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अमेरिका का नेता कैसा हो, जो बाइडेन जैसा हो, अबकी बार ट्रम्प सरकार जैसे नारे हिंदी में लग रहे

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12 घंटे पहलेलेखक: न्यूयॉर्क (अमेरिका) से भास्कर के लिए मोहम्मद अली

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ताजा सर्वे के मुताबिक 66% भारतीय अमेरिकी बाइडेन के पक्ष में हैं और 28% ट्रम्प की तरफ।

  • अमेरिकी चुनाव में इस बार भारतीय और दक्षिण एशियाई वोटर्स को लुभाने के कोई मौके पॉलिटिकल पार्टियां नहीं छोड़ रही हैं
  • दोनों पार्टियां भारतीयों को ध्यान में रखकर कैंपेन लॉन्च कर रही हैं

अमेरिकी चुनाव में इस बार भारतीय और दक्षिण एशियाई वोटर्स को लुभाने के कोई मौके पॉलिटिकल पार्टियां नहीं छोड़ रही हैं। ‘अमेरिका का नेता कैसा हो, जो बाइडेन जैसा हो’, ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ जैसे हिंदी संबोधन इन दिनों अमेरिकी टीवी और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर देखने-सुनने को मिल रहे हैं।

ऐसा पहली बार है, जब दोनों पार्टियां भारतीयों को ध्यान में रखकर कैंपेन लॉन्च कर रही हैं। यहीं नहीं एक ओर जहां मौजूदा राष्ट्रपति और रिपब्लिकन पार्टी से उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रम्प प्रधानमंत्री मोदी से दोस्ती को भुनाने के लिए ‘अबकी बार ट्रम्प सरकार’ कैंपेन चला रहे हैं, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन की टीम ने 14 भारतीय भाषाओं में रेडियो, टीवी पर कैंपेन ‘हिंदू अमेरिकंस फॉर बाइडेन’ कैंपेन लॉन्च किया है। इस कैंपेन के बाद ट्रम्प के रणनीतिकारों ने ‘हिंदू वोट्स फॉर ट्रम्प’ कैंपेन शुरू किया है।

हिंदू अमेरिका में चौथा सबसे बड़ा धर्म है

अमेरिका में हिंदी नारों की वजह यह है कि हिंदू अमेरिका में चौथा सबसे बड़ा धर्म है। देश की कुल जनसंख्या में इनकी भागीदारी 1% है। बाइडेन की टीम से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, भारत और एशियाई वोटरों से सीधा संपर्क बनाने के लिए स्थानीय भाषा का सहारा लिया गया है। बाइडेन की टीम के प्रमुख सदस्य अजय भतूरिया ने भास्कर से कहा कि इस कैंपेन के जरिए हम भारतीय वोटरों को दिखाना चाहते हैं कि हम उनकी परवाह ट्रम्प से ज्यादा करते हैं।

कैंपेन टीम ने यह भी वादा किया है कि अगर बाइडेन सत्ता में आते हैं तो न्याय विभाग में भारतीय अमेरिकियों की नियुक्ति करेंगे, जिससे भारतीयों के विरुद्ध हेट-क्राइम के मामलों में सही न्याय हो पाएगा।

मोदी से दोस्ती ट्रम्प के लिए फायदेमंद

कई सर्वे बताते हैं कि मोदी से दोस्ती चुनावों में ट्रम्प के लिए मददगार साबित हो रही है। ताजा सर्वे के मुताबिक 66% भारतीय अमेरिकी बाइडेन के पक्ष में हैं और 28% ट्रम्प की तरफ। इससे बाइडेन खेमे की चिंता बढ़ा दी है, क्योंकि 2016 में 77% ने हिलेरी और 16% ने ट्रम्प को वोट किया था।

2012 में 84% ने ओबामा के पक्ष में वोट किया था। 2016 में ट्रम्प के पक्ष में भारतीयों की वोटिंग ने फर्क डाला था। इस बार उन्हें इस वर्ग से दोगुना समर्थन मिलता दिख रहा है। हाल के दिनों में डोनाल्ड ट्रम्प कई बार कह चुके हैं कि भारतीय अमेरिकियों का उन्हें समर्थन मिला है, जिसके कारण उन्होंने कमला हैरिस को चुना है। बीते महीने व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा था- ‘मुझे पीएम मोदी और भारत का पूरा समर्थन है।

