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- Government Will Spray De compostor Solution Free Of Cost To Make Parali Prepared By Pusa Institute In Delhi Fields.
नई दिल्ली3 घंटे पहले
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फाइल फोटो
- किसान तैयार होंगे तो घोल का मुफ्त छिड़काव किया जाएगा-केजरीवाल
दिल्ली सरकार ने दिल्ली के अंदर किसानों को पराली जलाने की जगह पूसा इंस्टीट्यूट द्वारा तैयार किए गए कैप्सूल से बने घोल का अपने खेत में छिड़काव करने का विकल्प दिया है। बुधवार को प्रेसवार्ता में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार पूसा इंस्टीट्यूट द्वारा बनाए कैप्सूल से घोल बनवा कर पराली को खाद में बदलने के लिए किसानों के खेतों में खुद छिड़काव करेगी।
दिल्ली सरकार, दिल्ली के एक-एक किसान के पास जाएगी और उनसे खेत में घोल के छिड़कने की अनुमति मांगेगी, जो किसान तैयार होंगे, उनके खेत में निशुल्क छिड़काव किया जाएगा। केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार 5 अक्टूबर से पूसा इंस्टीट्यूट की निगरानी में कैप्सूल से घोल तैयार कराएगी, इस घोल को तैयार करने में करीब 20 लाख रुपए की लागत आएगी।
उन्होंने कहा कि कोरोना के समय में पराली जलने से होने वाला प्रदूषण किसानों, शहर के लोगों और ग्रामीणों समेत सभी के लिए जानलेवा साबित हो सकता है। इसलिए मैंने केंद्र सरकार से भी पत्र लिखकर आग्रह किया कि वह अन्य राज्य सरकारों को भी जितना हो सके, इसी साल से इसको लागू करने की अपील करें।
गुड और बेसन के साथ घोल बना कर करते है छिड़काव
केजरीवाल ने कहा कि पूसा रिसर्च इंस्टिट्यूट ने एक कैप्सूल बनाया है, एक हेक्टेयर खेत में अगर उनके चार कैप्सूल गुड़ और बेसन के घोल में मिलाकर छिड़क दिए जाएं तो खेत में पराली का जो डंठल होता है, वह काफी मजबूत होता है, वह 15 से 20 दिन में गल जाता है और उससे खाद बन जाती है। केजरीवाल ने कहा कि इस बार थोड़ी देर हो चुकी है। इसलिए सरकार ने खुद ही छिड़काव का निर्णय लिया है।
800 हेक्टेयर जमीन पर निकलती है पराली : केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली के अंदर करीब 800 हेक्टेयर जमीन है, जहां पर गैर बासमती चावल उगाया जाता है, जहां पर उसके बाद यह पराली निकलती है। हमें उम्मीद है कि 12-13 अक्टूबर के आसपास घोल बनकर तैयार हो जाएगा सरकार खुद अपने ट्रैक्टर किराए पर करके हर किसान के यहां फ्री में उसका छिड़काव करेगी।
यह होगा फायदा: केजरीवाल ने कहा कि पूसा रिसर्च इंस्टिट्यूट के वैज्ञानिकों का कहना है कि डंठल के खाद में बदलने के बाद खेत में उगाई जाने वाली अगली फसल में खाद भी कम लगेगा और मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ेगी। साथ ही उस खेत में फसल की अधिक पैदावार भी बढ़ेगी। जिस पराली को किसान जलाया करते थे, उसे जलाने की वजह से जमीन के अंदर जो उपयोगी बैक्टीरिया होते थे, वह जल जाया करते थे, इससे खेत की मिट्टी को भी नुकसान होता था।