी उनके मन में गाजीपुर को लेकर हमेशा चिंता दिखाई देती है। राज्यपाल बनने के बाद उन्होंने इस पद को एक चुनौती के तौर पर लिया है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा के साथ भाजयुमो के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष संतोष रंजन राय।

कहानी दो: बीएचयू में चुनाव प्रचार के लिए पैसा नहीं था, अखबार बेचकर पैसा जुटाया
सिन्हा के करीबी दोस्त और डीएवी डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर विक्रमादित्य राय ने बताया कि बात 1974 की है। बीएचयू में आईटी के सिविल इंजीनियरिंग में सिन्हा का एडमिशन हुआ था। बीएचयू से ही उन्होंने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। एबीवीपी से जुड़कर छात्र राजनीति में कदम रखा। एक समय उनके पास चुनाव प्रचार का पैसा नहीं था तो पुराने अखबार बेचकर पैसे का इंतजाम करते थे। एक बार तो उनके पिताजी ने कहा कि मेरे इंजीनियर बेटे को सभी बिगाड़ रहे हैं। मनोज सिन्हा ने हार नहीं मानी। हालांकि वे बीएचयू का पहला चुनाव हार गए थे पर उनकी लोकप्रियता बढ़ती चली गई।

कहानी 3: छात्रों की मदद के लिए हमेशा तत्पर रहते थे
बीएचयू के दोस्त प्रोफेसर एसके सिन्हा बताते हैं कि शुरू से ही वे सभी की मदद के लिए आगे रहते थे। किसी भी छात्र को कोई परेशानी होती, तो वे उसे हल करने में लग जाते थे और इसी नजरिए को देखते हुए उनके साथियों ने उन्हें राजनीति में आने की प्रेरणा दी। वे एबीवीपी से जुड़ गए। उनके साथी और मित्र खुद बताते हैं कि रैगिंग के दौरान भी मनोज सिन्हा अपने दोस्तों को बचाया करते थे।

अब बात लोकसभा में मिली हार की….
बात लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान की है। चुनाव नतीजे आने के बाद भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला था। चारों तरफ खुशियां मनाई जा रही थीं। भाजपा की लगातार दूसरी बार केंद्र में सरकार बनने जा रही थी। लेकिन, इस बीच गाजीपुर से लोकसभा का परिणाम चौंकाने वाला आया था। पूर्वांचल के विकास पुरुष और यूपी विधानसभा चुनाव के बाद यहां सीएम की दौड़ में सबसे आगे रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता मनोज सिन्हा चुनाव हार गए थे। वह भी भारी अंतर से। यह अप्रत्याशित था, कार्यकर्ताओं के लिए और पार्टी के लिए भी। हालांकि, सिन्हा इस हार के बाद भी नहीं टूटे थे। वह गाजीपुर में उसी तरह सक्रिय रहे जिस तरह वह मंत्री बनने के दौरान थे। इस बीच उन्हें यूपी के प्रदेश अध्यक्ष बनाने की भी चर्चा चलीं, फिर राज्यसभा भेजे जाने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा। लेकिन यह दोनों की खबरें अफवाह साबित हुईं। आखिरकार गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खास होने की वजह से उन्हें बुधवार को जम्मू कश्मीर जैसे राज्य का उप राज्यपाल की बड़ी जिम्मेदारी दी गई।

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