मुझे भरोसा है कि भारतीय अमेरिकी हमें ही वोट देंगे।’ टेनेसी राज्य के छट्टानूगा शहर में रेस्तरां मालिक विक्रम मल्होत्रा कहते हैं- ‘मैं इस चुनाव में बाइडेन के पक्ष में हूं। ट्रम्प खुद को मोदी का दोस्त जरूर बता रहे हैं, लेकिन उनकी नीतियां हम जैसे प्रवासियों के खिलाफ हैं।’ लेकिन लुइसविले में बिजनेसमैन रिक मेहता इससे इत्तेफाक नहीं रखते। वो कहते हैं कि ट्रम्प की पॉलिसी बिजनेस फ्रेंडली है और वे परिवारिक वैल्यू को महत्व देते हैं।

अमेरिका में एशियाई वोटर्स 50 लाख, कई जगह पर निर्णायक

  • अमेरिका में रह रहे भारतीय देश में दूसरे सबसे बड़े प्रवासी हैं, जिन्हें वोट देने की पात्रता है। 2011 के बाद दक्षिण एशियाई जनसंख्या में 43% की बढ़त हुई है, जो 2018 में बढ़कर 50 लाख से ज्यादा हो गई। इस दौरान 4.7% अमेरिकी बढ़े।
  • अमेरिका में 20 लाख भारतीय मूल के वोटर हैं। इनमें से 5 लाख वोटर एरिजोना, फ्लोरिडा, जॉर्जिया, मिशिगन, नॉर्थ कैरोलिना, पेंसिलवेनिया, टेक्सास और विस्कोन्सिन में रहते हैं। इन जगहों पर भारतीय निर्णायक हो सकते हैंं। 2016 में ट्रम्प ने मिशिगन 10 हजार से जीता था।
  • भारतीय वोटरों से प्रभावित सीटें कैलिफोर्निया, न्यूजर्सी और इलिनोइस, ह्यूस्टन के कुछ उपनगरों में हैं, जो ट्रम्प के लिए मुश्किल मानी जा रही हैं।

ट्रम्प की तरह 10 से ज्यादा राष्ट्रपति अपनी गंभीर बीमारी छिपा चुके हैं…

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कोरोनावायरस से संक्रमित हो चुके हैं। पहले तो व्हाइट हाउस ने बताया कि उनमें संक्रमण के ‘आंशिक लक्षण’ हैं। लेकिन शुक्रवार शाम तक उन्हें भर्ती होना पड़ा। यहां राष्ट्रपतियों का बीमारी छिपाने का लंबा इतिहास है। पढ़ें रिपोर्ट…

ट्रम्प की ही तरह विल्सन ने भी संक्रमण की सूचना छिपाई थी

वुडरो विल्सन अप्रैल 1919 में पेरिस गए थे और बीमार पड़ गए। डॉक्टर कैरी ग्रैसन ने रात भर विल्सन की देखरेख के बाद वॉशिंगटन को बताया कि उनकी स्थिति गंभीर है। वे स्पेनिश फ्लू के शिकार थे, इससे अमेरिका में 6.75 जानें गई थीं।

रूजवेल्ट ने 1944 में अपनी बीमारी छिपाई, दूसरा टर्म पूरा नहीं कर पाए

फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट को 1944 में उच्च रक्तचाप और हृदय संबंधी बीमारियों का पता चला था। इसी बीच चुनाव आ रहा था तो व्हाइट हाउस ने कहा कि उनकी बीमारी गंभीर नहीं है। रूजवेल्ट चुनाव जीते लेकिन कुछ महीनों बाद निधन हो गया।

ग्रोवर ने आइलैंड में जाकर निजी जहाज में कराया था ऑपरेशन

राष्ट्रपति ग्रोवर क्लीवलैंड ने अपनी बीमारी को गुप्त रखते हुए एक निजी जहाज में मुंह का ऑपरेशन कराया था, जिसमें कैंसर वाले हिस्से को हटाया गया था। उन्हें डर था कि जनता को पता चला तो उन्हेें कमजोर राष्ट्रपति के तौर पर देखा जाएगा।

1841 में हेनरी ने बीमारी छिपाई और 9 दिन बाद मौत हो गई

1841 में विलियम हैरिसन निमोनिया से बीमार पड़े। लेकिन व्हाइट हाउस ने उनकी गंभीर बीमारी छिपाई। बीमार पड़ने के 9 दिन बाद उनकी मौत हो गई। उन्हें राष्ट्रपति पद की शपथ लिए हुए भी सिर्फ एक महीना ही बीता था।

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