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सुप्रीम कोर्ट से फेसबुक को मिली राहत, कोर्ट से कहा फेसबुक पर कोई कठोर कदम नहीं उठाया जाएगा; अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को

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नई दिल्ली16 घंटे पहले

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समिति ने अब फेसबुक इंडिया के अजीत मोहन को 23 सितंबर को समिति के समक्ष पेश होकर गवाही सुनिश्चित करने के लिए एक नया नोटिस जारी किया है।

  • सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि दिल्ली विधानसभा की शांति और सद्भाव समिति अगले आदेश तक बैठक आयोजित नहीं करेगी

दिल्ली विधानसभा के पैनल के नोटिस के खिलाफ फेसबुक इंडिया के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक अजीत मोहन की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने सुनवाई की।

सुप्रीम कोर्ट ने फेसबुक के वाइस प्रेसिडेंट और एमडी को शपथ पत्र दायर करने के लिए एक हफ्ते का वक्‍त दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि दिल्ली विधानसभा की शांति और सद्भाव समिति अगले आदेश तक बैठक आयोजित नहीं करेगी। इस मामले में अगली सुनवाई 15 अक्टूबर को होगी।

दिल्ली दंगा से है लिंक

समिति ने अब फेसबुक इंडिया के अजीत मोहन को 23 सितंबर को समिति के समक्ष पेश होकर गवाही सुनिश्चित करने के लिए एक नया नोटिस जारी किया है। समिति द्वारा रविवार को जारी बयान में चेतावनी दी गई है कि नोटिस को न मानना समिति को ‘संवैधानिक रूप से प्रदत्त विशेषाधिकार का उल्लंघन’ माना जाएगा।

बता दें कि विधानसभा समिति ने ‘वॉल स्ट्रीट जनरल’ की एक खबर के बाद यह कार्यवाही शुरू की, जिसमें दावा किया गया था कि फेसबुक इंडिया के एक वरिष्ठ नीति निर्धारक ने कथित रूप से भड़काऊ पोस्ट साझा करने वाले तेलंगाना के बीजेपी विधायक को स्थायी रूप से प्रतिबंधित करने में रुकावटें पैदा की थीं।

नोटिस को खारिज करने की मांग की गई

अपनी याचिका में अजीत मोहन ने नोटिस को खारिज करने की मांग की है। याचिका में यह भी कहा गया है कि दिल्ली विधानसभा की समिति उसे पेश होने के लिए मजबूर नहीं कर सकती। यह मुद्दा संसद के समक्ष है। मोहन संसदीय पैनल के सामने पेश हुए हैं। दिल्ली में पुलिस और पब्लिक ऑर्डर केंद्र के पास है। आम आदमी पार्टी (आप) द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि फेसबुक पहली नजर में दोषी है और सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की जानी है। ‘आप’ ये यह कैसे कह सकती है? वह अदालत नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट में अजीत मोहन की ओर से वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि एक डिप्टी सेकेट्ररी यह तय नहीं कर सकता कि विशेषाधिकार का उल्लंघन क्या होता है। अनुच्छेद 19 के तहत मेरा अधिकार है और उसमें भी, मुझे न बोलने का अधिकार है। ये मुद्दा राजनीतिक फेरबदल का है। नोटिस से मेरे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।

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